अग्नि आलोक
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असम्भव नहीं है कुछ?

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शशिकांत गुप्ते

आज भूले बिसरे गीतों को सुनते हुए अचानक ही सत्तर के दशक का फिल्मी गीत सुनाई दिया।
सन 1966 में प्रदर्शित फ़िल्म दस लाख यह गीत लिखा है, गीतकार प्रेम धवन ने।
गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा
तुम एक पैसा दोगे वह दस लाख देगा
मै उक्त गीत की पंक्तियां ध्यान से सुन रहा था और सोच रहा था।यह गीत जिस अभिनेता और अभिनेत्री पर फिल्माया गया है। उन्होंने गरीब का अभिनय करने के लिए कितना पारिश्रमिक लिया होगा? गीतकार को इस तरह का गीत लिखने का मानधन मिला ही होगा? गीत के गायक और संगीतकार ने भी निश्चित ही निःशुल्क अपनी सेवाएं तो प्रदान नहीं की होगी?
ऐसे कुछ व्यवहारिक प्रश्न मेरे मन में उपस्थित हुए।
उसी समय सीतारामजी का आगमन हुआ। मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए सीतारामजी ने पूछा मानसिक रूप से किस ऊहापोह में उलझ गए हो?
मैने, सीतारामजी के समक्ष अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
सीतारामजी ने कहा कि, सच में आपने जिज्ञासावश जो प्रश्न उपस्थित किएं हैं? इन प्रश्नों के पीछे जो आपका आशय है,वह भी समझना जरूरी है?
इन प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
सीतारामजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि, दुर्भाग्य से सामाजिक,धार्मिक,सांस्कृतिक हर क्षेत्र का राजनीतिकरण होने से हरएक क्षेत्र अपने मूलभूत सिंद्धान्तों से भटक गया है। राजनीतिकरण के साथ हरएक क्षेत्र में पूंजीवाद भी हावी हो गया है।
पूंजीवाद के बढतें प्रभाव के कारण हरक्षेत्र का बाजारीकरण हो रहा है। बाजारीकरण के कारण हर क्षेत्र अपनी छद्म उपलब्धियों को विज्ञापनों में ही दर्शाता है।
राजनीतिकरण,बाजारीकारण और पूंजीवाद एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हो गएं हैं।
शुरुआत में फिल्मी गीत की जो पंक्तियां उद्धृत की है। उन पँक्तियों में गरीब दूसरों से सिर्फ एक पैसा मांगता है,बदले में दसलखा रुपये देने का आश्वासन देता है।
अद्भुत कल्पना है। ठीक एक वोट के बदले पंद्रहलाख के जुमले की तरह ही प्रतीत होती है।
आश्चर्य होता है,जब भिखारी खुद तो भीख मांगते हैं और दुआएं तो ऐसे देता है मानो भिखारियों का भगवान के साथ कोई अज्ञात अनुबंध है।
भिखारियों और धनकुबेरों सम्भवतः भगवान से कोई गुप्त समझौता होना चाहिए।
भिखारी कभी भूखा नहीं रहता है। देश की आर्थिक स्थिति कितनी भी कमजोर क्यों न हो।धनकुबेरों द्वारा मंदिर में चढ़ावे के रूप में बेतहाशा धन गुप्तदान के रूप में दिया ही जाता है।
सच में सब कल्पनातीत है। आश्चर्य जनक किंतु सत्य है।

शशिकांत गुप्ते

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