सनत जैन
तीसरी बार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर पर कांटों का ताज है। नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने रहे। 10 साल केंद्र में प्रधानमंत्री रहे। नरेंद्र मोदी की सत्ता का यह 24वां साल है। 23 साल तक मोदी का सत्ता में एकछत्र राज रहा है। 23 साल तक सदन में उनके पास पूर्ण बहुमत था। पहली बार वह अल्पमत की सरकार के प्रधानमंत्री बने हैं। विपक्ष इस समय जोश से भरा हुआ है। भले उसके पास स्पष्ट बहुमत ना हो। लेकिन उसमें इतनी ताकत है, कि वह सरकार से पूरी ताकत से मुकाबला कर सके। सदन के अंदर अब सत्ता पक्ष मनमानी नहीं कर सकेगा। बहुमत के आधार पर कानूनो को हो-हल्ले के बीच पास नहीं करा पाएंगे।
कानून पास कराने के पहले सदन के अंदर चर्चा भी करानी होगी। लोकसभा अध्यक्ष के ऊपर भी दबाव होगा, सरकार द्वारा जो भी बिल सदन में पेश किए जा रहे हैं, वह नियम और कानून के तहत पेश हों। उन पर विधिवत चर्चा हो। चर्चा होने के बाद मतदान हो। उसी के बाद बिलों की स्वीकृति प्रदान की जाए। पिछले 10 वर्षों में कई कानून नियम विरुद्ध सदन में पेश किए गए। सदन से उन्हें अध्यक्ष ने पास भी करा दिया। मनी बिल के रूप में ऐसे बहुत सारे नियम और कानून बनाए गए। जो मनी बिल के रूप में सदन के अंदर स्वीकृत ही नहीं हो सकते थे। पिछले 10 साल में संसद सदस्यों के अधिकार भी सदन के अंदर कम हुए हैं। सरकार के मुकाबले सदन के अधिकार सरकार के पास चले गए। बहुत सारे कानून बिना किसी चर्चा के ध्वनि मत से पारित करा दिए गए। तीन अपराध कानून भी उसी श्रेणी में आते हैं।
विपक्षी सांसदों को निष्कासित कर सदन में कुछ मिनटों के अंदर ध्वनि मत से कानूनों को पास करा दिया गया। इससे अध्यक्ष पद की साख भी पहले की तुलना में काफी कमजोर हुई है। अब विपक्ष के पास सदन के अंदर ताकत है। अध्यक्ष भी सदन के अंदर विपक्ष की ताकत को अनदेखा नहीं कर सकता है। सदन के अंदर जो भी बिल पेश किए जाएंगे, वह नियम के अंतर्गत सरकार को अध्यक्ष की अनुमति से पेश करने होंगे। ऐसे बिलों पर संसद के अंदर बहस भी होगी। सभी सांसदों को बोलने का मौका मिलेगा। मोदी सरकार ने 10 साल में जो कानून पारित कराए हैं। उनको लेकर विपक्ष समय-समय पर अपनी नाराजी जताता रहा है।
संसदीय परंपराओं का पालन नहीं किया गया। मजदूरों से संबंधित श्रम कानून, न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून, 3 अपराध कानून, दिल्ली सरकार के अधिकारों पर कटौती, चुनाव आयुक्त नियुक्ति कानून और मनी बिल के तहत जो कानून पास कराए जा रहे थे। संसद में विपक्ष की जो अनदेखी सरकार द्वारा की जा रही थी। अब उन सारे मामले में टकराव बनना तय है। संशोधन या अन्य माध्यमों से विपक्ष चर्चा करने की हर संभव कोशिश करेगी। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में टकराव बढ़ेगा। 18वीं लोकसभा के प्रथम सत्र में विपक्ष पेपर लीक, अग्नि वीर, मणिपुर, महंगाई और बेरोजगारी को लेकर सरकार को तगड़ी चुनौती देता हुआ दिख रहा है।
सरकार ने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद को लेकर भी विपक्ष के साथ सहमति बनाने का कोई प्रयास सरकार द्वारा नहीं किया गया। जिसके कारण स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार अध्यक्ष पद के लिए लोकसभा में चुनाव होगा। जिस तरह की स्थितियां लोकसभा में बनती दिख रही हैं, उसमें एक ज्योतिषी जो इन दिनों देश एवं दुनिया में बड़े चर्चित हैं, उनका नाम है- राजीव नारायण, जिन्होंने भविष्यवाणी की है। भाजपा के खिलाफ जन असंतोष बढ़ेगा। विपक्षी दलों का विरोध भी बढ़ेगा। भाजपा के अंदर ही बगावत होगी। भाजपा के लिए अपनी सत्ता बनाए रखना बड़ा मुश्किल होगा। उसी तरह की स्थिति सदन के अंदर बनती हुई दिख रही है।
तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सहयोगी दलों और भाजपा के ही वरिष्ठ नेताओं से जिस तरह की चुनौती मिल रही है, उससे मोदी के लिए सत्ता में बने रहना, दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार जरूर बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवीन पटनायक के साथ जो विश्वासघात का खेला किया है, उसके कारण नवीन पटनायक भी अब उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं। उड़ीसा का असर अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों पर भी पड़ रहा है। रही सही कसर अयोध्या और राम मंदिर पूरी कर रहे हैं। मुख्य सहयोगी दलों को सरकार में महत्वपूर्ण विभाग नहीं दिए गए। अध्यक्ष पद भी उन्हें नहीं दिया गया। जिसके कारण सहयोगी दलों से भी सरकार को चुनौती मिल रही है।
अयोध्या के रेलवे स्टेशन की एक दीवार टूट गई। अयोध्या का मुख्य मार्ग अटल पथ ढह गया। राम मंदिर की छत से पानी रिसने लगा। गर्भ ग्रह में पानी भर गया। तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कहीं से भी अच्छे समाचार नहीं आ रहे हैं। तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ना पड़ रही है। देखना यह है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैसे अपनी सत्ता को बचाए रखते हैं।