—सुसंस्कृति परिहार
इन दिनों नीट 24 की दोनों परीक्षा को लेकर जो परिदृश्य सामने आया है वह नया नहीं है आहिस्ता आहिस्ता उसका एक बड़ा स्वरूप कुछ गलतियों के कारण जब सामने आया तभी वह सवालों से घिरा है।वरना सारी व्यवस्था नीट और क्लीन ही समझी जाती रही। यही हाल चुनावी परीक्षा का है। जिसमें अनगिनत सवाल उठाए गए किंतु वह निरंतर विश्वसनीय बनाया हुआ है। नीट 24 में जो कुछ हुआ उसके तमाम सच सामने आ गए हैं किन्तु यदि कार्रवाई भी हुई तो वह किसी अदने पर होकर समाप्त हो जाएगी या परीक्षा की एक नौटंकी और सही।
तिकड़मी लोगों के गिरोह इस दस साल में इतने पनपे हैं कि उन्हें किसी का डर नहीं।इन तिकड़मी लोगों को इलेक्टोरल बांड से जोड़कर देखें तो यह इंगित करता है कि किस तरह हर तरह के षड्यंत्रों और घपलों की छूट भाजपा सरकार ने इसे खरीदने वालों को दी।जब ज़रूरी दवाओं के दाम तिगुने चौगुने हुए तो नीट या चुनावी परीक्षा में जो कारगुजारियां दिखाई दी हैं वह तो सामान्य ही लगती हैं।सब जांच के घेरे में आती हैं पर निष्पक्ष जांच की उम्मीद अब कहां ?
जहां तक पेपर लीक का मामला है वह नया नहीं है सब चल रहा है बरसों से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात प्रदेशों की बोर्ड परीक्षाओं में जब शिक्षकों से यह कहा जाता है कि रिजल्ट बिगड़ा तो उसकी खैर नहीं तो वह विद्यार्थियों के लिए नकल की तरकीबें निकाल लेता है मेरिट चाहिए तो वह भी। आसान तरीका बता देता है कि फलां फलां सेंटर में इतने लाख जमा करो परीक्षा में बैठो और जैसा चाहो वैसा रिजल्ट बनाओ।ये सब खुलेआम होता रहा किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो नीट जैसी परीक्षाएं कैसे अछूती रह सकती हैं।ये तो बड़ी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा है बहुत मायने रखती हैं और बहुत कमाई का जरिया भी।
मध्यप्रदेश प्रदेश में व्यापम के दौरान तकरीबन चालीस पचास लोग मारे गए।जो इस धांधली के जीते जागते गवाह थे। इसकी नाटकीय कितनी जांच पड़तालें चली पर सब धुआं बन के उड़ गई। सुधार ये हुआ कि व्यापम नाम बदल दिया गया। पिछले सालों में यहां पटवारी भर्ती परीक्षा का हाल भी ठीक नीट की तरह ही था एक सेंटर से पांच छै ढपोरशंख मेरिट में आए । पत्रकार मिलने पहुंचे तो उनमें से चयनित उम्मीदवार सामान्य मध्यप्रदेश की जानकारी और पेपर में आए सरल सवाल के उत्तर नहीं दे पाए मुंह चुराते रहे और कुछ भाग खड़े हुए। तब भी खूब विरोध हुआ पर हुआ कुछ नहीं वे सब सरकारी नौकरी शान से कर रहे हैं।बाकी पुलिस से पिटे लोग ठगे से घर में बैठे हुए हैं।
इस दौर में भाजपा शासित राज्यों में नौकरियां दबाव वश साज़िश के तहत खूब खूब निकाली जाती रहीं आवेदन के नाम पर बेरोजगार युवाओं से लंबी फीस वसूली गई। परीक्षाएं सालों बाद विलंब से हुई फिर पेपर आउट किए जाते रहे परीक्षाएं निरस्त होती रहीं एक परीक्षा के लिए तीन-तीन बार आवेदन शुल्क वसूला गया रोजगार किसी को नहीं मिला उनकी उम्र निकल गई। रवीश कुमार ने इस मुद्दे को खूब सिलसिलेवार उछाला पर इक्का दुक्का परीक्षा के सिवा कोई बात नहीं बनी।
आज़ नीट परीक्षा के प्रभावित छात्र आंदोलन रत हैं विपक्ष उनके साथ खड़ा है पर क्या इस सरकार से आप उम्मीद कर सकते हैं जो खुद बा खुद झूठ, चुनाव आयोग तथा ईडी, सीबीआई वगैरह की गलत कार्य प्रणाली के ज़रिए येन-केन प्रकारेण फिर सत्ता सीन हुई है। हालांकि वह अधर में लटकी सरकार है पर मनमौजी अवतार पुरुष अपने मनमाफिक काम आज भी कर रहा है उसे रोकना होगा वरना नीट और क्लीन की हमारी बुनियाद ना केवल परीक्षाओं से बल्कि हमारे जीवन से समाप्त हो जाएगी। चारों और गंदगी अव्यवस्था से हम घिरे होंगे।नीट परीक्षा और चुनावी परीक्षा में हुई गड़बड़ियों का प्रायश्चित करने से कुछ हासिल नहीं होगा।जब तक देश, खासकर युवा इस अव्यवस्था और गंदगी के ख़िलाफ़ एकजुट नहीं होगा ।