अग्नि आलोक
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भक्ति में नहीं भेद भाव

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शशिकांत गुप्ते

राम भगवान के स्पर्श मात्र से पत्थर समुद्र में तैरने लगे थे। समुद्र पर सेतू निर्मित हुआ।
गौतम ऋषी के श्राप से पाषाण बनी अहिल्या राम भगवान के चरणों की रज लगते ही पूर्वव्रत नारी बन गई।
रामभगवान की महिमा अपरंपार है।
सन 1968 प्रदर्शित फ़िल्म
नील कमल का गीत का स्मरण होता है। इस गीत की विशेषता यह है कि, यह गीत लिखा है गीतकार
साहिर लुधियानवी ने और इसे फिल्माया है,प्रसिद्ध अभिनेत्री वहीदा रहमान पर। इस गीत का फिल्मांकन मंदिर में किया गया है।
गीत के बोल हैं।
मेरे रोम रोम में बसने वाले राम
जगत के स्वामी हे अंतर्यामी
मै तुझसे क्या मांगू

17 दिसम्बर 1556 में जन्मे
अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना या रहीम, एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे।
रहीम साहब के दोहे आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं।
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥

अर्थ :- दुनिया जानती है कि खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय॥

अर्थ :- रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥

अर्थ :- ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय॥

अर्थ :- खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।
रहीमसाहब के ऐसे अनेक दोहें हैं।
रहीमसाहब के समकालीन कृष्णभक्ति में लीन भक्त हुए हैं रसखान
रसखान का जन्म सन् 1548 में हुआ माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था और वे दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण-भक्ति ने उन्हें ऐसा मुग्ध कर दिया कि गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जा बसे।
रसखान कृषभक्ति में लीन थे। रसखान रचित कृष्णभक्ति की सभी रचनाएं मन को छूने वाली रचनाएं हैं।
सन 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म गोपी के इस गीत का स्मरण भी स्वाभाविक हो जाता है।
सुख के सब साथी,
दुख में ना कोई,
मेरे राम, मेरे राम,
तेरा नाम एक साँचा,
दूजा न कोय,
जीवन आनी, जानी छाँया,
झूठी माया, झूठी काया,
फिर काहे को सारी उमरिया
पाप की गठरी ढोई,
सुख के सब साथी,
दुख में ना कोई
मेरे राम, मेरे राम

यह गीत फिल्माया है अभिनेता दिलीप कुमार और जिनका असली नाम यूसुफ खान था।
प्रख्यात समाजवादी चिंतक,विचारक स्वतंत्रता सैनानी स्व.राममनोहर लोहियाजी ने अपने समाजवादी साथियों से रामायण मेले आयोजित करने का आव्हान किया था।
रामायण मेले आयोजित करने के पीछे लोहियाजी उद्देश्य था। भगवान राम के मर्यादा पुरूषोत्तम के चरित्र को जन जन तक पहुँचाना।
उपर्युक्त सारे सन्दर्भो का स्मरण करना आज अनिवार्य हो गया है।
जैसा की शुरुआत में कहा गया है कि राम जी स्पर्श से साधारण पत्थर भी तैरने लगे गए।
अहम सवाल यह है कि, हम पाषाण हॄदय कब पसीजेंगे?
गीतकार शकील बदायुनी रचित यह भक्ति गीत मौजु है।
मन तड़पत हरि दर्शन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
विनती करत हूँ रखियो लाज

गीतकार जावेद अख़्तर का लिखा इस भजन का स्मरण करना भी अनिवार्य है।
ओ पालनहारे निर्गुण और न्यारे
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं
हमरी उलझन, सुलझाओ भगवन
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं
सच में भगवान यह विकट उलझन जल्दी सुलझाओ।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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