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‘मुनाफ़े के लिए और क़त्लेआम नहीं’,‘क़त्लेआम के लिए कोई काम नहीं’ 

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स्वदेश सिन्हा

अमेजन और गूगल समेत सूचना तकनीकी क्षेत्र के कर्मचारी पिछले लंबे समय से अमेरिकी कंपनियों और इज़रायली हुकूमती-फ़ौज के बीच व्यापारिक संबंधों के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करते आए हैं। 16 अप्रैल को गूगल कर्मचारियों द्वारा कंपनी के न्यूयार्क और कैलिफ़ोर्निया स्थित दफ़्तरों में इसके विरुद्ध रोष प्रदर्शन भी किया गया। ‘मुनाफ़े के लिए और क़त्लेआम नहीं’,‘क़त्लेआम के लिए कोई काम नहीं’ आदि नारों वाली तख्तियां उठाए हुए इन कर्मचारियों की मांग थी कि गूगल द्वारा इज़रायली हुकूमत के साथ 2021 में शुरू किए गए 1.2 अरब डॉलर के ‘प्रोजेक्ट नींबस’(यह ठेका अमेजन को भी दिया गया है) के लिए अपनी सेवाएं देना बंद करे। इन कर्मचारियों का दावा है कि हमारे द्वारा विकसित की गई तकनीक को इज़रायली हुकूमत द्वारा फ़ि‍लिस्तीनियों के क़त्लेआम के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इस बारे में गूगल द्वारा कर्मचारियों के साथ बातचीत करने की बजाय 18 अप्रैल को पुलिस और लाठियों के दम पर उन्हें जबरन उठा दिया गया और लगभग 50 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया।

2021 में इज़रायली हुकूमत द्वारा फ़ि‍लिस्तीनियों को ए.आई. (आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस) की मदद से निशाना बनाने के लिए ‘प्रोजेक्ट नींबस’ शुरू किया गया था। इस प्रोजेक्ट के लिए ए.आई. तकनीक,डाटा संभालने और पड़ताल आदि के लिए अमेजन और गूगल को एक साझा ठेका दिया गया था,जिसके लिए गूगल द्वारा अपनी तकनीक; जिसमें चेहरे की पहचान करने, तस्वीरों का वर्गीकरण करने और यहां तक की चेहरे के हाव-भाव पढ़ने (यह तकनीक अभी तक व्यवहार में सिद्ध नहीं हुई है),तस्वीरें, आवाज़ और लिखाई के आधार पर व्यक्ति के उद्देश्यों का अंदाज़ा लगाने आदि और इस सबके लिए इंटरनेट का बुनियादी ढांचा (क्लाउड कंप्यूटिंग) की सेवाएं दी जा रही हैं।

फ़ि‍लिस्तीनी लोगों के क़त्ल में इज़रायली हुकूमत बर्बरता की हर दिन नई हदों को पार कर रही है। गूगल,अमेजन,मेटा (फे़सबुक,वाट्सअप, इंस्टाग्राम की मातृ कंपनी) आदि बड़ी अमेरिकी कंपनियों की सेवाओं के उपयोग के ज़रिए ए.आई. द्वारा हमास के लड़ाकों की ‘हत्या सूची’ तैयार की जाती है और फिर इसे सूची में शामिल व्यक्तियों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फ़ि‍लिस्तीनी और इज़रायली पत्रकारों द्वारा मिलकर जारी की जाने वाली पत्रिका ‘+972’ द्वारा अपनी जांच में यह खुलासा किया गया है कि हमास लड़ाकों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल की जा रही इस सूची द्वारा 7 अक्टूबर से ग़ाज़ा पर जो बमों की वर्षा की जा रही है,उसमें बड़े स्तर पर आम फ़ि‍लिस्तीनी नागरिक निशाना बने हैं।

अब तक लगभग 40,000 आम फ़ि‍लिस्तीनी लोगों का इज़रायली फ़ौज द्वारा क़त्ल किया जा चुका है। इनमें लगभग 10,000 बच्चे और 15,000 औरतें हैं। ऐसा नहीं है कि ये निर्दोष आम नागरिक जिनमें आधे से ज़्यादा औरतें और बच्चे हैं, ग़लती से मारे गए हैं,बल्कि इज़रायली हुकूमत द्वारा जानबूझकर यह जानते हुए कि बमों द्वारा आम लोग मारे जाएंगे,योजनाबद्ध ढंग से यह क़त्लेआम किया जा रहा है। इस क़त्लेआम के लिए मुख्य तौर पर ए.आई. आधारित हथियारों को इस्तेमाल में लाया जा रहा है। उपरोक्त पत्रिका की जांच रिपोर्ट के अनुसार इज़रायली फ़ौज द्वारा इसके लिए ए.आई. प्रोग्राम ‘लैवेंडर’ का इस्तेमाल किया जा रहा है,जो निशाने के लिए व्यक्तियों की निशानदेही करता है। इस ए.आई. प्रोग्राम के लिए जो बुनियादी ढांचा (स्टोरेज और प्रोसेसिंग) और ज़रूरी डाटा गूगल, मेटा और अमेज़न जैसी कंपनियां मुहैया करवाती हैं।

यह आमतौर पर ज़ाहिर तथ्य है कि फ़ैसले लेने के लिए ए.आई. के नतीजों पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता,इसके लिए इंसान द्वारा ए.आई. की पेश की जाने वाली संभावनाओं की पड़ताल करना ज़रूरी है,पर उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार 7 अक्टूबर के हमले में शुरू के हफ़्तों के दौरान तो इज़रायली फ़ौज पूरी तरह ए.आई. प्रोग्राम ‘लैवेंडर’ पर निर्भर थी। इज़रायली हुकूमत द्वारा फ़ौज के अफ़सरों को असीमित अधिकार दिए गए हैं कि वे इस ए.आई. द्वारा तैयार की गई ‘हत्या सूची’ के अनुसार निशाने लगाएं। यह तय करने के लिए कि इस सूची में निशाना हमास का लड़ाका है या आम नागरिक इसके लिए सिर्फ़ ज़्यादा से ज़्यादा 20 सेकंड पड़ताल की जाती थी और वह भी ज़मीनी जानकारी द्वारा पुष्टि किए बिना। निशाना बनाने से पहले सिर्फ़ यह तय किया जाता था कि निशाने पर खड़ा व्यक्ति मर्द है या औरत। अगर ए.आई. द्वारा निशाने के लिए औरत को चुना जाता था,तो इसका मतलब था कि यह ग़लत है, क्योंकि हमास लड़ाकों में औरतें नहीं हैं। यह जानते हुए कि यह ए.आई. प्रोग्राम अक्सर ग़लत चुनाव करता है, फिर भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

 उपरोक्त रिपोर्ट एक और तथ्य सामने लाती है,जो इज़रायली शोषकों की बर्बरता और बुज़दिली को पेश करता है। हमले के लिए चुने गए व्यक्ति को लड़ाई के दौरान निशाना नहीं बनाया जाता था, बल्कि तब हवाई हमला किया जाता था,जब वह घर पर हो और ख़ासतौर पर रात को जब पूरा परिवार उसके साथ मौजूद होता था। यही कारण है कि अब तक हुई मौतों में औरतों और बच्चों की अधिक गिनती है। ऐसा नहीं है कि इज़रायली हुकूमत द्वारा फ़ि‍लिस्तीनियों के क़त्लेआम के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए। इन नियमों के अनुसार अगर ‘हत्या सूची’ में चुना गया व्यक्ति हमास का छोटे रैंक का है, तो उसे मारने के लिए 15 से 20 निर्दोष लोगों का क़त्ल किया जा सकता है और अगर कोई ऊंचे रैंक का है तो इसके लिए 100 निर्दोष लोगों का क़त्ल किया जा सकता है। इज़रायली बर्बरता के ये नियम इसलिए बनाए गए हैं,क्योंकि छोटे रैंक के लड़ाकों के लिए सस्ते मिसाइल का उपयोग किया जा सके और बड़े रैंक वाले के लिए महंगे। इसी रिपोर्ट के अनुसार 17 अक्टूबर 2023 को हमास के एक कमांडर आयमान नोफ़ल को मारने के लिए 300 से ज़्यादा निर्दोष लोगों का क़त्ल करने की मंजूरी दी गई और इस हमले में लगभग 15 से ज़्यादा घरों को पूरी तरह उड़ा दिया गया।

फ़ि‍लिस्तीनी लोगों के इस क़त्लेआम को अमेरिका और इसके संगी पश्चिमी देशों की हुकूमतों की मदद के बलबूते अंज़ाम दिया जा रहा है। इस क़त्लेआम से हथियार उद्योग के पूंजीपति रिकॉर्ड-तोड़ मुनाफ़ा कमा रहे हैं। उपरोक्त निर्दोष लोगों के ख़ून से मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियों में गूगल,मेटा और अमेजॉन जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। इनके द्वारा यह दावा किया जाता है कि हम तकनीक द्वारा लोगों की ज़िंदगी आसान बना रहे हैं। आज साम्राज्यवादी हुकूमत द्वारा अपने राजनीतिक हितों (अंत में मुनाफ़े के लिए) निर्दोष लोगों का युद्धों द्वारा क़त्लेआम किया जा रहा है।

फ़ि‍लिस्तीनियों के जारी क़त्लेआम के बारे में कथित ‘अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार’ और ‘संयुक्त राष्ट्र’ जैसी साम्राज्यवादी संस्थाएं सिर्फ़ ज़ुबान चला रही हैं। वहीं संसार भर के आम मेहनतकश लोग अपने देश, नस्ल,संप्रदाय आदि की हदें लांघकर फ़ि‍लिस्तीन के हक़ में साम्राज्यवादी और इज़रायली बर्बरता के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय भाईचारे की भावना का इज़हार कर रहे हैं। संसार के अलग-अलग देशों में लाखों की गिनती में फ़ि‍लिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शन हो रहे हैं।

गूगल कर्मचारियों के उपरोक्त संघर्ष के अलावा कई साम्राज्यवादी देशों के बंदरगाह के मज़दूरों ने इज़रायल जाने वाले फ़ौजी साजो-सामान को लादने से इनकार कर दिया। जुल्मों-सितम के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीयता की भावना की यह अभिव्यक्ति दिखाती है कि आम मेहनतकश और मज़दूर ही सच्चे अर्थों में विश्व शांति का झंडा बुलंद कर सकते हैं और विश्व शांति के लिए ज़रूरी है कि अन्यायपूर्ण युद्धों के लिए ज़िम्मेदार इस मौजूदा पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा जाए।

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