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सिल्क्यारा सुरंग हादसा : हम कब समझेंगे हिमालय को

वर्षा सिंह

उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने का इंतजार लंबा होता जा रहा है। 12 नवंबर को दीपावली की रौशनी में जब पूरा देश जगमग हो रहा था देश की आर्थिक रफ्तार बढ़ाने के नाम पर एक लंबी सुरंग खोदने को तैनात मजदूर एक भयानक विस्फोट की आवाज के साथ हुए भूस्खलन से अंधेरे में घिर गए। आज आठवें दिन रविवार को भी ये अंधेरा कायम हैसाथ ही हिमालयी क्षेत्रों में अवैज्ञानिक बेतरतीब, बेहसाब निर्माण कार्यों से जुड़े सवाल भी एक बार फिर हमारे सामने खड़े हो गए हैं।

देश के सीमावर्ती इलाकों में बेहतर सड़कें और आर्थिक गलियारों के नाम पर बनी भारतमाला परियोजना को सरकार की ओर से रोड टु प्रॉस्पेरिटी यानी समृद्धि की ओर ले जाने वाली सड़कें कहा गया है। हिमालयी क्षेत्र में चारधाम सड़क परियोजना इसी समृद्धि के सपने के नाम पर लाई गईं। इन बारामासी सड़कों पर हादसों, भूस्खलन के नए सक्रिय जोन और विवादों के कई अध्याय जुड़ गए हैं।सुरंग टूटने से आए मलबे को हटाने के लिए ऑगर मशीनें मंगाई गई हैं।

स्टेट ऑफ डिजास्टर

सड़कें चौड़ी करने, दुर्गम इलाकों में आवाजाही सुगम करने के नाम पर बनाई जा रही सिल्क्यारा सुरंग चारधाम परियोजना का हिस्सा है। भारतमाला परियोजना रिपोर्ट में इसे “स्टेट ऑफ आर्ट” कहा गया। जो इस समय मलबे से पटी है और भारी भरकम आधुनिक अर्थ ऑगर मशीन हिमालयी चट्टानों को भेदने में अब तक असफल रही हैं। हालांकि उम्मीद बची रहनी चाहिए।

उत्तरकाशी के यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरासू और बड़कोट के बीच सिल्क्यारा गांव के नजदीक 853.79 करोड़ लागत की 4.86 किमी लंबी सुरंग का निर्माण यमुनोत्री धाम में किया जा रहा है। सिल्क्यारा गांव की तरफ से 2.3 किमी और बड़कोट की तरफ से 1.6 किमी सड़क का निर्माण पूरा हो चुका था। सिल्क्यारा की तरफ से लगभग 270 मीटर अंदर सुरंग धंस गई और ऊपर पहाड़ का मलबा सुरंग के भीतर 22 मीटर तक भर गया। मशीनों से इस मलबे को हटाने की कोशिश में पहाड़ से और ज्यादा मलबा नीचे आया और करीब 60 मीटर तक मलबे की दीवार बन गई।

टनल की कार्यदायी संस्था राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) है। हादसे के बाद से मलबे से बंद सुरंग के भीतर एस्केप टनल बनाने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए दिल्ली से उच्च क्षमता की ड्रिलिंग मशीन लाई गईं। 16 नवंबर तक 22 मीटर ड्रिल किया जा चुका था। फिर इन मशीनों में खराबी आ गई। शुक्रवार देर रात इंदौर से अर्थ ऑगर मशीनें लाई गई हैं और ड्रिलिंग की प्रक्रिया शुरू की गई।

सेना के करीब 150 जवान सुरंग के ऊपर से ड्रिलिंग मशीनों को पहुंचाने के लिए पहाड़ी पर करीब 320 मीटर का ट्रैक बनाने का काम कर रहे हैं। ये काम रविवार तक पूरा होने की उम्मीद है। ताकि मजदूरों को ऊपर से निकाला जा सके।
16 नवंबर को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री वीके सिंह, 18 नवंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय से अधिकारी मंगेश घिल्डियाल और भास्कर खुल्बे घटनास्थल का निरीक्षण कर चुके हैं। उनके साथ ही जियोलॉजिस्ट विशेषज्ञ इंजीनियर भी सिल्क्यारा पहुंच गए हैं।

एनएचआईडीसीएल के डायरेक्टर अंशु मनीष खुल्को ने शनिवार सुबह समाचार एजेंसी एएनआई को जानकारी दी कि आज सुबह सुरंग में ड्रिलिंग का काम रोक दिया गया। ये पूछने पर कि क्या मशीन में खराबी की वजह से ऐसा किया गया उनका जवाब था कि मशीनों में कोई दिक्कत नहीं है।

उत्तरकाशी में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से मिल रही सूचना के मुताबिक सुरंग के भीतर प्रेशर से लगातार ऑक्सीजन प्रवाहित की जा रही है। दबावयुक्त हवा के साथ भोजन सामग्री के छोटे-छोटे पैकेट विटामिन और दवाएं भी भीतर फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचाई जा रही हैं। इनमें एंटी डिप्रेशन टेबलेट्स भी हैं। अब तक की जानकारी के मुताबिक सभी मजदूर सुरक्षित हैं।

सुरंग के बाहर भी स्वास्थ्य शिविर, चिकित्सा व्यवस्था,एंबुलेंस, डॉक्टर सब तैनात और इंतजार में हैं। अस्थाई हेलीपैड बनाया गया है।
पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, सीमा सड़क संगठन, स्वास्थ्य विभाग समेत 160 राहतकर्मी घटनास्थल पर तैनात हैं।

लेकिन पहाड़ की चट्टानों को तोड़कर मजदूर कब और कैसे बाहर निकलेंगे ये सवाल आशंकाओं और उम्मीदों के साथ अभी भी खड़ा है।



CAPTION:सिल्क्यारा की तरफ से ड्रिल कर अंदर जाने की कोशिश फिलहाल कामयाब नहीं हुई है।

सिल्क्यारा का सवाल

सिल्क्यारा परियोजना का क्षेत्र उच्च और निम्न दोनों ही हिमालयी श्रेणियों में आता है। इसकी बाउंड्री मेजर टेक्टॉनिक बाउंड्री जिसे मेन सेंट्रल थ्रस्ट कहा जाता है से लगी हुई है। यहां की चट्टानें ढीली और कमजोर हैं।

चारधाम सड़क परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश पर बनी हाईपावर कमेटी ने संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र होने के नाते ही सड़कों को ज्यादा चौड़ी न करने का सुझाव दिया था।

इस हाईपावर कमेटी के सदस्य और भू-वैज्ञानिक हेमंत ध्यानी बताते हैं “सिलक्यारा सुरंग के सर्वेक्षण के दौरान हमने पाया था कि उसके ऊपर पूरा जंगल बसा हुआ है। यहां पानी के स्रोत हैं और सीपेज है। हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए हमने टनल की चौड़ाई को कम करने का सुझाव दिया था”।

वह आगे कहते हैं, “सिलक्यारा सुरंग 12 मीटर चौड़ी है। इसका व्यास और ऊपरी सतह का क्षेत्रफल ज्यादा है इसलिए सुरंग पर पहाड़ का वजन भी ज्यादा है। अगर ये सुरंग 7 से 8 मीटर चौडी होती तो पहाड़ का कम हिस्सा काटना पड़ता, ब्लास्टिंग कम होती, पहाड को इतना तोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती! इस तरह के हादसे की आशंका भी कम होती। हमारा मानना है कि पहाड़ को कम से कम नुकसान पहुंचा कर काम होना चाहिए”।

हाईपावर कमेटी ने हिमालयी क्षेत्र में इस तरह के बडे निर्माण कार्य से जिन दुर्घटनाओं की आशंकाएं जताई थी,सिल्क्यारा उसी का एक उदाहरण बन गया है।

फिलहाल रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने के बाद हादसे के कारणों की जांच की जाएगी।

हेमंत कहते हैं कि प्राथमिक तौर पर लापरवाही दिखाई दे रही है। ये जांच करनी होगा कि सुरंग के लिए कितनी ब्लास्टिंग की गई। पहाड़ को किस तरह काटा गया। सुरंग बनाने से पहले भू-तकनीकी और हाइड्रोलॉजी (जल प्रवाह) से जुड़े अध्ययन क्या कहते हैं। लेकिन ये स्पष्ट है कि प्रकृति के आगे किसी की नहीं चलती। ये हादसा हिमालय को लेकर गैरजिम्मेदाराना रवैया दर्शाता है! 

क्यों नहीं थी एस्केप टनल

भूस्खलन शमन प्रबंधन केंद्र (Landslide mitigation management centre) के निदेशक शांतनु सरकार उत्तरकाशी में मौजूद हैं। वह न्यूज़क्लिक के लिए बात करने पर बताते हैं कि सिल्क्यारा भौगोलिक तौर पर बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। इस सुरंग में पहले भी ऐसी घटना हो चुकी है। लेकिन तब कोई नहीं फंसा था इसलिए उस पर ज्यादा बात नहीं हुई। निर्माण एजेंसी ने सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए, किए या नहीं किये, सुरंग को कितना सपोर्ट दिया गया, हम इसकी जांच कर रहे हैं। हर सुरंग में एक बचाव का रास्ता (escape route) होता है लेकिन इस सुरंग में ऐसा मार्ग नहीं था।

अब जुटाई जा रही है बचाव की जानकारी?

इस हादसे की जांच के लिए भी एक कमेटी बिठा दी गई है। जो बचाव अभियान पूरा होने के बाद कार्य शुरू करेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि देश और दुनिया में चले पुराने सुरंग रेस्क्यू के अनुभवों के आधार पर सिल्क्यारा में फंसे मजदूरों को निकालने का कार्य किया जा रहा है। इसके लिए अधिकारी पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश जम्मू-कश्मीर समेत दुनिया के कई देशों में सुरंग निर्माण और आपदा के बाद हुए रेस्क्यू की तकनीक को अपना रहे हैं। पीर पंजाल, अटल सुरंग, भंवर टोंक, संगलदान जैसी बड़ी सुरंग निर्माण और मलबा गिरने के बाद रेस्क्यू की जानकारी जुटाई जा रही है।

सिल्क्यारा, तपोवन, जोशीमठ….और कितने हादसे

वर्ष 2021 की चमोली आपदा में एनटीपीसी जलविद्युत परियोजना की सुरंग में फंसकर 200 से ज्यादा मजदूर मारे गए थे।
सिल्क्यारा और तपोवन की घटनाओं में समानता है। वर्ष 2009 में एनटीपीसी की जलविद्युत परियोजना की सुरंग धंस गई थी। भूवैज्ञानिक हेमंत ध्यानी कहते हैं कि उस समय भी निर्माण के दौरान सुरंग में आए मलबे में टीवीएम मशीन धंस गई जो अब तक फंसी हुई है। उस मशीन ने वहां के जलस्रोत को पंचर कर दिया था। जिससे सारा पानी बह गया। जिसके बाद एनटीपीसी का जोशीमठ में पानी आपूर्ति के लिए करार हुआ।


इसी सुरंग को तपोवन की तरफ से अपस्ट्रीम में खुदाई शुरू की गई। 2021 के हादसे में इसी सुरंग में काम कर रहे कम से कम 200 मजदूर फंसे रह गए थे। यह सुरंग जोशीमठ के नीचे है। 2022 में जोशीमठ में दरारें पड़ने और भू-धसाव शुरू हो गया।
जोशीमठ और हिमालयी क्षेत्र में बेतरतीब विकास को लेकर मुखर रहे अतुल सती कहते हैं वर्ष 2002-03 से विकास को लेकर पूरे पहाड़ में जिस तरह का ढांचा खडा किया जा रहा है। हमारा इस पर एतराज रहा है। हम लगातार हादसे देख रहे हैं। जोशीमठ के सामने चाईं में सुरंग हादसा हुआ। एनटीपीसी की परियोजना में लगातार हादसे होते रहते हैं। सडक, रेलवे, जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़ी कई सुरंग बन रही हैं। आज जब हम साढे 4 किमी की सुरंग में सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं तो ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 121 किमी रेल मार्ग में 90-95 किमी की दूरी तो सुरंगों में तय की जाएगी फिर हम कैसे सुरक्षा करेंगे।

अतुल कहते हैं कि अभी भी 41 मजदूर सुरंग में फंसे हुए हैं। कल को इन सुरंगों से जब आवागमन होगा। बडी संख्या में यात्री आएंगे तो हजारों यात्रियों की जान की सुरक्षा कैसे करेंगे। राज्य में सभी सुरंग परियोजनाओं की समीक्षा होनी चाहिये!

हादसा या अपराध

उत्तरकाशी में पर्यावरण मुद्दों को लेकर कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठन “गंगा आह्वान” की मल्लिका भनोट भागीरथी इको सेंसेटिव जोन की सिंगल लेन सड़क का उदाहरण देती हैं। “इस साल मानसून में चारधाम सड़क परियोजना से जुड़ी सीमावर्ती क्षेत्रों केदारनाथ, बद्रीनाथ और पिथौरागढ़ की सड़कें भूस्खलन के चलते बंद हुईं लेकिन भागीरथी क्षेत्र की सड़क में ऐसे भूस्खलन नहीं हुए वो जगह सबसे ज्यादा सुरक्षित और स्थिर रही। वही एक रास्ता सीमा तक खुला था। जबकि सारे अन्य रास्ते बंद हो रहे थे।

मल्लिका आक्रोश जताती हैं कि ऐसे हादसों के बाद नेताओं के खोखले बयान सामने आते हैं। जोशीमठ और हिमाचल आपदा के बाद हिमालयी क्षेत्र की वहनीय क्षमता (कैरिंग कैपेसिटी) के आकलन की बात कही जा रही है। सुरंग आपदा के बाद राज्य की सभी सुरंगों की समीक्षा के बयान सामने आ रहे हैं। ये काम पहले क्यों नहीं किये गए? हम हिमालयी क्षेत्र को मैदानों की तर्ज पर क्यों विकसित करना चाहते हैं? हम हिमालय को क्यों नहीं समझ रहे हैं?

मल्लिका कहती हैं कि सिल्क्यारा जैसे सुरंग हादसे ‘आपराधिक’ हैं। चारधाम परियोजना को लेकर बनाई गई हाई पावर कमेटी ने सिल्क्यारा में सुरंग निकालने के लिए मना किया था। सरकार को सारी परियोजनाओं की अलग-अलग विशेषज्ञ संस्थाओं से समीक्षा करवानी चाहिए। उनकी रिपोर्ट के आधार पर निर्माण कार्यों में बदलाव लाने चाहिए। तभी जांच से जुड़ी उनकी मंशा में कोई सच्चाई है।

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