
निर्मल कुमार शर्मा
पैलियोजेनेटिक्स या Paleogenetics
विज्ञान की वह शाखा है जिसमें प्राचीन जीवों के जेनेटिक मटीरियल के जरिए इतिहास का अध्ययन किया जाता है। स्वीडिश जेनेटिस्ट स्वांतेपाबो ने वैज्ञानिकों को वह नई मेथडॉलजी के रूप में विज्ञान की एक बिल्कुल नई और आधुनिकतम् शाखा प्रदान कर दिया है,जिसके आधार पर अत्यंत प्राचीन मानव मतलब प्रागैतिहासिक काल के मानवों या किसी प्रकार के अन्य जातियों के जीवों की हड्डियों के अवशेषों से डीएनए निकाल कर उनका अध्ययन करना अब बहुत आसान हो गया है ! इस दृष्टिकोण से देखें तो स्वीडिश जेनेटिस्ट स्वांतेपाबो द्वारा प्रदत्त योगदान दो चरणों में विभक्त है। एक तो यह कि अपने प्रयासों से उन्होंने मानव के क्रमिक विकास से जुड़ी कई जटिल गुत्थियों को सुलझा दिया। दूसरे यह कि जो गुत्थियां अभी तक नहीं सुलझ पाई हैं,उन्हें सुलझाने के लिए कई अतिआवश्यक उपकरण भी उन्होंने उपलब्ध करा दिए हैं,जो भविष्य के वैज्ञानिकों के लिए बहुत उपयोगी साबित होने वाले हैं। इस प्रकार हम जेनेटिस्ट स्वांते को पैलियोजेनेटिक्स का जनक भी कह सकते हैं !

इस वर्ष 2022 में इस दुनिया के सबसे सुप्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या चिकित्सा क्षेत्र में काम करनेवाले स्वीडिश वैज्ञानिक और जेनेटिस्ट स्वांते पाबो को मिला है,स्वीडिश जेनेटिस्ट स्वांते पाबो द्वारा किया वह महान कार्य जिसके लिए यह नोबेल पुरस्कार उन्हें मिला है वह केवल हम समस्त मानवों के प्रागैतिहासिक काल के लिए ही नहीं,अपितु वर्तमान समय के लिए भी और बहुत कुछ हमारे भविष्य के लिए भी अत्यंत उपयोगी है ! नोबेल विजेता स्वीडिश जेनेटिस्ट स्वांते पाबो की खोज इस अर्थ में तो अतिमहत्वपूर्ण है ही कि इस धरती के यूरोपियन हिस्से में रहनेवाले हम मानवों के एक पूर्वजों की प्रजाति जो 250000 साल पूर्व से लेकर 40000 वर्ष पूर्व तक रहती आई थी,मनुष्य की हमारी यह प्रजाति,जिसे निएंडरथल मानव कहते हैं,लेकिन दुर्भाग्यवश मानव की वह प्रागैतिहासिक प्रजाति 40000 वर्ष पूर्व यूरोप में आए महाविनाशक हिमयुग के दौर में संपूर्ण रूप से इस धरती से विलुप्त हो गई ! यूरोप में एक युग ऐसा भी आया जब ये दोनों प्रागैतिहासिक मानव प्रजातियां मतलब नियंडरथल प्रजाति के मानव और आधुनिक मानव के पूर्वज मतलब होमोसेपियंस प्रजाति के मानव एक साथ रह रहे थे और इनके आपस में कुछ पारिवारिक व शारीरिक संबंध होने के सबूत भी मिलते हैं !

सुप्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार समिति के प्रबुद्ध सदस्यों ने भी कहा है कि स्वांते पाबो ने आज के इंसान के सबसे सबसे करीबी विलुप्त हो चुके रिश्तेदार प्रागैतिहासिक काल के एक मानव प्रजाति,जिसे नियंडर्थल मानव कहते हैं,की लगभग असंभव समझे जानेवाले जीनोम सीक्वेंसिंग के कार्य को भी करके उसे अब संभव बनाकर यह सिद्ध कर दिया है,कि अगर कोई व्यक्ति ईमानदारी,निष्ठा,लगन,प्रतिबद्धता और कर्मठता से कार्य करे,तो इस दुनिया और ब्रह्माण्ड में कोई भी ऐसा असम्भव कार्य नहीं है,जिसे किया नहीं जा सकता !
यही नहीं उन्होंने आज तक अनजान रही एक अन्य प्रागैतिहासिक मानव की विलुप्त हो चुकी प्रजाति डेनिसोवा की भी खोज कर दिया है ! इन दोनों मूल प्रजातियों से आज का इंसान किन अर्थों में समान और किन अर्थों में अलग है,यह जानकारी आधुनिक समस्त मानव प्रजाति के लिए न केवल दिलचस्प बल्कि बेहद उपयोगी भी हो सकती है। स्वांते पाबो का एक और कमाल यह स्थापित करता है कि जीन का प्रवाह नियंडर्थल से होमो सैपियंस मतलब आज के इंसान में भी हुआ था। मतलब यह कि जिस दौर में ये दोनों प्रागैतिहासिक मानव प्रजातियां एक साथ इस पृथ्वी पर मौजूद थीं,तब दोनों की संयुक्त संतानें भी हुई थीं। इस दिलचस्प जानकारी की सार्थकता इस बात में भी है कि विभिन्न मानव प्रजातियों के बीच जीन के स्थानांतरण का प्रभाव इम्यून सिस्टम पर भी पड़ता है।
यानी इससे यह स्पष्ट हो सकता है कि आज मानव शरीर विभिन्न संक्रमणों पर किस तरह से प्रतिरोधक क्षमता हासिल करेगा। वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस के जानलेवा संक्रमण के दौर से धीरे-धीरे मुक्त हो रही इस आधुनिक मानव प्रजाति की इस दुनिया में स्वांते पाबो द्वारा आविष्कृत
इस जानकारी की कितनी जरूरत है,इसकी कल्पना तक भी नहीं की जा सकती ! फिलहाल अभी भी इस क्षेत्र में बहुत काम होना होना शेष है। जानकारी के स्तर पर भी अभी तक यह साफ नहींं हो पाया है कि नियंडरथल मानव और आधुनिक मानव प्रजाति यानी होमोसेपियंस में मूलभूत वे कौन से अंतर थे,जिनकी वजह से नियंडरथल प्रजाति के मनुष्यों का इस धरती से समूल नाश हो गया ! और वे लोग इस धरती पर अपना अस्तित्व तक को भी नहीं बचा पाए और होमो सैपियंस बदले हालात में खुद को ढालते चले गए,लेकिन स्वांते पाबो ने आधुनिक दुनिया को वह रास्ता दिखा दिया है, जिससे अब इस बात की संभावना बहुत बढ़ गई है कि भविष्य में हम इस बात को साक्ष्य के साथ समझ पाएंगे कि आखिर मानवों की यह नियंडरथल नामक प्रागैतिहासिक काल की मानव प्रजाति आखिर विलुप्त क्यो हो गई ?
निएंडरथल मानव का नामकरण
________________इस धरती के आधुनिक मानवों की इस दुनिया में प्रागैतिहासिक मानव का नाम निएंडरथल इसलिए रख दिया गया,क्योंकि इस मानव प्रजाति की कुछ हड्डियां जर्मनी में स्थित एक घाटी जिसे
निअंडर की घाटी कहते हैं,में मिली थीं, इसलिए वैज्ञानिकों ने इस आदिम मनुष्य जाति का नाम नियंडरथल रख दिया। इसके अतिरिक्त फ़्रांस के ला फेरासी नामक स्थान पर भी वर्ष 1909 में एक 50000 साल पुरानी खोपड़ी मिली है। जिसके बारे मे यह दावा किया जा रहा है कि वह निअंडरथल मानव की ही है।इज़राइल के अमदु नामक जगह पर वर्ष 1961में हिसाशी सुजुकी ने एक 45000 साल पुरानी खोपड़ी की खोज की थी । यह निएंडरथल प्रजाति का व्यक्ति 180 सेंटिमिटर लम्बा था । वर्ष 1856 में फेल्डहॉफर ग्रॉटोनामक खोजकर्ता ने एक 45000 साल पुरानी निएंडरथल मानव की खोपड़ी निएनर वैली,जर्मनी में ढ़ूढ निकाला !
वैज्ञानिकों के अनुसार नियंडरथल मानव की ऊंचाई या कद अन्य मानव प्रजातियों यथा होमोसेपिंयंस से अपेक्षाकृत छोटा था। यह प्रजाति पश्चिम यूरोप,पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका में रहती थी। इस आदिमानव की प्रजाति आज से लगभग 250000 वर्ष पूर्व से 40000वर्ष पूर्व तक इस धरती पर रहती आई थी। इस प्रजाति का श्रेणी विभाजन मनुष्य की ही एक उपजाति के रूप में किया जाता है। इस प्रजाति का कद 4.5 से 5.5 फिट तक ही था। वर्ष 2007 में किये गए शोधों से यह पता चलता है कि इनके बालों का रंग लाल तथा त्वचा पीली हुआ करती थी।
निएंडरथल प्रजाति नामक प्रागैतिहासिक मानव के विलुप्ति के संभावित कारण
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वैसे इस बात पर दुनिया भर के वैज्ञानिक अभी भी एकमत नहीं हैं कि आखिर निएंडरथल प्रजाति के मानवों का आखिर समूल नाश क्यों हो गया ? फिर भी कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार निएंडरथल प्रजाति के मानवों के विलुप्ति के कुछ प्रमुख कारणों में एक मुख्य कारण यह है कि प्राचीन निएंडरथल मानव की खोपड़ी के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि वह प्रजाति इसलिए विलुप्त हो गई क्योंकि उनकी आँखें मौजूदा मनुष्यों की तुलना में बहुत बड़ी थीं, इसलिए इन बड़ी-बड़ी आंखों को जगह देने के लिए मस्तिष्क के वे भाग जो सोचने और गंभीर चिंतन करते हैं,उनकी खोपड़ी में इन अंगों के विकास के लिए स्पेस बहुत कम मिल पाया !निएंडरथल प्रजाति के मानवों की आँखें यूरोप की लंबी काली रातों में दूर – दूर तक देखने के लिए ही बनी थीं,लेकिन इन बड़ी आँखों की कीमत उन्हें उच्च स्तरीय विचार योग्य दिमाग को त्याग कर चुकानी पड़ी,लेकिन दूसरी तरफ मनुष्यों की अतिविशिष्ट और विकसित प्रजाति होमो सेपियंस के पास एक बेहतर और बड़ा दिमाग मौजूद था,इस बात का पुरातात्विक सबूत
है कि प्रागैतिहासिक होमोसेपिएंस मानवों के पास जानवरों की खालों को सिलने के लिए सुईयां उपलब्ध थीं ! जिनकी मदद से उन्होंने जानवरों की खालों को अपनी सुई से सिलकर गर्म कपड़े तैयार कर लेते थे,इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने बड़े समाज बनाए जिसकी मदद से वे यूरोप के हिमयुग जैसी बड़ी आपदा में भी स्वयं,अपने परिवार और अपने समाज को बचा पाने में सफल रह पाए ! और कम बुद्धिमान निएंडरथल प्रजाति का अत्यधिक ठंड में समूल सर्नानाश ही हो गया !
वैज्ञानिकों ने यह शोधकर सिद्ध कर दिया है निएंडरथल मानवों की प्रजातियों के पूर्वज रोशनी से लबालब अफ्रीकी महाद्वीप में रहते थे,जहां उन्हें बड़ी आंखों की आवश्यकता ही नहीं थी,लेकिन जब वे यूरोप में आए तब यहां की लंबी और घनी स्याह रातों में भी ठीक से देखने के लिए बड़ी-बड़ी आंखों की परम् आवश्यकता आन पड़ी और प्रकृति ने इन्हें बड़ी-बड़ी आंखों को प्रदान भी कर दिया !
निएंडरथल मानव भी उतने बुरे नहीं थे,जितना हालीवुड की फिल्मों उन्हें बतातीं हैं !
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एक और बहुत महत्वपूर्ण और सारगर्भित बाद यह है कि बालीवुड की फिल्मों में मानवों की निएंडरथल प्रजाति को बहुत खूंख्वार,बर्बर, क्रूर और हिंसक दर्शाया जाता रहा है,लेकिन डॉक्टर रॉबिन डनबार जैसे वैज्ञानिकों ने शोधकर यह बताया कि ‘निएंडरथल मानव भी व्यवहारिक तौर पर उतने बुरे नहीं थे,जितना बालीवुड के डायरेक्टर उन्हें बताते हैं ! हकीकत यह है कि बस वे होमोसेपियंस मानवों की तुलना में थोड़ा अक्लमंद कम थे !
निएंडरथलप्रजाति के मानवों पर शोध करकेऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय की एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आयलीना पीयर्स ने इस परंपरागत मान्यता को जांचने के लिए उन्होंने 13 निएंडरथल प्रजाति के मानवों की और 32 होमोसेपियंस प्रजाति के लोगों की खोपड़ियों पर गहन अध्ययन और शोध किया ।
आयलीना पीयर्स के अनुसार ‘ निएंडरथलप्रजाति के मानवों का मस्तिष्क दृश्य आधारित होने के कारण उनका शरीर पर काबू बेहतर रहा होगा वे दिख रही चीज़ों को बेहतर ढंग से समझ पाते थे,लेकिन इसकी वजह से उनके दिमाग के महत्वपूर्ण हिस्से विकसित ही नहीं हो पाए जो बेहतर सोच देते हैं या सामाजिक संरचना प्रदान करने में मददगार होते हैं ! ‘
इसी विषय पर लंदन के नैचरल हिस्ट्री म्युज़ियम में शोध कर रहे एक अन्य लब्धप्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर क्रिस स्ट्रिंगर या Professor Chris Stringerभी आयलीना पीयर्स द्वारा निकाले गए नतीजों का भरपूर समर्थन करते हैं ! प्रोफ़ेसर स्ट्रिंगर जोरदार ढंग से इस बात को कहते हैं कि ‘हम ऐसा मान सकते हैं कि दिमाग के सोचने वाले हिस्सों के छोटे होने के कारण निएंडरथल मानव एक सीमित दायरे में सीमित हो गए होंगे,इसके साथ ही वे बड़े समूह ही नहीं बना पाए होंगे,क्योंकि यह सब करने के लिए मानव में एक बड़ा और विकसित मस्तिष्क अत्यंत आवश्यक है। ‘
प्रोफ़ेसर स्ट्रिंगर कहते हैं इस तरह की छोटी छोटी चीज़ों की वजह से ही होमो सेपियंस इस धरती पर अपना अस्तित्व बचाए रखने में पूर्णतः सफल रहे, वे आगे बताते हैं कि ‘अगर आप प्रतिक्रया देने में,पड़ोसियों से मदद लेने में और जानकारी बांटने में महज़ कुछ प्रतिशत ही बेहतर हों तो यह आपके जीवन और मरण के लिए बहुत बड़ा फर्क पैदा कर देता है ‘
अब इस दुनिया के सभी प्रबुद्ध और जीज्ञासु लोग अब आशा करते हैं कि स्वीडिश जेनेटिस्ट स्वांतेपाबो द्वारा अविष्कृत विज्ञान की बिल्कुल नई और आधुनिकतम् शाखा,जिसे वैज्ञानिकों द्वारा पैलियोजेनेटिक्स Paleogenetics नाम दिया गया है,की मदद से आज के युवा वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक मानवों के जीवन,रहनसहन और उनके खानपान आदि संबंधित जानकारी के बारे में बेहतर से बेहतर जानकारी जुटा कर वर्तमान मनष्यों और इस दुनिया को उपलब्ध कराने में सफल होंगे !
-निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष,बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com