~ डॉ. श्रेया पाण्डेय
क्या आपके मन में भी एक ही तरह के ख्याल बार- बार उठते हैं, क्या आपके मन में भी अलग-अलग तरह की चिंताएं चलती रहती हैं? न चाहते हुए भी आप एक ही काम को बार-बार करते रहते हैं?
अगर इन सभी का जवाब हां है, तो ये आपके लिए सतर्क होने का समय है। ये सभी ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के संकेत हैं।
इसके कारण न केवल व्यक्ति की दिनचर्या प्रभावित होती है, बल्कि सेहत और रिश्तों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है। अगर आप में या आपके आसपास किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण नजर आ रहे हैं, तो यहां जानिए इस स्थिति से कैसे डील करना है।
ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक प्रकार का मानसिक विकार है। इसमें कोई एक भावना इतनी प्रबल हो जाती है कि आप चाहे-अनचाहे उसे बार-बार दोहराते रहते हैं। यह किसी काम को करने के प्रति, सफाई के प्रति या किसी चीज को न करने के प्रति भी हो सकती है।
उदाहरण के तौर पर व्यक्ति यह सोच सकता है कि उसके हाथ गंदे हैं। इस चिंता में वह बार-बार हाथ धोने लगता है। इसी तरह घर की चादर, तकिये के कवर या बालों के प्रति भी इस तरह की चिंता हो सकती है।
यह समस्या दो रूपों में व्यक्ति को प्रभावित करती है। एक है ऑब्सेसिव बिहेवियर और दूसरा कंपल्सिव बिहेवियर। इस बीमारी के तहत अगर किसी को सफाई के प्रति ऑब्सेशन है, तो वह लगातार चीजों को साफ करने में ही व्यस्त रहता है।
बार-बार चीजें चेक करना, बिजली के बटन ऑन ऑफ करके देखना, अलमारी और कार व बाइक के लॉक चेक करना। यह भी कंपल्सिव बिहेवियर के संकेत हो सकते हैं।
*कैसे मैनेज करें ओसीडी?*
सबसे पहले व्यक्ति को यह समझना होगा कि इस तरह का व्यवहार उसके जीवन पर कितना असर डाल रहा है। अगर लक्षण इतने अधिक बढ़ गए है कि वह लगातार थकान का अनुभव कर रहा है और दिनचर्या प्रभावित होने लगी है, तो इन पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
इसके लिए यह जरूरी है कि विशेषज्ञ की मदद ली जाए। यहां इसके लिए कारगर कुछ उपायों के बारे में बात की जा रही है।
*1. साइकोथेरेपी यानि कॉगनेटिव बिहेवियर थेरेपी :*
इस विकार से ग्रस्त मरीज़ को कॉगनेटिव बिहेवियर थेरेपी दी जाती है। इससे व्यक्ति के व्यवहार, विचार और सोच को नियंत्रित और सीमित करने का प्रयास किया जाता है। इस थेरेपी की मदद से डिप्रेशन और एंग्जाइटी की समस्या को भी कम किया जा सकता है।
इसमें व्यक्ति को नकारात्मकता विचारों से दूर कर जीवन के प्रति उसके नज़रिए को सरल बनाने की कोशिश की जाती है।
*2. दवाइयों का सेवन यानि फार्माकोथेरेपी :*
ऐसे मरीजों को मनोवैज्ञानिक की सलाह पर थेरेपी के साथ-साथ कुछ दवाएं भी दी जाती हैं। इसे फार्माकोथेरेपी कहा जाता है। मरीज़ की मानसिक स्थिति के अनुसार ये दोनों ही थेरेपी कई बार साथ-साथ भी चलती हैं।
इससे मन में किसी काम के लिए बढ़ने वाला जुनून और भय नियंत्रित किया जाता है। इससे व्यक्ति का मन बार-बार खुद को किसी काम के लिए बाध्य नहीं कर पाता है।
*3. सेल्फ हेल्प केयर :*
किसी भी मानसिक विकार में सेल्फ हेल्प बहुत काम आती है। अगर किसी व्यक्ति को यह अहसास होता है कि उसका व्यवहार असामान्य हो रहा है, तो कोशिश करके अपने व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास करें।
बार-बार एक ही काम को करने से खुद को रोकें। एक ही प्रकार की प्रतिक्रया को दोहराने से आपका समय बर्बाद होता है और आप खुद में उलझे रहते हैं। पहले पहल आपको दिक्कत होगी। मगर धीरे धीरे आपका ब्रेन इन प्रक्रिया को एक्सेप्ट करने लगेगा।
*4. निगेटिविटी से बचें :*
किसी भी चीज़ को लेकर अपनी विचारधारा बनाना और उसके बारे में नकारात्मक सोचना छोड़ दें। इसका असर आपकी सोचने समझने की शक्ति पर पड़ने लगता है।
इसके अलावा किसी काम पर फोक्स करना और चीजों को याद रखना मुश्किल भरा लगने लगता है।
ऐसे में नकारात्मकता को पॉजिटिविटी में बदलें और दूसरों के बारे में सोचना छोड़ दें।
*5. भय नियंत्रण :*
किसी भी परिस्थिति से डरकर भागना आपको मानसिक तौर पर कमज़ोर बना देता है। ऐसे में डर की बजाय खुद को नियंत्रित करें और किसी भी समस्या से भागना और डर की आंशका पैदा होना ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर का कारण बन जाता है।
ऐसे में डॉक्टर या परिवारवालों की मदद से डर पर काबू पाएं।
*6. कम्पेरिज्म वाले विहैव छोडें :*
कई बार दूसरों से खुद की तुलना करना भी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर का कारण बनने लगता है। जो आपके अंदर आत्मविश्वास को कम करने लगता है।
ऐसे में दूसरों की बराबरी करने से बचें और अपनी खूबियों के बारे में सोचें।