एनसीईआरटी किताबों के नए प्रिंट बाजार में आने के साथ एक नया विवाद छिड़ गया है. दरअसल एनसीईआरटी ने पिछले साल अपनी किताबों से कुछ अंश या चैप्टर हटाए जाने की आधिकारिक तौर पर सूचना दी थी. अब पता लग रहा है कि गुपचुप तरीके से कुछ और अंश हट चुके हैं.
गांधीजी की हत्या से संबंधित नाथूराम गोडसे के कुछ अंश चुपचाप एनसीईआरटी किताब से हटाए गए
एनसीईआऱटी ने किताबों से कुछ अंश ऐसे डिलीट किए, जिनकी आधिकारिक तौर पर जानकारी नहीं दी थी
एनसीईआरटी की कक्षा 06 से 12 तक की किताबों से गुजरात दंगों के भी कुछ संदर्भ चुपचाप गायब
– वह (गांधी) उन लोगों को खासतौर पर नापसंद थे, जो चाहते थे कि हिंदू बदला लें या जो चाहते थे कि भारत हिंदुओं का देश बने, ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान मुसलमानों के लिए था…
– हिंदू-मुस्लिम एकता की उनकी दमदार कोशिश ने हिंदू चरमपंथियों को इस कदर उकसाया कि उन्होंने गांधीजी की हत्या की कई बार कोशिश की.
– गांधीजी की हत्या का देश में सांप्रदायिक स्थिति पर जबरदस्त जादुई प्रभाव पड़ा … भारत सरकार ने सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले संगठनों पर नकेल कस दी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों पर भी कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाया गया…
एनसीईआरटी की क्लास 12 की राजनीति विज्ञान की किताब में 15 सालों से अधिक समय से गांधीजी से संबंधित चैप्टर पढ़ाया जा रहा था. अब इसके कुछ अंशों को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया. ऐसा ही 12वीं क्लास की इतिहास की पाठ्यपुस्तक से हुआ, वहां से भी चुपचाप गांधीजी से संबंधित अंश हटा दिया गया, जिसमें गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को “पुणे के एक ब्राह्मण” और “एक चरमपंथी हिंदू समाचार पत्र का संपादक लिखा गया था. नाथूराम गोडसे द्वारा ये उद्धृत किया गया कि गांधीजी मुसलमानों का तुष्टीकरण करने वाले थे.
पिछले साल एनसीईआरटी ने कुछ चैप्टर्स हटाने की बात कही थी
एनसीईआरटी ने किताबों से जिन सामग्री को हटाने की सूची पिछले साल जून में जारी की, उसमें इनका आधिकारिक तौर पर उल्लेख नहीं किया गया था. राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचार पत्र “इंडियन एक्सप्रेस” ने अपनी पड़ताल के बाद इस बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की. जिसमें कहा गया कि कैसे एनसीईआरटी ने अपनी नई रिप्रिंट किताबों से गांधीजी की हत्या और गुजरात दंगों के कुछ अंश चुपचाप हटा दिये, जिसकी आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई.
तब एनसीईआरटी ने क्या तर्क दिया था
पिछले साल एनसीईआरटी ने कहा था कि कोविड 19 के कारण स्टूडेंट्स पर दबाव बढ़ गया,लिहाजा पाठ्यक्रम के बोझ कम करने के लिए कुछ बातों को युक्तिसंगत तरीके से पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है. फिर एनसीईआरटी ने अपनी वेबसाइट पर एक बुकलेट के माध्यम से हटाए कंटेंट की जानकारी साझा की गई. इसे सभी स्कूलों को भी भेजा गया.
एनसीईआरटी की टेक्स्ट बुक में जो बदलाव हुए, वो पिछले साल कम समय के कारण रिप्रिंट नहीं हो पाए. लेकिन अब 2023-24 के शैक्षिक सत्र के लिए नई रिप्रिंट बुक्स बाजार में उपलब्ध हैं.
एनसीईआरटी की वो किताब जो आजादी के बाद से देश में सियासी बदलाव के बारे में बताती थी, वो अब हटा ली गई है. (Courtesy – NCERT)
गुपचुप हटाए गए गांधीजी की हत्या से संबंधित कुछ अंश
नई किताबें छपकर आने के बाद पाया गया कि गांधीजी से संबंधित चैप्टर्स में कई अंश बगैर जानकारी के हटा दिये गए, जब ये पूछा गया कि महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित बदलाव जून 2022 में जारी एनसीईआरटी के आधिकारिक बुकलेट में क्यों नहीं आए जबकि पुनर्मुद्रित पाठ्यपुस्तकों में इन्हें नहीं शामिल किया गया तो एनसीईआरटी के निदेशक डीएस सकलानी ने ये कहा कि ये जो कुछ भी हुआ, वो नया नहीं है, ये सब पिछले साल ही हुआ है.
एनसीईआरटी के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल टेक्नोलॉजी के प्रमुख एपी बेहेरा ने कहा, ‘हो सकता है कि निरीक्षण के कारण कुछ चीजें टेबल से छूट गई हों, लेकिन इस साल कोई नया बदलाव नहीं किया गया, यह सब पिछले साल हुआ था.”
ये एनसीईआरटी की हटाने वाली सूची में नहीं
इस वर्ष पुनर्मुद्रित पाठ्यपुस्तकों में हुए कुछ और बदलावों को देखते हैं, जो जून 2022 में जारी एनसीईआरटी की “तर्कसंगत सामग्री सूची” में नहीं बताए गए थे.
एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में गुजरात दंगों का तीसरा और अंतिम संदर्भ कक्षा 11 की समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग सोसाइटी’ से हटा दिया गया. एनसीईआरटी ने एक पैराग्राफ को हटा दिया, जो कहता है, ” कैसे वर्ग, धर्म और जातीयता अक्सर रिहायशी इलाकों में अलगाव की वजह बन चुकी हैं. फिर इसी में कहा गया कि वर्ष 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा ने धार्मिक आधार पर रिहायशी ताने-बाने को बदला. लोग धार्मिक तौर पर अलग बस्तियों में रहने लगे.”
हटाए गए पैराग्राफ में लिखा था: “शहरों में लोग कहां और कैसे रहेंगे, यह एक ऐसा सवाल है जिसे सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के माध्यम से देखा जा सकता है. दुनियाभर के शहरों में आवासीय क्षेत्रों पर हमेशा ही नस्ल, जातीयता, धर्म और ऐसी ही बातों की दरार नजर आती रही है. ये अलग पहचान लोगों में अलगाव ला रही है और टकराव की वजह भी बन जाती है”.
“उदाहरण के तौर पर भारत में सांप्रदायिक तनाव अलग धार्मिक समुदायों खासकर हिंदुओं और मुसलमानों में देखने को मिलता रहता है. लोग मिलजुलकर रहने की बजाए धार्मिक या जातीय आधार पर अलग ग्रुप में रहना पसंद करते हैं. ये अलग तरह की घेटो प्रक्रिया को जन्म देती है. ये भारत में भी कई शहरों में हो चुका है, जिसका ताजातरीन उदाहरण गुजरात में 2002 के दंगों के बाद देखने को मिलता है.”
क्लास 12 की पॉलिटिकल साइंस बुक का वो डिलीट पैरा
क्लास 12 की पॉलिटिकल साइंस की टेक्स्ट बुक “पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस” में एनसीईआरटी ने वो अंश हटा दिया है कि कैसे हिंदू चरमपंथी खासतौर पर गांधीजी को नापसंद करते थे और उनकी हत्या की कई कोशिश की गई.
डिलीट किए गए पैरे में लिखा था, “वह खासतौर पर उन लोगों द्वारा पसंद नहीं किये जाते थे, जो चाहते थे कि हिंदू बदला लें और भारत हिंदुओं का देश बने, जैसे पाकिस्तान मुस्लिमों का बना है. वो आरोप लगाते थे कि गांधीजी मुस्लिमों और पाकिस्तान के हित में काम कर रहे हैं. गांधीजी सोचते थे ऐसे लोग भ्रमित हैं. वह मानते थे कि भारत को केवल हिंदुओं का देश बनाना इस देश को तबाह कर देगा. उनका हिंदू-मुस्लिम एकता का आग्रह हिंदू चरमपंथियों को इस कदर नाराज कर रहा था कि उन्होंने उनकी हत्या की कई कोशिश की.”
एनसीईआरटी ने उस अंश को भी डिलीट कर दिया कि “गांधीजी की हत्या के बाद सरकार ने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पर बैन लगा दिया. इसमें लिखा था, गांधीजी हत्या ने देश में जादुई तौर पर सांप्रदायिक तनाव को खत्म कर दिया. इसके बाद देश में बंटवारे और हिंसा से उपजी नाराजगी एकदम कम हो गई.
तब भारत सरकार ने सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले कई संगठनों पर कार्रवाई की, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों पर बैन लगा दिया गया. तब सांप्रदायिक राजनीति का असर खत्म होना शुरू हो गया.”
हालांकि “महात्मा गांधी का बलिदान” सबहेडिंग के अंतर्गत आने वाले कुछ हिस्से बने हुए हैं, जिसमें ये शामिल है, “गांधीजी 15 अगस्त 1947 को कोलकाता में थे, जो हिंदू मुस्लिम दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित था. ऐसे में वह लगातार कोशिश में जुटे थे कि हिंदू और मुसलमान हिंसा छोड़ दें और शांति स्थापित हो सके.”
जो गांधी जी हत्या के संदर्भ में गोडसे को लेकर हटा
इसके बाद ये पैरा आया है, “आखिरकार 30 जनवरी 1948 का वो दिन आया, जब एक चरमपंथी नाथूराम विनायक गोडसे दिल्ली में महात्मा गांधी की शाम की प्रार्थना सभा में पहुंचा और तीन गोलियां चलाकर तुरंत ही उनकी हत्या कर दी.”
क्लास 12 की इतिहास की किताब “थीम्स इन इंडियन हिस्ट्री” पार्ट 3 में एनसीईआरटी ने गोडसे के संदर्भ में आने वाले “ब्राह्मण” शब्द को हटा दिया और ये भी कि “वह एक अतिवादी हिंदू समाचारपत्र का संपादक था”.
इस किताब के चैप्टर “महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन” में पहले इस तरह लिखा था, “30 जनवरी को अपनी नियमित प्रार्थना सभा गांधीजी को एक युवा ने गोलियों से मार दिया. इसके बाद हत्यारे ने समर्पण कर दिया. वह पुणे का एक ब्राह्मण था, जिसका नाम नाथूराम गोडसे था. वह अतिवादी हिंदू समाचार पत्र का संपादक था, जो मुस्लिमों की तुष्टीकरण के लिए गांधीजी की निंदा करता था.”
बदला गया पैराग्राफ अब इस तरह है, “30 जनवरी को अपनी नियमित शाम की दैनिक प्रार्थना सभा में गांधीजी को एक युवा व्यक्ति ने गोलियों से मार दिया. उस हत्यारे ने बाद में समर्पण कर दिया, उसका नाम नाथूराम गोडसे था.”