●चंद्रशेखर शर्मा
दुनिया में शायद हिंदुस्तान अकेला वो निराला देश है जहां सदियों से कई-कई दिनी उत्सव मनाए जाते रहे हैं और अभी भी मनाए जाते हैं। जी हां, दस दिनी गणेश उत्सव, नौ दिनी नवरात्र उत्सव और पांच दिनी दीपोत्सव यानी दीपावली आदि ! यों हिंदुस्तान कभी कहा जाता था सोने की चिड़िया, लेकिन लंबे काल तक यह निर्धन देश भी रहा। सो यह विस्मित करने वाला विरोधाभास भी है कि यही निर्धन देश उत्सवों और पर्वों का देश भी रहा है। गोया हम हिंदुस्तानियों को उत्सव के लिए धन, ऐश्वर्य और समृद्धि व अन्य ऐसे संसाधन कतई अनिवार्य नहीं है या उत्सव इनका मोहताज नहीं होते, बल्कि उसके लिए तो महज हमारे मन का वैभव काफी ! पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटलबिहारी वाजपेयी जी ने कभी कहा था कि भारत कोई भूमि का टुकड़ा भर नहीं है, बल्कि यह एक जीता जागता राष्ट्र पुरुष है !
सो यह जीता जागता राष्ट्र पुरुष धन से भले कभी तंग और कंगाल रहा, लेकिन मन तो इसका सदैव से अत्यंत विशाल, वैभवशाली और शाहों का शाह रहा ! फिर उत्सव के लिए तो सिर्फ उमंग और उत्साह चाहिए होता है और हमारे मनीषी कह गए हैं कि उसके लिए हर नई श्वास एक बहाना है। वो कह गए हैं कि जीवन हर पल उत्सव है और उस उमंग और उत्साह के लिए वही बहुत। फिर सामूहिकता और उत्सव भारतीय जीवन दर्शन की सबसे उजली अवधारणा रही है। उसने ही कहा है कि जीवन एक जलसा है और पूरा विश्व या वसुधा और सारे प्राणी एक कुटुम्ब !
बहरहाल अभी हमारे यहां नवरात्र उत्सव मन रहा है। तो आइए, थोड़ा गरबा की बात कर लेते हैं। नवरात्र उत्सव यानी मां अम्बे की आराधना और साथ में शक्ति की उपासना का उत्सव। जान लें कि गुजरात से शुरू हुआ यह उत्सव पूरे भारत में विस्तार पाने के साथ अब तो दुनिया के कई देशों में मनाया जाने लगा है। हमारे यहां तो अब हम यह देखते हैं कि शादी समारोहों से लेकर अन्य कई चल समारोहों में भी गरबा रमने लगा है। इस गरबा को लेकर कई कथाएं हैं। कहते हैं कि गरबा शब्द बना है गर्भदीप से। जी हां, स्त्री के गर्भ की विराट सृजन शक्ति के प्रकाश का आशय इस गरबा में निहित है। एक जानकारी के मुताबिक इसीलिए बहुत पहले स्त्री के गर्भ स्वरूप मिट्टी के घड़े को बनाकर उसमें दीप जलाकर उसके आसपास यानी उसके चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करने से गरबा की शुरुआत हुई। सवाल है कि नृत्य क्या है ? जवाब यह है कि नृत्य भी उत्सव है। देह का उत्सव ! उधर, नवरात्र की एक कथा यह है कि मां दुर्गा ने भैंस के स्वरूप वाले असुर महिषासुर का वध किया था और दूसरी कथा यह है कि रावण के वध के लिए भगवान राम ने नौ दिनों तक मां की आराधना कर उनसे शक्ति प्राप्त की थी। जो हो।
अपन को इंदौर के अनेक गरबा महोत्सवों में जाने और उनमें से कुछ की रिपोर्टिंग करने का सौभाग्य मिला है। इनमें दैनिक भास्कर के अभिव्यक्ति गरबा से लेकर संझा लोकस्वामी के पंखिड़ा गरबा, गुजराती समाज स्कूल, अभय प्रशाल, रेसकोर्स रोड और हिंदरक्षक के गरबा महोत्सव तक कई गरबा आयोजन शामिल हैं। कहें कि पिछले कुछ बरसों में इंदौर गरबा उत्सवों का भी हब बन गया है तो कोई अतिरंजना नहीं। नयी बात यह है कि इस बार पहली दफा अपन को छोटा बांगड़दा में होने वाले निर्भय गरबा महोत्सव में जाने का सौभाग्य मिला और सच कहूं तो उसने अपन को ऐसा मुतास्सिर किया है कि क्या बताऊँ !
सबसे पहले यह जान लीजिए कि भाजपा के बहुत कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री स्वर्गीय निर्भयसिंह पटेल के पुत्र पूर्व विधायक मनोज पटेल ने अपने पिता के नाम पर एक संस्था ‘निर्भय’ की नींव रखी और उसी के माध्यम से मनोज पटेल पिछले पांच बरसों से इस निर्भय गरबा महोत्सव का आयोजन करते आ रहे हैं। खास गौरतलब बात यह कि इस शहर में गरबा ऐसा रमा है कि शहर का कौनसा ऐसा घर होगा जहां की बालिका, युवती या मातृशक्ति या किसी का भी मन गरबा करने के लिए नहीं ललचता या मचलता ? दूसरों की छोड़िये, अपने घर की बात बताऊं कि दो दिन पहले छोटे भाई बबलू की सबसे छोटी बेटी महज पांच साल की लविशा ने गरबा के लिए ड्रेस दिलाने की ऐसी जिद पकड़ ली कि उसकी मम्मी को उसे उसी समय बाजार ले जाकर ड्रेस दिलाना पड़ी, तभी वो देवी मानी। कहने का मतलब यह कि गरबा में यही अनूठी बात है कि छोटे से लेकर बड़ों तक, हर किसी का मन इसे करने के लिए जरूर ललचता है।
छोटा बांगड़दा की बात करें तो यह शहर के एक कोने में मध्यमवर्गीय, निम्न मध्यमवर्गीय और कमजोर तथा ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोगों की रिहाइश वाला इलाका है। मनोज पटेल बताते हैं कि इस इलाके में ऐसी करीब पचास कालोनियां हैं और वहां पहले कोई भी बड़ा या सलीके वाला गरबा आयोजन नहीं होता था। सो समझा जा सकता है कि इस क्षेत्र की बालिकाओं, युवतियों, मातृशक्ति और अन्य लोगों की गरबा करने की साध या हसरत उनके मन में ही कैसे घुटकर दम तोड़ देती थी। इसी कसक को ध्यान में रखकर और उसे दूर करने के लिए मनोज पटेल ने अपने पिता के नाम पर इसी छोटा बांगड़दा में बहुत बड़े निर्भय गरबा महोत्सव को करने का बीड़ा उठाया और देखिए पिछले पांच बरस से यह बहुत बड़े पैमाने पर हो भी रहा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि यह निर्विवाद रूप से शहर के पश्चिम क्षेत्र का सबसे बड़ा गरबा है।
बात इस गरबे के इतने बड़े होने की उतनी नहीं है जितनी मनोज पटेल के मन, परिकल्पना, इच्छाशक्ति और उदारता की है। जी हां, गरबे के लिए उन्होंने क्षेत्र की ही ढाई हजार से अधिक बालिकाओं, युवतियों और मातृशक्ति को निःशुल्क प्रशिक्षण देने की व्यवस्था तो की ही, साथ ही उन्होंने छोटा बांगड़दा के शीतलामाता मंदिर के विशाल परिसर में एक लाख वर्गफीट से भी ज्यादा क्षेत्र में होने वाले इस महोत्सव के लिए हर जरूरी व्यवस्था का प्रबंध खुद अपने बूते किया है। जमा जिस एक बात का वो कतई जिक्र नहीं करना चाहते, वो यह है कि इस पांच दिनी गरबा महोत्सव में गरबा करने वाली सभी प्रतिभागियों के साथ गुजरात से आई दो सौ कलाकारों की टीम और देखने आने वाले हजारों श्रद्धालुओं के लिए रोज भोजन का इंतजाम भी वहीं रहता है ! इस लिहाज से यह इस मामले में विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दो में होने वाले आयोजनों को टक्कर देने वाला शहर का अकेला गरबा आयोजन है।
अब बात गरबा प्रस्तुतियों की। उसके लिए यहां दर्शकों के लिए चारों ओर बनाये गए स्टेडियम के ठीक मध्य में दस हजार वर्गफीट से अधिक बड़ा लकड़ी का प्लेटफॉर्म बनाया गया है। उस पर छह-छह सौ के समूह में क्षेत्र की प्रशिक्षित बालिकाएं, युवतियां और मातृशक्ति बेहतरीन प्रकाश संयोजन और व्यवस्था में जब गुजरात की टीम के कलाकारों के गरबा गीतों पर पूरी तन्मयता से लीन होकर मां की आराधना में लयबद्ध हो कदमताल करती हैं तो वो दृश्य वाकई बहुत मनोहारी और दिल को बाग बाग करने वाला होता है। जरा सोचिए, जो बालिकाएं एक समय गरबा करने की अपनी हसरत को पूरा नहीं कर पाती थीं, वो जब इतने विशाल पांडाल में तमाम सुविधाओं और व्यवस्था के साथ गरबा करती हैं तो उनके मन का उल्लास और उत्साह उनके चेहरों और प्रस्तुतियों में साफ साफ नुमायां होता है और तब उन्हें देखने आए उनके परिजनों के मन और आत्मा यह देखकर कितनी प्रफुल्लित होती होगी ? मेरा खुद का निजी अनुभव यह है कि पिछले तीन दिनों से अपन रोज वहां जा रहे हैं और पाया है कि गरबा के पहले गुजरात के कलाकार जो मां की आरती गाते हैं, वो रोम रोम को रोमांचित करने वाली होती है। उसके बाद गणपति वंदना से गरबा प्रस्तुतियों का जो सिलसिला शुरू होता है, उसे देखकर वो सारा रोमांच मन और आत्मा को भक्तिमय और श्रद्धामय कर देता है। कहने दीजिये कि अपन को पहले ऐसी अनुभूति शहर के किसी भी दीगर गरबा महोत्सव में नहीं हुई। गोया शायद इसकी एक वजह मनोज पटेल की इस महोत्सव के आयोजन के पीछे की पुण्य और पवित्र भाव भूमि ही होनी चाहिए। मौका लगे तो कभी आप भी इसके गवाह बनिए।
बेशक हर गरबा महोत्सव के आयोजक का आयोजन करवाने के पीछे उसका कोई लाभ उठाने की मंशा रहती है। मनोज पटेल भी यह आयोजन अपने विधानसभा क्षेत्र में कराते हैं और मैंने देखा है कि देपालपुर सहित कई गांवों के लोग भी वहां रोज बड़ी संख्या में आते हैं। अलबत्ता मनोज पटेल ने इस महोत्सव को अपने स्वर्गीय पिता के पुण्य स्मरण की मंशा और नीयत से उन्हीं के नाम पर साकार किया है। कह सकते हैं कि राजनीतिक और भौतिक या अन्य कोई भी उन्नति-अवनति आपके प्रारब्ध से तय होती है, लेकिन एक होती है आत्मिक उन्नति और वही सबसे प्रमुख होती है। सो मनोज पटेल को अपने स्वर्गीय पिता के आशीष, मां दुर्गा की कृपा और गरबा करने वाली बालिकाओं की दुआओं से वो उन्नति अवश्य ही प्राप्त हुई होगी या आगे होगी, इसमें इस अकिंचन को किंचित भी संशय नहीं है। विनती है कि मां भगवती मनोज जी का सदा कल्याण करे। यद्यपि इस महोत्सव के प्रबंधन में मनोज पटेल के विश्वस्त और बहुत कार्यक्षम साथियों की जो टीम सतत जुटी मिलती है, उनका भी उल्लेख बनता है। उनमें से कुछ नाम यह हैं, कालू सारडा, रोहित चौधरी, जितेंद्र रघुवंशी, गणेश मिश्रा, जगदीश ठेकेदार और सुशील शर्मा। कालू कहते हैं मनोज भैया ने हमें हर बात के लिए फ्री हैंड दिया हुआ है और कहा है निर्भय होकर महोत्सव का प्रबंध संभालो।
●चंद्रशेखर शर्मा