अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

अब तालिबान में ही विवाद की आशंका। कहीं 1997 वाले हालात न हो जाएं

Share

एस पी मित्तल अजमेर

देश दुनिया के अनेक बुद्धिजीवी अफगानिस्तान से चले जाने पर अमरीका की आलोचना कर रहे हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों का कहना है कि अफगानिस्तान के मौजूदा हालात के लिए अमरीका जिम्मेदार हैं। जो लोग इस तरह के तर्क दे रहे हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि अफगानिस्तान मुस्लिम और अमरीका ईसाई धर्म का पालन करते हैं। सदियों से मुसलमान और ईसाई आमने-सामने होते रहे हैं। अफगानिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है, इसलिए दुनियाभर के मुस्लिम राष्ट्रों का यह नैतिक दायित्व है कि वे इस मुसीबत के दौर में अफगानिस्तान की मदद करें। मुस्लिम राष्ट्रों का अपना संगठन है और दुनिया में मुस्लिम राष्ट्रों की आवाज का महत्व है।

अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र अमरीका को अपना दुश्मन मानते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमरीका की आलोचना क्यों की जा रही है? जबकि पिछले 20 वर्षों में अमरीका ने ढाई हजार सैनिक अफगानिस्तान में मौत के घाट उतार दिए गए। अमरीका के करोड़ों डॉलर अफगानिस्तान में बर्बाद हो गए। इस मामले में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने सही प्रतिक्रिया दी है। जो बुद्धिजीवी अमरीका को कोस रहे हैं, वे इमरान खान की प्रतिक्रिया को पढ़ें और समझें। अमरीका के चले जाने पर इमरान खान ने कहा कि अब अफगानिस्तान गुलामी की जंजीरों से आजाद हो गया है। सब जानते हैं कि अमरीका की तरह अब चीन को भी विश्व की महाशक्ति बनने का भूत सवार है। इसलिए चीन भी अफगानिस्तान में तालिबान का मददगार है। जब चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्क साथ हों तो अफगानिस्तान को अमरीका की मदद क्यों चाहिए? अफगानिस्तान और तालिबान का भविष्य अब चीन और अमरीका के हाथों में है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इन दोनों देशों की वजह से अफगानिस्तान खुशहाल होगा। इन दिनों भारतीय न्यूज़ चैनलों पर बैठकर अनेक मुस्लिम नेता तालिबान की प्रशंसा कर रहे हैं। ऐसे नेता भी अमरीका के चले जाने से खुश हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या भारत के लोग तालिबानी सोच के साथ रह सकते हैं? जब हमारी बेटियां ओलंपिक में मेडल जीत रही है, तब क्या तालिबान सोच के कारण बेटियों को घरों में बंद रखा जा सकता है? जो नेता तालिबान का समर्थन कर रहे हैं उन्हें यह भी समझना चाहिए कि अफगानिस्तान की 106 किलोमीटर की सीमा हमारे उस कश्मीर से लगी हुई है जो मौजूदा समय में पाकिस्तान के कब्जे में है। सब जानते हैं कि इसी पीओके में पाकिस्तान ने ट्रेनिंग कैम्प चला रखे हैं, जहां कश्मीरी युवाओं को आतंक फैलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

पाकिस्तान इसी भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाकर तालिबानियों की घुसपैठ करवा सकता है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात बड़ी मुश्किल से सामान्य हुए हैं। अब तालिबानी लड़ाकों की घुसपैठ होती है तो जम्मू कश्मीर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। तालिबानी लड़ाके सिर्फ जम्मू कश्मीर तक सीमित नहीं रहेंगे। हालातों का असर पूरे देश पर पड़ेगा। हो सकता है कि तब भी भारत के अनेक नेता और संगठनों के पदाधिकारी तालिबानी समर्थन करने लगे। सवला यह भी है कि जब तालिबान इतना अच्छा है तो फिर अफगानी नागरिकों को घबराने की क्या जरूरत है? क्यों महिलाओं के अधिकारों को लेकर इतनी चिंता जताई जा रही है? कोई माने या नहीं, लेकिन अफगानिस्तान के हालातों का भारत पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, क्योंकि भारत तो लोकतांत्रिक होने के साथ साथ धर्मनिरपेक्ष भी है।

यहां हर व्यक्ति को अपने धर्म के अनुरूप रहने का अधिकार है। अब सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को यह बताना चाहिए कि क्या वे तालिबानी सोच के साथ अपने प्रभाव वाले राज्यों में शासन कर सकते हैं? ऐसे नेताओं को अभी भले ही तालिबानी अच्छे लग रहे हों, लेकिन जब हालात बिगड़ेंगे तब किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा? बदली हुई परिस्थितियों में अफगानिस्तान पर शासन को लेकर तालिबान में भी विवाद की आशंका हो गई। तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला अब्दुल बरादर को राष्ट्रपति पद का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है, लेकिन कुछ तालिबानी नेताओं की मदद से अफगानिस्तान के मौजूदा उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। मालूम हो कि तालिबान के आने से पहले ही राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। 

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें