अहमदाबाद। अहमदाबाद में पत्रकार महेश लांगा की जीएसटी से जुड़े कथित घोटाला मामले में हुई गिरफ्तारी पर समाचार संगठनों गहरा एतराज जताया है।
संगठनों का यह विरोध उस दिन सामने आया जब इस मामले में गिरफ्तार लांगा और अन्य व्यक्तियों को गुजरात के अहमदाबाद की एक अदालत द्वारा 10 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया। लांगा अहमदाबाद में द हिंदू अखबार के साथ काम करते हैं।
पुलिस का मामला लांगा के एक रिश्तेदार द्वारा दिए गए बयान पर आधारित है, जिसने कहा कि उसे पत्रकार द्वारा धोखाधड़ी वाले लेन-देन करने के निर्देश दिए गए थे। दिलचस्प बात यह है कि पुलिस को कथित घोटाले से लांगा को सीधे जोड़ने वाला कोई लेन-देन नहीं मिला है।
एक संयुक्त बयान में, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, इंडियन वूमेन्स प्रेस कॉर्प्स और प्रेस एसोसिएशन ने लांगा को “प्रसिद्ध और निडर” पत्रकार कहा है। उन्होंने कहा, “गुजरात से संबंधित घटनाक्रमों पर उनकी रिपोर्टों की हमेशा बेहद सराहना की गई है।”
बयान में आगे कहा गया है कि “जहां इस मामले की गहराई तक पहुंचना महत्वपूर्ण है, वहीं हमें लगता है कि उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और आरोपियों को बढ़ी हुई हिरासत में पूछताछ के बहाने अनुचित रूप से परेशान नहीं किया जाना चाहिए।”
इस बीच लाइव ला ने सूचना दी है कि शुक्रवार को लांगा ने अपनी पुलिस रिमांड के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अदालत ने इस मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध की है।
अपनी रिमांड याचिका में, पुलिस ने कहा कि आरोपियों की हिरासत में पूछताछ कथित धोखाधड़ी के पीछे की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए आवश्यक थी।
लांगा और अन्य को सोमवार को गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच, आर्थिक अपराध शाखा और विशेष अभियान समूह द्वारा राज्य में 14 स्थानों पर छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया गया।
क्राइम ब्रांच का कहना है कि यह कार्रवाई केंद्रीय जीएसटी विभाग की शिकायत पर की गई थी।
शिकायत एक कथित घोटाले से संबंधित थी, जिसमें कई फर्जी कंपनियों को इस उद्देश्य से स्थापित करने की बात कही गई थी। और इसमें सरकारी खजाने को कुछ नुकसान पहुंचाने की बात शामिल थी।
अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के उप पुलिस आयुक्त अजीत राजियन ने द हिंदू को बताया कि लांगा की पत्नी को ऐसी ही एक कथित फर्जी कंपनी का प्रमोटर बताया गया है, जिस पर फर्जी बिल बनाने का संदेह है।
द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक लांगा के वकील वेदांत राजगुरु ने कहा कि पत्रकार न तो उस कंपनी के निदेशक थे और न ही प्रमोटर, जिसका उल्लेख प्राथमिकी में किया गया था।हालांकि, पुलिस का आरोप है कि लांगा ने अपनी पत्नी और रिश्तेदारों के नाम का उपयोग करके कंपनी का प्रबंधन किया।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी लांगा के रिश्तेदार मनोज लांगा की थी, जबकि उनकी पत्नी एक साइलेंट भागीदार थीं, जिन्हें लेन-देन करने या बैंक खातों तक पहुंचने का कोई अधिकार नहीं था।
गुरुवार को अपने बयान में, समाचार संगठनों ने यह भी बताया कि लांगा न तो उस कंपनी के निदेशक थे और न ही प्रमोटर, जिसका उल्लेख प्राथमिकी में किया गया है।
बयान में कहा गया, “पत्रकार के नाम पर कोई लेन-देन या हस्ताक्षर नहीं पाए गए हैं। कानून को अपना काम करने दिया जाना चाहिए, लेकिन हमें लगता है कि महेश लांगा की हिरासत में पूछताछ प्रक्रियात्मक अति है और संभवतः एक ऐसे व्यक्ति को परेशान करने का तरीका है जिसका नाम मुख्य प्राथमिकी में भी नहीं है।”