ऋषिकेश नारायण सिंह
पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाते हैं। यही वजह है कि अपनी पार्टी जेडीयू को बिना पूर्ण बहुमत मिले वे लगातार 18 साल से सरकार के मुखिया बनते आए हैं। उन्हें राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कई बार अपने सियासी जाल में उलझाने का प्रयास किया है। हर बार नीतीश ने उसकी काट निकाल ली है। इस बार भी लालू की मंशा उन्हें समझ में आ गई है। हालांकि समझने में नीतीश ने तोड़ी देर कर दी। अब वे सतर्क हैं और हर मुकाबले के लिए तैयारी भी करने लगे हैं। इसका अंदाजा नीतीश के हालिया कदमों और लालू के जवाब से भी लगाया जा सकता है।
पहली बार 2015 में लालू ने नीतीश को पटाया
लालू यादव ने पहली बार 2015 में नीतीश को अपने जाल में फंसाया। बिहार में नीतीश की पार्टी जेडीयू और आरजेडी ने महागठबंधन बना कर विधानसभा का चुनाव लड़ा। नरेंद्र मोदी के नाम पर नीतीश बिदके हुए थे। मौके की नजाकत देख लालू ने उन्हें एनडीए छोड़ महागठबंधन में आने का रास्ता बनाया। नीतीश कुमार को महागठबंधन की नाव का सवार बनाने के पीछे लालू यादव का ही दिमाग था। हालांकि दो साल तक भी लालू की लाटशाही नीतीश नहीं झेल पाए। नीतीश ने 2017 में महागठबंधन छोड़ फिर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ जाना पसंद किया।
PM फेस बनाने के नाम पर दोबारा फंसे नीतीश
लालू यादव को इस बात का मलाल था कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कुछ ही विधायकों की कमी से उनके बेटे तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी नहीं मिल पाई। तभी से वे उधेड़-बुन में लगे थे। आखिरकार नीतीश को लालू ने फिर पटा लिया। इस बार लालू ने नीतीश को नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का पीएम चेहरा बनाने का सपना दिखाया। यह भी आश्वासन दिया कि जब तक चुनाव की घोषणा नहीं होती है, तब तक आपकी बिहार की गद्दी सलामत रहेगी। लालू की चाल यह थी कि नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में उलझेंगे तो सीएम की कुर्सी उन्हें खाली करनी ही पड़ेगी। नीतीश लोभ में फंस गए और फिर एनडीए से कुट्टी कर महागठबंधन की नाव पर सवार हो गए।
लालू की चाल समझने में नीतीश को देर लगी
नीतीश को लालू ने चने की झाड़ पर तो चढ़ा दिया, लेकिन इसके पीछे उनकी मंशा तो कुछ और थी। कांग्रेस से मिलीभगत कर लालू ने नीतीश को विपक्षी एकजुटता का ठेका दिला दिया। नीतीश को लालू की चाल का तो उस दिन भी एहसास नहीं हुआ, जब पटना में विपक्षी दलों की पहली बैठक हुई। बैठक में लालू भी शामिल हुए। तब तक यह पक्का माना जा रहा था कि विपक्ष को लीड करने का जिम्मा नीतीश को ही मिलेगा। लालू ने कौन-सी खिचड़ी पकाई है, इसका थोड़ा भी शक नीतीश को नहीं हुआ। हंसी-मजाक में ही सही, लालू ने राहुल गांधी की शादी की चर्चा कर अपनी चाल चल दी। लालू ने कहा था कि राहुल गांधी दूल्हा बनें और यहां जमा हम सभी लोग बाराती बनेंगे। इसका संकेत यही था कि कांग्रेस नेतृत्व करे तो विपक्ष के बाकी दल साथ रहेंगे। नीतीश कुमार ने जिस तरह डेढ़ दर्जन विपक्षी दलों को एकजुट किया था, उससे उन्हें यह उम्मीद जरूर थी कि गठबंधन को लीड करने का मौका उन्हें ही मिलेगा। हालांकि उसके पहले ही नीतीश ने पीएम पद की रेस से खुद को बाहर कर लिया था।
नीतीश को संयोजक न बनाने में लालू लगे रहे
लालू के इस संकेत को भी नीतीश नहीं समझ पाए। उन्हें तो झटका तब लगा, जब चौथी बैठक तक संयोजक पद पर किसी के नाम की चर्चा तक नहीं हुई। उल्टे ममता बनर्जी ने पीएम पद के लिए मल्लिकार्जुन खरगे का नाम प्रस्तावित कर दिया। आनन-फानन दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने समर्थन भी कर दिया। वाम दलों के नेता शायद अपनी औकात देख कर चुप रहे। यहां तक कि बड़ा भाई बनने का दावा करने वाले लालू यादव ने भी नीतीश कुमार के नाम की चर्चा नहीं की। विपक्षी दलों की पहली बैठक के बाद नीतीश को कांग्रेस ने किनारे कर दिया। वे बैठकों में तो जाते रहे, लेकिन उन्हें एक सामान्य घटक दल से अधिक किसी ने तरजीह नहीं दी।
विपक्ष की पांचवीं बैठक में नीतीश की आंखें खुलीं
जिन दिनों यह चर्चा जोरों पर थी कि नीतीश विपक्षी गठबंधन के संयोजक जरूर बनाए जाएंगे, लालू ने मीडिया को स्पष्ट कर दिया कि संयोजक बनाने की जरूरत ही नहीं। कांग्रेस अब लीड कर रही है तो संयोजक किसलिए चाहिए। नीतीश के कान तब से खड़े हो गए। उनकी आंखें खुल चुकी थीं। उन्हें जोर का धक्का तब लगा, जब यह जानकारी मिली कि जेडीयू को ही तोड़ने की कोशिश हो रही है। नीतीश चौकन्ना हो गए। उन्होंने सबसे पहले अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को हटाया। पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली। इसी बीच मल्लिकार्जुन खरगे ने गठबंधन की वर्चुअल मीटिंग बुलाई। तब तक यह बात आम हो चुकी थी कि नीतीश नाराज चल रहे हैं। राहुल गांधी ने बैठक में नीतीश को संयोजक बनने का प्रस्ताव दिया। नीतीश चौकन्ने थे। पलट कर उन्होंने इनकार तो किया ही, इस पद पर लालू यादव के नाम का ही सुझाव दे दिया।
दही-चूड़ा भोज में भी नहीं मिले दोनों के दिल
नीतीश कुमार अब सतर्क हैं। उन्हें लालू के लालीपाप की असलियत समझ में आ गई है। यही वजह रही कि नए साल में पखवाड़े भर लालू से उनकी बोलचाल बंद रही। छोटे-छोटे मौकों पर बधाई और श्रद्धांजलि के ट्वीट करने वाले नीतीश ने राबड़ी देवी के जन्मदिन पर शुभकामना संदेश भी नहीं दिया। मकर संक्रांति के दिन लालू ने दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया तो नीतीश उसमें शामिल जरूर हुए, पर रिश्तों में पहले जैसी करमाहट नहीं दिखी। चुपके से नीतीश गए और बिना मीडिया से मुखातिब हुए लौट आए।
अब बड़े-छोटे भाई के लिए शुरू हुई बयानबाजी
लालू-नीतीश के रिश्ते किस मोड़ पर पहुंच गए हैं, इसे समझने के लिए भोज के दिन आरजेडी के नेता और लालू परिवार के करीबी विधायक भाई वीरेंद्र के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि लालू की कृपा से नीतीश सीएम बने हुए हैं। आरजेडी अपने 79 विधायकों के कारण बिहार में बड़ा भाई है। जेडीयू को यह बयान कितना नागवार लगा है, यह मंत्री अशोक चौधरी के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा है कि नीतीश विकास पुरुष हैं। इसलिए वे सीएम बने हैं। उन्हें सीएम बनने के लिए किसी की कृपा की जरूरत नहीं है।आरजेडी-जेडीयू के संबंधों में कड़वाहट दिखने लगी
सच पूछिए तो आरजेडी-जेडीयू सिर्फ सरकार के लिए साथी हैं। दोनों के दिल कभी मिले ही नहीं। मिलते भी कैसे ? जेडीयू की बुनियाद ही आरजेडी के विरोध से पड़ी है। अब तो दोनों के बीच कड़वाहट साफ नजर आने लगी है। बिहार में बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति को नीतीश कुमार अपने सात निश्चय के दूसरे चरण की घोषणा पर अमल बता रहे तो आरजेडी इसे तेजस्वी यादव के सरकार में शामिल होने की उपलब्धि मान रहे। खींचतान ऐसी कि नीतीश के 15 साल के शासन की तुलना महागठबंधन सरकार के 15 महीनों से की जाने लगी है। नीतीश ने सात निश्चय का जिक्र कर यह भी संदेश दिया है कि फैसला एनडीए सरकार का है।
नीतीश चुपचाप अपनी जमीन मजबूत करते रहे
महागठबंधन सरकार में रहते हुए भी नीतीश कुमार अपनी जमीन पुख्ता करते रहे हैं। शिक्षकों की नियुक्ति में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण से उन्होंने आधी आबादी पर पूर्व की भांति पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। नियोजित शिक्षकों को सरकारी बनाने का फैसला कर नीतीश ने तीन लाख से ऊपर शिक्षकों का दिल जीता है। जाति सर्वेक्षण का फैसला भी सैद्धांतिक रूप से एनडीए शासन की ही देन है। सर्वेक्षण में आए आंकड़ों के हिसाब से नीतीश ने अब नीतिगत फैसले लेने भी शुरू कर दिए हैं। मंगलवार को कैबिनेट में राज्य के करीब 94 लाख गरीब परिवारों को सरकार ने दो-दो लाख रुपये देने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसमें कोई जातिगत भेद भी नहीं है। जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद नीतीश कुमार ने इसकी घोषणा की थी। इसका लाभ जनरल, एससी, एसटी, ओबीसी, ईबीसी यानी सभी वर्गों के गरीबों को मिलेगा। मसलन नीतीश कुमार आहिस्ता-आहिस्ता अपना जनाधार मजबूत करते रहे हैं।