राजेन्द्र चतुर्वेदी
महाराष्ट्र में जो हुआ, उसे देखकर लग तो यह रहा है कि नुकसान एनसीपी का हो गया है लेकिन ऐसा है नहीं। एनसीपी का मतलब शरद पवार है, न कि अजित पवार। शरद पवार एनसीपी को फिर खड़ा कर देंगे।
अजित पवार के विद्रोह का सबसे ज्यादा नुकसान एकनाथ शिंदे को हुआ है। वह दिन बहुत दूर नहीं है, जब देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे और अजित पवार उपमुख्यमंत्री, तब एकनाथ शिंदे न घर के रहेंगे, न घाट के।
दरअसल, एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से इस हद तक सम्बन्ध खराब कर लिए हैं कि उन्हें उद्धव माफ नहीं कर सकते।
आरएसएस इस योजना पर काम कर रहा था कि देश में हिंदूवादी राजनीति का केवल एक चेहरा होना चाहिए और वह है, भाजपा। इस राजनीति के दूसरे चेहरों को नेस्तनाबूत कर दो। लिहाजा, शिवसेना आरएसएस के निशाने पर स्वाभाविक रूप से थी।
पहली बात तो यही है कि शिवसेना को खत्म करने के आरएसएस के अभियान में एकनाथ शिंदे एक टूल बन गए।
दूसरी बात, जिस तरह से आरएसएस को शिवसेना से चिढ़ है, उससे ज्यादा चिढ़ श्री नरेन्द्र मोदी को बाला साहेब ठाकरे से थी। इसलिए कि भाजपा के गलियारों में जब भी नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की बात होती थी, तब तब बाला साहेब ठाकरे मोदी जी का विरोध और सुषमा स्वराज का समर्थन किया करते थे।
यह अलग बात है कि 2014 के चुनाव की सुगबुगाहट से पहले ही बाला साहेब का निधन हो गया। देशी विदेशी कम्पनियों ने ऐसा जाल बुना कि मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बन गए।
लेकिन मोदी जी दुश्मनी भूल जाएं, ऐसा कैसे सम्भव है। इसके तोगड़िया और सीडी वाले जोशी जी समेत दर्जन भर उदाहरण दिए जा सकते हैं।
बाला साहेब भी मोदी जी को याद रहे ही होंगे। लिहाजा, बाला साहेब का बदला उनके परिजनों यानी उद्धव ठाकरे से लेने की कोशिश की गई। ठाकरे परिवार की ताकत शिवसेना है, जिसे खत्म करने के लिए पूरी ताकत लगा दी गई। और टूल थे एकनाथ शिंदे।
इस तरह एकनाथ शिंदे डबल टूल बने। अतः प्रार्थी को नहीं लगता कि उद्धव ठाकरे उन्हें माफ करेंगे। माफ किया भी नहीं जाना चाहिए।
कुल मिलाकर शिंदे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी भाजपा के साथ रहने को मजबूर होंगे। उन्हें न शिवसेना में जगह मिलेगी, न एनसीपी और कांग्रेस में।
अपने बूते पर शिंदे कुछ कर नहीं सकते।
बाला साहेब के एक अनन्य सहयोगी थे अनिल दिघे। शिवसेना की शुरुआत में दिघे साब के पास कार नहीं थी और उस समय एकनाथ शिंदे साब ऑटो चलाया करते थे। दिघे साब शिंदे साब के ऑटो से ठाणे से शिवसेना भवन जाते थे। कुछ दिनों बाद दिघे साब ने शिंदे साब को लाने, ले जाने के काम में परमानेंट लगा लिया।
शिवसेना की राजनीति में एकनाथ शिंदे साब की यही उपलब्धि है। यानी, उनके पास जो भी है, वह शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे का दिया हुआ है। आगे चलकर फजीहत भी सबसे ज्यादा उन्हीं की होनी है।