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अब अफीम प्रसंस्करण बजाज हेल्थ केयर कंपनी के हाथों में

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दो सौ वर्षों से सरकारी नियंत्रण में था व्यापार

हरनाम सिंह

 अफीम एक संवेदनशील वनस्पति है। इसकी खेती और व्यापार ने भारत ही नहीं दुनिया की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। भारत और वैश्विक पूंजीवाद के विकास में अफीम के व्यवसाय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं औपनिवेशिक काल में चीन में भी अफीम का नशा निर्यात कर मुनाफा कमाया गया। भारत में अंग्रेजी शासन काल से ही अफीम की खेती पर सरकार का नियंत्रण रहा है। आजाद भारत मैं भी इस नियंत्रण को जारी रखा गया। लगभग 200 वर्षों के पश्चात अब अफीम की खेती और प्रसंस्करण निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। अफीम की खेती से प्राप्त जीवन उपयोगी रसायनों से हजारों करोड़ रुपए की आमदनी अब पूंजी पतियों के जेब में जाएगी। केंद्रीय श्रम संगठन सीटू मध्य प्रदेश के  कार्यकारी अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह ठाकुर के अनुसार सरकार के इस निर्णय का विरोध श्रम एवं किसान संगठन कर रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार ने अल्कलॉइड निकालने के कार्य की अनुमति बजाज हेल्थ केयर कंपनी को दी है। यह कंपनी प्रतिवर्ष  सौ टन अफीम एवं अफीम के डोडे से प्रसंस्करण कर जीवन उपयोगी रसायन निकालेगी और उन्हें दवा कंपनियों को बेचेगी।

 *दो सरकारी कारखाने हैं देश में*

                 देश में अफीम प्रसंस्करण के लिए दो कारखाने हैं। एक मध्यप्रदेश के नीमच में तथा दूसरा उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में। दोनों कारखाने अफीम से विभिन्न रासायनिक तत्व निकाल कर दवा कंपनियों को बेचते हैं। जिससे भारत सरकार के खजाने में हजारों करोड़ रुपए का राजस्व पहुंचता है। अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की तरह अब अफीम प्रसंस्करण को निजी क्षेत्र को सौंपा जा रहा है। श्रमिक नेता आरोप लगा रहे हैं कि इस कार्य हेतु सरकार वर्षों से तैयारी करती रही है। इन कारखानों में विगत कई वर्षों से कर्मचारियों की नई भर्ती नहीं हुई है, नहीं नई मशीनें लगाई गई है। कारखानों की कार्य क्षमता निरंतर घटाई जा रही है, और कहा जा रहा है कि कारखाने मांग की आपूर्ति करने में विफल हैं।

 *क्या है अफीम*

               अफीम एक अत्यंत जहरीला और मादक पदार्थ माना जाता है। औषधि निर्माण में इसकी उपयोगिता प्राचीन काल से रही है। इसकी खेती के प्रारंभ होने की कोई निश्चित तिथि तो नहीं बताई जा सकती, परंतु 800 ईसा पूर्व से ही अफीम के उत्पादन के प्रमाण मिलते हैं। संस्कृत में इसे अट्टीफेन कहा गया है। अट्टी का अर्थ है सर्प और फेन का अर्थ उसके जहर से है। भारत में अफीम को काला सोना के नाम से भी जाना जाता है।

                अफीम की खोज का श्रेय यूनानीयों को जाता है। भारत में इसकी खेती 16वीं शताब्दी के प्रारंभ में शुरू हुई थी, जो कि तात्कालिक शासकों की आय का प्रमुख साधन थी। देश के अंदर अफीम नशे के रूप में भी खरीदा- बेचा जाता था। इसका निर्यात चीन में भी होता था। अफीम से अलकोलाइड बनाया जाता है जिससे 19 तरह की दवाइयां बनती है। इनमें दर्द निवारक खांसी व नींद की दवा प्रमुख है।

 *अफीम का अतीत और वर्तमान*

                19वीं सदी में भारत की अफीम ब्रिटेन- चीन- भारत त्रिकोण में महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। मालवा की अफीम खेती और व्यापार ने भारत के पूंजीपति वर्ग के ऐतिहासिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। 18 वीं सदी के अंत तक इस के व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार था। कंपनी ने अफीम व्यापार पर कब्जा बनाए रखने के लिए अपनी कीमतें तय की, लेकिन मालवा की अफीम तस्करी के जरिए बाहर जाती रही। वर्तमान विश्व में अफीम पैदा करने वाले 12 प्रमुख देशों में एक भारत भी है।

                सन 1916 से 1935 तक नीमच में अफीम उत्पादन और व्यवसाय एक अंग्रेज अधिकारी की देखरेख में होता था। 1959 में भारत सरकार ने अफीम एवं इससे संबंधित समस्त संस्थानों को अपने नियंत्रण में ले लिया। तभी से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन नारकोटिक्स विभाग के मार्फत अफीम की खेती करवाई जाती है। पूर्व में उज्जैन इंदौर कोटा और चित्तौड़गढ़ में अफीम के कारखाने थे। 1953 तक शनै: शनै: सभी कारखाने बंद करवा दिए गए। नीमच में एलकोलाइड उद्योग 1976 में स्थापित किया गया। यह कारखाना एशिया में अपने किस्म का एकमात्र उपक्रम है।

 *सामाजिक प्रभाव*

         अफीम मालवा क्षेत्र की प्रमुख फसल होने तथा इसके अवैध व्यवसाय ने इस अंचल की अर्थव्यवस्था को ही नहीं सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित किया है। अफीम की खेती गांव में किसानों की सामाजिक हैसियत को बढ़ाती है। वर्ष 1985 से पहले तक सरकार अफीम का सेवन करने वालों के लिए अनुज्ञा प्रदान करती थी। राजस्थान में अफीम को घोलकर कुसुंबा के रूप में समारोह विशेष में पिलाने का प्रचलन था जो अब गैर कानूनी है। ऐसे ही एक आरोप में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह फंस चुके हैं। नीमच से लगभग 35 किलोमीटर दूर राजस्थान के छोटे से गांव मंडफिया में स्थित सांवरिया जी के मंदिर की आय का मुख्य साधन अफीम तस्करों की आय है। अधिकांश तस्कर सांवरिया सेठ को अपना पार्टनर बनाकर तस्करी करते हैं। लाभ में से निर्धारित राशि मंदिर में भेंट की जाती है। छोटे से इस गांव के इस मंदिर की आय लगभग दो लाख रुपये प्रतिदिन है।

अफीम निकालने के लिए निजी कंपनी को मिली अनुमति, सीटू और एआईकेएस ने किया विरोध

भारत सरकार ने अफीम प्रसंस्करण और डोडे से सीधे अल्कालाइड निकालने का कार्य निजी कंपनी को देने का फैसला ले लिया है। बताया जा रहा है कि निजी कंपनी बजाज हेल्थ केयर को इन दोनों कार्य के लिए अनुमति दी गई है। इस मामले को लेकर सीटू और एआईकेएस ने विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने आरोप लगाया कि शासकीय अफीम कारखाने के बंद होने का खतरा बढ़ गया है।

साथ ही 150 वर्ष पुरानी सरकारी क्षेत्र की मोनोपली को खत्म करने का षडयंत्र है। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन सीटू के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि सरकार ने जनवरी से मार्च माह के बीच अफीम से अल्कालाइड बनाने और सीपीएस पद्धति यानी अफीम डोडे से अल्कलाइड बनाने के कार्य को निजी क्षेत्रों में देने को लिए रुचि की अभिव्यक्ति आमंत्रित की थी, जिसमें कई कंपनियों ने रुचि दिखाने के बाद अंतिम तौर पर बजाज हेल्थ केयर को अफीम से अल्कलाइड और अफीम के डोडे से सीधे से अल्कालाइड निकालने की अनुमति दी गई।

शैलेंद्र ठाकुर ने कहा कि सरकार का यह कदम शासकीय अफीम और क्षारोद कारखाना को करने की आशंका पैदा करता है। 150 वर्षों से अफीम के क्षेत्र मैं सरकारी आधिपत्य है और क्यों कि अफीम एक बेहद संवेदनशील द्रव्य है इसे निजी हाथ में नहीं दिया जा सकता था।

पहले भी निजी क्षेत्र की फार्मासूटिकल कंपनियां एनडीपीएस ड्रग्स की तस्करी करते हुए पकड़ी गई है। लेकिन वर्तमान सरकार ने करीब-करीब सार्वजनिक क्षेत्र के सभी क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने की मंशा के तहत ही अफीम के क्षेत्र को भी निजी हाथों में सौंपने की कवायद है।

इन कारखानों में पिछले कई वर्षों से किसी भी प्रकार की भर्ती नहीं हो रही है। कारखाने की क्षमताओं में भी किसी प्रकार की वृद्धि नहीं की गई। अब यह दलील दी जा रही है कि सरकारी क्षेत्र के कारखाने मांग की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं यह एक षडयंत्र है, सरकारी कारखानों को बर्बाद करने का है।

शेलैंद्र ठाकुर ने कहा कि सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन सीटू एवं अखिल भारतीय किसान सभा मध्य प्रदेश किसान सभा और संयुक्त किसान मोर्चा सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध करेगा। इस संबंध में सड़क पर उतरकर आंदोलन करने की रुपरेखा शीघ्र ही बनाई जाएगी।

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