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दशकों पुरानी मांग पर फिर अड़ सकते हैं नीतीश-नायडू

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नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल में कब तक प्रधानमंत्री रहेंगे और किस तेवर के साथ काम करेंगे, यह अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर निर्भर करेगा.दिल्ली की सियासत के लिए नीतीश कुमार अब पूरी तरह तैयार हैं। बिहार में रहकर दिल्ली पर नजर रखना है, इसको लेकर रणनीति तैयार की जा रही है। लोकसभा चुनाव रिजल्ट 2024 आने के बाद सबकी नजर ‘N’ पर है। नीतीश और नायडू की ओर एनडीए के साथ-साथ इंडी आलायंस भी देख रहा है। सबका मानना है कि दिल्ली की सत्ता की चाबी इन्हीं दोनों नेताओं के पास है। अब खबर आ रही है कि दोनों नेता मोल-भाव करने के मूड में हैं। सूत्रों की माने तो केंद्र में एनडीए के लगातार तीसरे कार्यकाल में दो महत्वपूर्ण सहयोगी टीडीपी और जेडीयू लोकसभा में स्पीकर पद की मांग कर सकते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, दोनों पार्टियों ने बीजेपी नेतृत्व को इशारों ही इशारों में संकेत भी दे दिया है कि स्पीकर पद गठबंधन के सहयोगियों के पास होना चाहिए। बता दें कि 1998 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, तब टीडीपी के पास स्पीकर पद था।

पिछले दो बार से केंद्र में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिल रहा था लेकिन इस बार किसी तरह एनडीए को मिला है. ऐसे में मोदी को अपने कई एजेंडे किनारे रखने पड़ सकते हैं.

बीजेपी को 240 सीटों पर जीत मिली है और बहुमत के लिए 272 का आँकड़ा चाहिए. हालांकि एनडीए को 293 सीटें मिली हैं और यह सरकार बनाने के लिए पर्याप्त है.

चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड ने मिल कर 28 सीटें जीती हैं और एनडीए को बहुमत के आँकड़े तक ले गई हैं.

वहीं इंडिया गठबंधन बहुमत से 40 सीटें पीछे रह गया है.

नरेंद्र मोदी के लिए ये स्थिति बहुत सहज नहीं है, बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले दो कार्यकाल में काफ़ी मज़बूत स्थिति में थे.

नरेंद्र मोदी के पास गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव भी नहीं है. गुजरात में जब वह मुख्यमंत्री थे, तब भी प्रचंड बहुमत वाली सरकार थी.

हक़ीक़त यह है कि बीजेपी की कमान मोदी के पास आने के बाद से एनडीए का कुनबा छोटा होता गया. अकाली दल और शिव सेना बीजेपी के दशकों पुराने सहयोगी रहे थे लेकिन दोनों कब का अलग हो चुके हैं.

इस बार जब नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे तो उन्हें सरकार चलाने के लिए सबको साथ लेकर चलना होगा.

उनके सामने सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती होगी, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को अपने साथ लेकर चलना.

नरेंद्र मोदी के दिल्ली आने के बाद नीतीश कुमार और नायडू के संबंध बीजेपी से बहुत कड़वाहट भरे भी रहे हैं.

नायडू और नीतीश 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर बीजेपी के विरोधी खेमे में रह चुके हैं और इस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में वापसी की है.

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