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ना घोड़ा, ना राजकुमार

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वैभव पांडे

अगर आप एक कुंवारी लड़की से पूछो कि वह किससे शादी करेगी तो वह कहेगी कि एक सपनों का राजकुमार, घोड़े पर सवार होकर आएगा और उसकी मांग सितारों से भर देगा । ठीक उसी प्रकार अगर आप किसी बेरोजगार से पूछो कि उसे कैसी नौकरी चाहिए तो वह अपने सपनों की मैनेजर वाली नौकरी के बारे में बताएगा, जिसमें उसका अलग से केबिन हो, गाड़ी हो, चपरासी हो । हमारी भी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी । दिन मुफलिसी के थे । पर हमारी आंखों में भी सपनों की नौकरी के ख्वाब थे – एक अदद मैनेजर वाली नौकरी जिसमें घंटी दबाते ही चपरासी चाय और पानी लेकर हाजिर हो जाए। दूसरी घंटी दबाते ही एक सुंदर सी सेक्रेटरी हाजिर हो जाए । गौरमतलब हो कि जिस तरह कुंवारी लड़की के ख्वाब में राजकुमार के साथ-साथ उसका घोड़ा भी सुंदर होता है वैसे ही एक बेरोजगार के ख्वाब में नौकरी के साथ-साथ सेक्रेटरी भी सुंदर होती है। हमारे भी दिन बेरोजगारी वाले थे पर ख्वाब कलेक्टरों वाले थे , जेब में पिताजी के दिए हुए₹200 ही थे पर पूरे जिले को जेब में लेकर घूमने की बात हम सोचा करते थे। 

मनोज मुंतसिर की वो पंक्तियां हैं ना – 

फटे जूते पहनकर सूरज पर चढ़े थे,, 

सपने हमारे हरदम औकात से बड़े थे।।

 हमारे प्रिय मित्र शुक्ला जी कहा करते थे कि ग्रेविटी मेंटेन करके रखना जरूरी है। इसीलिए हमने पान ठेला पर खड़े होना भी छोड़ दिया था । इन्हीं सुंदर ख्वाबों के बीच एलआईसी में ADO का पद निकला, आधा अधूरा जो जॉब प्रोफाइल पढ़ा तो लिखा था कि रूरल एरिया में ट्रेनिंग देनी है । हमें ये नौकरी भा गई। मैनेजर नहीं तो ट्रेनर ही सही, फटाफट फॉर्म भर दिया। चयन पश्चात जब STC (सेल्स ट्रेनिंग सेंटर) रायपुर पहुंचे तब जाकर पता चला कि हमें तो इसमें घूम घूमकर बीमा बेचना होगा।अचानक से लगा कि मेरा सुंदर सपना टूट गया। हाय! मेरी मैनेजर वाली नौकरी!

 ट्रेनिंग पूरी करके भारी मन से जब घर पहुंचा तो पाया कि पड़ोस वाली भाभी  मेरी मां से अपना दुखड़ा रो रही थी, –  “शादी के पहले क्या-क्या सोचा था? पर शादी के बाद ना तो घोड़ा मिला ना राजकुमार मिला!” दरअसल आज पड़ोसन का अपने पति से खटपट हो गई थी। जब आप दुखी होते हैं तो पूरा संसार आपको दुखी नजर आता है और उस भाभी की तकलीफ मैं बहुत अच्छे से समझ सकता था क्योंकि मेरा भी सपना जो टूटा था।पर अब कुछ हो नहीं सकता था क्योंकि पूरे रिश्तेदारी में सरकारी विकास अधिकारी की नौकरी की मिठाइयां बंट चुकी थी, मैं सबसे बधाइयां ले चुका था । तो मैंने सोचा चलो नौकरी करते-करते ही अपने सपने की नौकरी को पंख देते रहेंगे,तैयारी करते रहेंगे। जिस प्रकार एक नया नया किराना स्टोर वाला अपनी दुकान को सुपर बाजार कहता है ,एक नाई अपनी दुकान को हेयर स्टाइलर कहता है , कपड़ा दुकान वाला अपनी दुकान को बुटिक कहता है , ठीक वैसे ही जब हमारा कोई परिचित मुझसे पूछता कि मेरी नौकरी में काम क्या रहता है ? तो मैं अपने काम का ऐसा क्लिष्ट तरीके से वर्णन करता कि कभी-कभी तो मुझे भी समझ में नहीं आता था कि मेरा जॉब प्रोफाइल क्या है!  और इन सब बातों का सीधा असर मेरे प्रदर्शन पर पड़ता था, मेरा कॉस्ट रेशियो गिरता जाता था। मैं चिंतित था । प्रिय मित्र कौशिक जी ने कहा कि कलेक्टर जब बनोगे तब बनोगे पर जब तक LIC में हो जी जान से इस कार्य को करो । शुभचिंतक मित्रों ने समझाया की अपनी नौकरी से प्रेम करो और मैंने वैसा ही किया। अपने कार्य के प्रति समर्पण का भाव जबसे रखने लगा, मैंने पाया कि मेरी तो दुनिया ही बदल गई । LIC का एक नया रूप मैंने देखा, जिसमें मेरी छोटी से छोटी जरूरत का भी ध्यान LIC  रखती थी ।  सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह थी की एक अल्हड़ बेरोजगार लड़के को LIC ने एक जिम्मेदार सरकारी कर्मचारी के रूप में समाज में प्रतिष्ठित कर दिया था ।

जिस प्रकार किसी भी लड़की को उसके सपनों का राजकुमार नहीं मिलता पर वो महिला अपने प्रेम और समर्पण से एक साधारण से लड़के को राजकुमार बना देती है , ठीक उसी प्रकार किसी भी बेरोजगार को अपने सपनों की नौकरी कभी नहीं मिलती पर अपनी मेहनत और लगन से उस साधारण सी नौकरी को  सपनों की नौकरी बना देना ही सफलता है । और यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना ही अच्छा । 

आप सभी को एलआईसी स्थापना दिवस की शुभकामनाएं !

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