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अब ब्लेक फंगल पर दंगल शुरू… !

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सुसंस्कृति परिहार
ओह!अभी कोरोना की दूसरी लहर कुछ मद्मिम ही पड़ी थी कि नामुराद ब्लेक फंगस आ धमका। कुछ राज्यों ने इसे भी महामारी घोषित कर दिया है, यह भी आजकल चर्चाओं में तो है ही लेकिन इसने भी घर घर में फिर दहशत को जन्म दे दिया है। भारत देश जाने क्यों महामारियों को भा रहा है।
बताते हैं कि यह बीमारी कोरोना से ठीक हुए उन लोगों पर हमला कर रही है जो मधुमेह से पीड़ित हैं। बाद में ये खबर आई कि स्टेराईड दवा लेने से इसे पनपने का मौका मिला। अब ये कहा जा रहा है कि जिनका इम्युनिटी पावर कम है उस पर ब्लेक फंगस हावी हो रहा है। जबकि बिहार में एक महिला ऐसी भी चिकित्सकों के पास पहुंची जिसे ना तो कोरोना हुआ, ना उसे मधुमेह है और ना इम्यनिटी पावर कमज़ोर है फिर भी ब्लेक फंगल की शिकार है। कहने का मतलब यह कि यह भी साफ नहीं है कि इस बीमारी की वजह क्या है और धुएं में लट्ठ सतत मारे जा रहे हैं। ठीक वैसा ही जब कोरोना आया तो उपचारों की झड़ी लग गई और इस आपदा में अवसरों का भरपूर लाभ लिया गया ।
देश में ब्लेक फंगस के करीब 5500 मरीज सामने आ चुके हैं जिनमें 126 की मौत चुकी है। 90 मौतौं के साथ महाराष्ट्र टाप पर है, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे प्रदेश हरियाणा में म्यूकरमाइकोसिस ने 14 लोगों की जान ले ली है। वहीं, उत्तर प्रदेश में इसने कुल आठ लोगों को मौत की नींद सुला दी है। ये सभी मौतें प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई हैं। इसी तरह, झारखंड में इस फंगस ने चार जबकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में 2-2 मरीजों की जान ले ली है। बिहार, असम, ओडिशा और गोवा में इसका एक-एक मरीज दम तोड़ चुका है। कुछ राज्यों ने ब्लैक फंगस के मरीजों को लेकर कोई आंकड़ा ही नहीं जुटाया है।
उधर, राजस्थान ने ब्लैक फंगस से हो रही बीमारी को महामारी घोषित किया तो अगले ही दिन गुरुवार को गोवा ने भी यह घोषणा कर दी। पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना ने एपिडेमिक डिजीजेज ऐक्ट के तहत ‘अधिसूचना योग्य बीमारी’ (Notifiable Diseas under Epidemic Diseases Act) घोषित किया है। यानी, अब उन राज्यों में ब्लैक फंगस से जुड़े मामलों की जानकारी सरकारी स्तर पर जुटाई जाएगी, फिर उसका विश्लेषण कर नीतियां तय की जाएंगी, ताकि वक्त रहते जरूरी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा सके। 
दरअसल, केंद्र सरकार ने भी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वो माइकरमाइकोसिस को एक नोटिफिएबल डिजीज घोषित करे क्योंकि देश में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कोविड-19 के अलावा, ट्यूबरकुलोसिस (टीबी), कोलरा और डिप्थेरिया भी नोटिफिएब डिजीज घोषित किए गए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी सरकारों को कहा है कि वो केंद्र और आईसीएमआर गाईड लाईन का पालन करें।
बहरहाल, दिल्ली, तेलंगाना, ओडिसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक और केरल जैसे कम-से-कम 10 राज्यों का कहना है कि किसी के पास ब्लैक फंगस की दवा का स्टॉक बहुत कम है या फिर है ही नहीं। इनमें से कुछ राज्यों की निजी दवा दुकानों में तो यह दवा नदारद ही है। महाराष्ट्र में इसके 1,500 मामले सामने आए हैं जबकि ब्लैक फंगस से अकेले 70% मौतें यहां हुई हैं। नतीजतन यहां लिपोसोमल एंफोटेरिसिन बी दवा अप्रैल के शुरुआती दिनों से ही गायब है।
केंद्र सरकार से महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा, “प्रदेश को इस दवा की 1.50 लाख शीशियों की जरूरत है लेकिन केंद्र से हमें सिर्फ 16 हजार शीशियां ही मिली हैं। “महाराष्ट्र सरकार ने यह दवा विदेश से आयात करने का फैसला किया है। गुजरात में भी ब्लैक फंगस के करीब 1,500 मामले हैं और दवा के मामले में वहां भी महाराष्ट्र जैसी ही समस्या है। सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक ब्लैक फंगस के सिर्फ 10% मरीजों को ही लिपोसोमल एंफोटेरिसिन बी इंजेक्शन दिया जा रहा है। ओडिशा में गुरुवार को इस इंजेक्शन का भंडार खाली हो गया। उसे केंद्र सरकार से आज कुछ शीशियां मिलने की उम्मीद है। वहीं, कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के. सुधाकर ने कहा कि प्रदेश में सिर्फ 1,000 शीशियां ही बची हैं। उन्होंने बताया कि 20 हजार शीशियों का ऑर्डर दे दिया गया है।
कई राज्य लिपोसोमल एंफोटेरिसिन बी इंजेक्शन खरीदने के इच्छुक हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से कहा है कि यह इंजेक्शन बनाने वाली कंपनियों के साथ डील करे। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा, हमारे पास लिपोसोमल एंफोटेरिसिन बी की सिर्फ 700 शीशियां बची हैं। हमने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से 50 हजार शीशियां मांगी हैं। हम आठ दवा कंपनियों से संपर्क में भी हैं।
वहीं, मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा, हम केंद्र सरकार और फार्मा कंपनियों से बात कर रहे हैं। यह नई बीमारी है और दवा का उत्पादन बहुत कम है। मध्य प्रदेश ने 24 हजार शीशियों का ऑर्डर दिया था, लेकिन उसे सिर्फ 4,800 शीशियां मिलीं। केरल के पास 150 शीशियां बची हैं, इसलिए उसने भी केंद्र सरकार का दरवाजा खटखटाया है। एक बार फिर आपदा में कालाबाजारी का जोर है। ज़रूरी इंजेक्शन बाज़ार से गायब है। राज्य सरकारें गुहार लगा रही हैं। इस बीमारी में भी देरी मौत का सबब बन रही है। उनकी मांग पर त्वरित कार्रवाई अपेक्षित है वरना एक और महामारी मारने के लिए मुहाने पर खड़ी है। इंसान भी इतना परेशान शायद ही कभी रहा हो, हैवानियत सिर चढ़कर बोल रही है।अराजक स्थिति ना बने इसके लिए दवाओं के बेहतरीन प्रबंधन की सख़्त ज़रूरत है।

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