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हे विघ्न विनायक विघ्नों का करें सत्यानाश 

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सुसंस्कृति परिहार 

संपूर्ण देश पूरे दस रोज गणपति उत्सव में डूबा रहेगा। गणेश को विघ्न विनाशक कहा जाता है कहते हैं यदि उनका सबसे पहले आराधन नहीं किया जाता तो वे स्वयं विघ्न खड़ा कर देते हैं। बहुत चंचल है गणेश इसलिए बच्चों के पसंदीदा  भगवान हैं बच्चे पूरे दस रोज मनोयोग से घर घर में झांकियां भी सजाते हैं और खूब नाचते गाते हैं।वे  नहीं जानते गणेश जी विघ्न कर्ता भी हैं और  विघ्नहर्ता भी हैं। वे प्रथम पूज्य हैं।इससे उनका लेना देना नहीं है। गणेश जी का स्वरूप उन्हें भाता है।

 बहरहाल जैसा कि सर्वविदित है  वे शिव और पार्वती के पुत्र हैं इसलिए तांडव उनके जीन्स में मौजूद हैं। दूसरी विशेषता उनका सिर जिसमें पूरा मुखमंडल गजराज का है तो गजराज जैसी खींच तान दिमाग में सतत चलती रहती है। इसलिए उनकी प्रथमत:पूजा के बाद ही अन्य उत्सव मनाएं जाते हैं। यदि  हो जाती है तो वे बच्चों जैसे मचल उठते हैं।

इन चुलबुले शिवपुत्र गणेश की परिकल्पना और कथा की शुरुआत जब भी हुई होगी तब निश्चित तौर पर उत् विघ्नों से लोग परेशान रहे होंगे। ये विघ्न प्राकृतिक ,सामाजिक और अन्य  देवताओं के भी हो सकते हैं। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि शिव के पूजक सबसे बड़ी तादाद में हिंदुस्तान में हैं इससे गणेशजी  को अपने को स्थापित करने में मुश्किल आ रही हो इसलिए उन्होंने विघ्न करके अपने को चर्चित बनाया। वैसे भी उनका चेहरा और सम्पूर्ण बदन दिव्यांग की तरह था जिससे उन्हें  देवतुल्य  सम्मान मिलना मुश्किल हुआ होगा। लेकिन वाकई दिव्यांग लोगों की तरह उनके पास कई विशिष्ट सिद्धियां रहीं हैं जिसकी बदौलत उन्हें भगवानों की दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान और सम्मान मिला।

आज गणपति इसलिए ही सबसे ज्यादा पूज्य है। महाराष्ट्र में तो गणेश आराधना में हर धर्म का व्यक्ति शरीक होता है। बराबर उनका पूजन अर्चन करता है। महाराष्ट्र से यह दस दिवसीय आराधन का सिलसिला पंडालों में देश के बहुत से हिस्सों में फैल चुका है। पंडालों में कलात्मक साज सज्जा का गुर भी महाराष्ट्र से आया है। कहा जाता है भारत को आजाद कराने के दौर में  लोकमान्य तिलक ने गणेश पंडालों  को क्रांतिकारियों के मिलन स्थल के रूप में विकसित किया। ये सबसे सुरक्षित स्थल थे महाराष्ट्र के गणेश पंडालों का ये अवदान हमें याद रखना चाहिए। बाद में यह एक पूजा की नवीन पद्धति के रुप में चल पड़ी।जिसकी ज़द में हम सब आ गए। ठीक इसी तरह बंगाल में दुर्गोत्सव पंडालों का इस्तेमाल हुआ।

आज गणेशोत्सव पंडाल सड़कों पर ना केवल व्यवधान उपस्थित करते हैं बल्कि उनकी आड़ में लिए गए चंदे का दुरुपयोग रात भर के जागरण हेतु नशे की खरीदारी में किया जाता है। इस दौरान सड़कों की खुदाई,बिजली चोरी,राग रंग में छेड़खानी,चंदा प्राप्त करने में गुंडागर्दी,ध्वनि प्रदूषण ऐसे रोग है जिससे वास्तविक गणेश भक्त भी आहत होते हैं। गणेशजी कै प्रति आस्था गलत नहीं किंतु सार्वजनिक तौर पर उनके नाम पर ये अपराध क्षमा योग्य भी नहीं।

आज़ादी के पूर्व गणेश जी का आगमन तीजा व्रत के चार प्रहरों की पूजा के बाद होता था। स्त्रियां गांव के गणेश मंदिरों में सुबह सुबह गणेशजी को अर्घ चढ़ाकर व्रत सम्पन्न करती थी। इसके पीछे उनके अपने पति और बच्चों के कुशल मंगल की कामना होती थी। दसवें रोज घर में स्थापित गणेश समीपस्थ तालाब,नदी में विसर्जित हो जाते थे। इस तरह उत्सव संपन्न हो जाता था। आज ये पारम्परिक तरीका स्त्रियों में तो है किंतु अब गणपति  पूजा से नहीं आते। वे बाजार से मोल देकर लाए जाते हैं। 

 गणेश पूजा उत्सव अब पंडालों में केंद्रित हो गया है।जिसकी कमान स्त्रियों नहीं युवा बेरोजगारों के हाथ में रहती है और इसके पीछे किसी नेता का वरदहस्त होता है वे जितने युवाओं को इस आयोजन में संतुष्ट और उपकृत कर पाते  हैं वे ही उनके चुनाव में महत्वपूर्ण सहयोगी की भूमिका निभाते हैं। कहने का आशय यह है कि आजकल लगने वाले हर तरह के धार्मिक पंडाली आयोजन के पीछे राजनीति सक्रिय भूमिका निभाती है।

इसलिए हे विघ्न विनायक आप आजकल  राजनीति के मुख्य आधार हैं और प्रथम प्रथम पूज्य हैं। देश में विघ्न संतोषी ताकतें अपने निजी स्वार्थ के लिए जब तब करवटें बदल लेती हैं।जनमत का अपमान करती है। देश की सनातन संस्कृति को डुबाने उतारु हैं। झूठ, झांसे , कलुष और हैवानियत ने देश के संस्कारों की बलि चढ़ा दी है। नारी अस्मिता को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। आप तो त्रिकालदर्शी हैं ज़्यादा क्या बताना? इस बार अपना विघ्न विनायक स्वरूप इन ताकतों पर दिखाईए।देर ना कीजिए।  आपके लिए यह सहज और आसान है। याद दिला दें, काशी-विश्वनाथ, महाकाल,रामजी और हनुमान जी अपने करतब इन्हें दिखा चुके हैं। अब आपकी बारी है।

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