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खेल खेल ना रहा !

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  प्रो. राजकुमार जैन

 विश्व क्रिकेट के फाइनल मैच का अंत कल हुआ। आज ही T20  के मैच सीरीज की मुनादी कर दी गई। ऑस्ट्रेलिया के जीतने और भारत के हारने पर हिंदुस्तान में मातम छा गया जो की स्वाभाविक है। परंतु इस मैच ने बहुत सारे सवाल भी खड़े किए हैं। क्या खेल का प्रतीक केवल क्रिकेट ही है? क्रिकेट ही ऐसा खेल है जिसमें खेल के पूरे वक्त चैनलों पर खेल कंमट्री, आंखों देखी मुसलसल चलती है। पल-पल की खबरें, हेड लाइनों से लोगों को वाकिफ करवाया जाता रहता है। मैच शुरू होने से काफी पहले से ही इसके खिलाड़ियों और क्रिकेट के इतिहास पर चैनलों पर बहस, विशेष आयोजन शुरू हो जाते हैं। ग्लैमर के लिए शान शौकत तामझाम  का इंतजाम  सरकारी और मालदार व्यापारिक धरानों  की शिरकत से बेहतर से बेहतर दिखाने के लिए हो जाता है। ग्लैमर के इस खेल में रूपयो के खर्चे की बात बेमानी है।

 सवाल यह है कि क्या यह जायज है? गांव गरीब के हिंदुस्तान में क्या यही खेल खेला जाता है? हॉकी फुटबॉल वॉलीबॉल कबड्डी कुश्ती जैसे खेल जिसमें क्रिकेट की तुलना में बहुत ही कम खर्चे  मे खेले जाते  हैं। गांव में देहाती बच्चे कपड़े को बांधकर गेंद बनाकर ऐसी लकड़ी जिसका एक सिर चौड़ा हो उस हॉकी से खेलना शुरू कर देते हैं। कबड्डी का आलम यह है की चिकनी मिट्टी बिछाकर कही भी खेल का मैट बना दिया जाता है। इन खेलों के हालात क्या है, जब ग्लैमर नहीं तो पैसे कहां से आए? आज हालात यह है की राष्ट्रीय स्तर खेलने वाली टीमों के भारतीय खिलाड़ियों के नाम तो छोड़ो उनके कप्तान तक का नाम आम हिंदुस्तानी नहीं जानते। इसका असर यह हुआ की राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ीयो के घर वाले भी अफसोस के साथ कहते हुए सुनते  मिल जाएंगे  काश हमारा बच्चा भी क्रिकेट खेलता। क्या कारण है कि आज भी अंतर्राष्ट्रीय खेलों में हिंदुस्तान को सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल कुश्ती में मिलते हैं। वह इसलिए कि गांव में आज भी सबसे सस्ता तथा मजबूत शरीर बनाने का खेल कुश्ती है। आज जो हालात बने हैं इसके पीछे एक मुकम्मल इतिहास है। अभिजात्य, बड़े लोगों के खेल सें इसकी शुरुआत हुई। इंग्लैंड के हाउस आफ लॉर्ड के शहजादे आम लोगों के खेल को खेलने में तोहीन महसूस करते थे।उनके लिये क्रिकेट के खेल की शुरुआत हुई। यही एक ऐसा खेल बना जिसमें खेल के साथ उसकी ड्रेस का कोड भी जोड़ दिया गया। क्रिकेट के अलावा अधिकतर खेलों में  कमीज हाफ पेंट निकर का इस्तेमाल  होता है, परंतु क्रिकेट में फुल पैंट, इसमें क्रिकेटरों का लंच ब्रेक, ब्रेक टी तथा टोपी कैप स्वेटर वगैरह को अंपायर को संभालना पड़ता है। हाउस आफ लॉर्ड के शहजादों के पास समय बिताने तथा बहुत ज्यादा थकान ना हो चार-पांच दिन तक एक खेल जारी रखने की व्यवस्था की गई। बाकी खेलों में कुछ घंटे में ही  खिलाड़ियों के दमखम की पड़ताल हो जाती है। इस खेल मे पाकिस्तान के साथ मैच होने पर खेल भावना की जगह एक जंग का माहौल बन जाता है। क्रिकेट को अभिजात बनाने की कीमत पर हिंदुस्तान के दूसरे खेलों को दोयम दर्जे का बना दिया गया। यह हमने अपनी गुलामी के दौर मे अपने मालिक यानी अंग्रेजों की नकल से अंगीकार किया। आज भी क्रिकेट दुनिया के अधिकतर उन्हें मुल्कों में खेला जाता है जहां बरतानिया हुकूमत का राज था। बाकी दुनिया में आज भी फुटबॉल के खेल का नशा है, यहां पर क्रिकेट खेली ही नहीं जाती। अमेरिका चीन फ्रांस जापान रूस जैसे महाबली शक्तिशाली समृद्ध मुल्कों में अभी तक यह अपनी पैठ नहीं बना पाया।     मेरे लिखने का यह कदापि मतलब नहीं है, की क्रिकेट के खेल को न खेला जाए। मेरी चिंता सुनियोजित रूप से बनाई गई इसकी अभिजात्य  छवि से है जिसमें नेता से लेकर अभिनेता तक शिरकत करने पर अपनी शान समझते हैं।

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