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काशी से 100 किमी दूर फूलपुर सीट से  चुनाव लड़ना चाहते हैं नीतीश

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संगमनगरी प्रयागराज, गंगा नदी के बहाव से करीब 23 किमी दूर है फूलपुर। आजादी के बाद से यह लोकसभा क्षेत्र वीआईपी सीट के तौर पर जाना पहचाना गया लेकिन इफको फैक्ट्री को छोड़ दीजिए तो यहां के रहनुमाओं ने कुछ ऐसा नहीं दिया जिस पर फूलपुर और यहां के लोग इतरा सकें। जब से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फूलपुर लोकसभा सीटसे चुनाव लड़ने की चर्चा चली है, फूलपुर को सियासी नजरिए से जानने में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। ऐसे में 2024 और भी करीब नजर आने लगा है। नीतीश कुमार के यहां से उतरने को कोई अफवाह बता रहा है तो कोई जनता की तमन्ना साबित करने में लगा है। कुछ लोग इसके जरिए नैरेटिव सेट करने और माहौल बनाने की बात कर रहे हैं। कुछ देर के लिए इन सब बातों को अलग रखकर यह मान लेते हैं कि नीतीश कुमार 2024 के दंगल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाले हैं।

अगर सामने गामा पहलवान खड़ा हो तो रणनीति भी ‘गामादार’ ही बनानी पड़ेगी तभी उसे पटखनी देने के बारे में सोचा जा सकता है। सबसे अच्छा तरीका होता है उस पहलवान की स्टाइल को कॉपी करना और उसकी गलतियों से अपने लिए प्लस पॉइंट कमाना। ठीक इसी फलसफे पर चलते हुए शायद नीतीश कुमार के खेमे से फूलपुर की हवा उड़ाई गई है। हो सकता है इस पर आए रिएक्शंस की स्टडी हो और उसी हिसाब से अगली चाल तय हो। फिलहाल यह समझना जरूरी है कि नीतीश कुमार फूलपुर से ही चुनाव लड़ना क्यों चाह रहे हैं और इस ग्राउंड रिपोर्ट में समझिए कि बिहार के मुख्यमंत्री का ‘मोदी स्टाइल’ अपनाना क्यों फूलपुर में काम नहीं करेगा?

phulpur

फूलपुर में इफको यूरिया फैक्ट्री है।
मोदी और नीतीश में फर्क है
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में काशी आए थे तो पूरा पूर्वांचल भगवामय करने का इरादा था। असर बिहार तक देखा गया। नीतीश की तरफ से काशी के बगल में भदोही सीट से लगे फूलपुर से चुनाव लड़ने की बातें हो रही हैं, तो बैकग्राउंड में मोदी स्टाइल की चर्चा है। लेकिन नीतीश और मोदी में फर्क है। मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होने के साथ ही हिंदुओं के दिलोदिमाग में एक अलग छवि बना चुके थे। नीतीश की सुशासन बाबू वाली छवि बिहार तक या विपक्षी नेताओं के बयानों तक सीमित है। दूसरे राज्यों की जनता के मन में उनके लिए कोई विशेष स्नेह नहीं है। रही बात जाति समीकरण की। वह कुर्मी समुदाय से आते हैं और फूलपुर सीट पर पटेलों का वोटबैंक देख शायद उनके सलाहकारों को सब कुछ आसान लग रहा होगा लेकिन उन्हें जमीनी हालात से रूबरू होना होगा।

अखिलेश सीट दे दें तो भी…
पंडित नेहरू के बाद करीब 35 साल तक फूलपुर क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। बाद में सपा ने यहां खूब साइकिल दौड़ाई। बसपा उम्मीदवार भी गाहे-बगाहे जीतते रहे। 2014 में डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और 2019 में केसरी देवी पटेल ने कमल खिलाया और सपा दूसरे नंबर पर रही। इतना ही नहीं, 2018 के उपचुनाव में सपा ने यहां साइकिल दौड़ा दी थी। अब जरा यूपी + बिहार = गई मोदी सरकार, वाला फैक्टर समझ लीजिए। कोई पैदल निकला है, कोई विपक्ष को एकजुट करने के लिए दिल्ली-पटना एक किए है। अखिलेश यादव को भी पता है कि अकेले दम पर मोदी के करिश्माई चेहरे को टक्कर दे पाना मुश्किल है। इसलिए वह चाहते हैं कि पीएम कोई भी बने, अभी भाजपा को सत्ता से हटाना जरूरी है तभी क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व बचा रह सकेगा। अगर नीतीश यादव सपा के साथ मिलकर यूपी में चुनाव लड़ते हैं या फिर एक फूलपुर सीट नीतीश को देकर अखिलेश कोई दांव चलते हैं, तो इसके जरिए विपक्ष को फायदा पहुंचाने की कोशिश होगी। मोदी की सीट के करीब 100 किमी दूर यह देश की बहुचर्चित सीट रही है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर, वीपी सिंह, अतीक अहमद, केशव प्रसाद मौर्य जीते। ऐसे में नीतीश कुमार के लिए कांग्रेस और बसपा भी आसानी से सपोर्ट दे सकते हैं।

अब समझिए जमीनी हकीकत
भाजपा के वरिष्ठ नेता श्यामधर मिश्रा फूलपुर में वोटिंग पैटर्न बताते हुए कहते हैं कि यहां BJP आज के समय में मजबूत है क्योंकि अनुप्रिया पटेल, केसरी देवी पटेल, विधायक प्रवीण पटेल की वजह से यहां पटेल समुदाय भाजपा को ही वोट करेगा। नीतीश कुमार कुर्मी हैं, यह फैक्टर कितना काम करेगा? यह पूछे जाने पर श्यामधर ने कहा कि वह ज्यादा से ज्यादा 10 पर्सेंट वोट ही काट पाएंगे। उन्होंने बताया कि फूलपुर में सबसे ज्यादा पटेल, उसके बाद यादव फिर मुसलमान और ब्राह्मण वोटर हैं।

अगर सपा के साथ मिलकर नीतीश कुमार चुनाव लड़ते हैं तो क्या सपा का पारंपरिक वोटर यानी मुसलमान और यादव नीतीश कुमार को वोट करेगा? इस सवाल के जवाब में एक स्थानीय पत्रकार ने कहा कि इसका जवाब तो पार्टियों को पहले ही मिल चुका है। 2019 लोकसभा में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। तब भी भाजपा जीती और गठबंधन हार गया। इसमें एक बड़ी बात फूलपुर, प्रयागराज और आसपास के क्षेत्र में यह है कि जिसके बिरादरी का कैंडिडेट होता है वो तो वोट दे देते हैं लेकिन जिस दूसरी बिरादरी से गठबंधन किया जाता है उनका वोट नहीं मिल पाता है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि फूलपुर का हाल तो सबको पता है, यहां जाति फैक्टर हावी है। नीतीश कुमार अगर कुर्मी बनकर सपा के साथ संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर फूलपुर से लड़ते हैं तो यादव उन्हें वोट नहीं देगा।

बाहरी फैक्टर भी रहेगा
श्यामधर कहते हैं कि इस समय स्थानीय और बाहरी का फैक्टर तेज है। पहले पब्लिक वोट दे देती थी लेकिन लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि अगर ये जीत जाएंगे तो हम उन्हें ढूंढने क्या पटना जाएंगे? मोदी और योगी का जो क्रेज इस समय है वो नीतीश के साथ नहीं है। मोदी-योगी देश में कहीं से लड़ जाएंगे वे अच्छी फाइट देंगे लेकिन नीतीश कुमार की छवि अभी उस स्तर की नहीं है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने 2024 का फूलपुर प्लान बताते हुए कहा कि यहां पार्टी मौजूदा सांसद केसरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल को उतार सकती है। वर्तमान सांसद लगातार क्षेत्र में दिखाई देती हैं, पटेल बिरादरी और कहीं नहीं जाने वाली है। ऐसे में दीपक पटेल भारी पड़ेंगे। केसरी देवी की उम्र ज्यादा हो गई है, ऐसे में टिकट कटना तय है इसलिए बेटे को टिकट देने की पूरी तैयारी है। हां, महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा अगर गैर-पटेल बिरादरी को फूलपुर से उतारने की चूक करती है तो नीतीश कुमार के लिए राह आसान हो सकती है। अब नीतीश की चर्चा चल पड़ी है तो क्षेत्र के लोगों का कहना है कि पक्का समझिए भाजपा पटेल को ही मैदान में उतारेगी।

भाजपा नेता ने ही बताए नीतीश की जीत के दो रास्ते!
क्षेत्र में रहने वाले भाजपा युवा मोर्चा, प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य विमलेश पटेल कहते हैं कि नीतीश कुमार यहां से जातिगत समीकरण देखते हुए सांसदी जीत सकते हैं, पर वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। जब उनसे जीत की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि यह भाजपा के कैंडिडेट और दो परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। विमलेश ने कहा कि भाजपा अगर किसी स्थानीय पटेल को न उतारे तो नीतीश जीत सकते हैं। भाजपा अगर कुर्मी को टिकट ही न दे तो भी नीतीश जीत जाएंगे।

पटेल ही तय करेंगे हार जीत
वहीं, सपा नेता अंगद यादव ने कहा कि पटेल बिरादरी का अच्छा खासा वोट है। नीतीश की हार जीत पटेलों के रुख पर निर्भर करेगी, गठबंधन पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा। उन्होंने सपा के रुख पर बोलने से बचते हुए कहा कि हो सकता है पार्टी एक सीट उनके लिए छोड़ दे। सपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा कि केशव प्रसाद मौर्य के सीट खाली करने के बाद फूलपुर उपचुनाव में भाजपा ने मिर्जापुर के रहने वाले कौशलेंद्र पटेल को मैदान में उतारा था। सपा ने नागेंद्र पटेल को टिकट दिया था। लेकिन यहां बाहरी फैक्टर इतना ज्यादा चला कि सबने सपा उम्मीदवार को ही वोट दिया और वह जीते। यहां करीब 20 लाख मतदाता हैं और पटेल-यादव बिरादरी ही जीत हार तय करती है।

इसी बात को दोहराते हुए भाजपा नेता श्यामधर फूलपुर से लगी प्रतापपुर विधानसभा का उदाहरण देते हैं। उन्होंने कहा कि जनता का मूड ऐसे ही समझ लीजिए कि प्रतापपुर में पिछले चुनाव में अगर स्थानीय ब्राह्मण कैंडिडेट रहा होता तो भाजपा सीट निकाल सकती थी लेकिन हंडिया से आए कैंडिडेट राकेश धर त्रिपाठी को हार मिली। कुछ लोगों ने वोट सिर्फ इसलिए नहीं दिया, ‘ह.. ऐ कहां मिलिहीं भाय। अब विधायक से मिलइके होय त 50 रुपया फूंकी और हंडिया जाई।’

फूलपुर में अब तक हुए लोकसभा चुनाव और उपचुनावों में 8 बार पटेल-कुर्मी कैंडिडेट जीते हैं। नीतीश कुमार बिहार में कुर्मी बिरादरी के नेता के तौर पर जाने जाते हैं। केजरीवाल का हाल देख नीतीश हो सकता है सीधे न सही पर घेराबंदी के लिहाज से फूलपुर सीट पर आने की सोच रहे हों। लेकिन फूलपुर का जातिगत वोटिंग पैटर्न कहता है कि उनके लिए यह ‘अग्निपरीक्षा’ होगी। ऐसे में फूलपुर आने से पहले उन्हें अपने लिए एक पक्की सीट भी चुननी होगी।

फूलपुर सीट के बारे में जान लीजिए

  • – पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू 1952 में इसी सीट से लोकसभा पहुंचे और लगातार तीन बार यहां से जीतते रहे। 1962 में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया लड़े लेकिन हार गए।
  • – नेहरू के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित यहां से चुनाव लड़ीं, आज उनके नाम से फूलपुर में एक इंटर कॉलेज भी है।
  • – 1971 में कांग्रेस से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जीते।
  • – सांसद रीता बहुगुणा जोशी की मां कमला बहुगुणा भी यहां से जीत हासिल कर चुकी हैं।
  • – 1984 में कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने फूलपुर में परचम बुलंद किया।
  • – 1996 से 2004 के बीच सपा कैंडिडेट जीते। 2004 में उस समय बाहुबली कहे जाने वाले अतीक अहमद यहां से सांसद पहुंचे। उस समय उनका रौब इतना था कि टाटा सुमो से साथ में 15-20 गाड़ियों का काफिला चलता था और कांच उतना ही खुला रहता था जितने में दोनली बाहर वालों को दिख सके। ऐसे में सड़कों और चौराहों पर ट्रैफिक थमकर अतीक के काफिले को देखने लगता था।
  • – वैसे, वीआईपी सीट भले कहिए लेकिन इफको यूरिया फैक्ट्री के अलावा फूलपुर में विकास के नाम पर कुछ नहीं दिखता है।

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