मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘लाड़ली बहना योजना’ के सहारे महिला मतदाताओं का भरोसा जीतने का जतन कर रहे हैं मगर तंत्र है कि अपने ही नियमों को खारिज कर मैदान में सेहत की बागडौर संभाल रही एएनएम को बेरोजगार करने की तैयारी कर चुके हैं। दूसरी तरफ, भोपाल का मास्टर प्लान बीरबल की ऐसी खिचड़ी बन गया है जो 18 सालों में भी लागू हो नहीं पाया है।
मध्य प्रदेश की एक करोड़ से भी ज्यादा महिलाओं को हर माह एक हजार रुपए देने की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह ‘लाड़ली बहना योजना’ राजनीतिक रूप से गेमचेंजर मानी जा रही है। इस योजना के सहारे महिला मतदाताओं का भरोसा जीतने का जतन किया जा रहा है तो दूसरी तरफ ऐसी हजारों कामकाजी महिलाएं हैं जिनकी नौकरी पर अफसरों ने निगाहें गढ़ा दी है। ये वे महिलाएं हैं जो बीते 15-20 सालों से प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है। अब जब इन्हें ही स्थाई करने की बारी आई तो अफसर नियमों का चश्मा लेकर खुद अपने ही बनाए नियमों को खारिज करने लगे हैं।
मामला यूं है कि युवाओं को सरकारी नौकरियां देने के लिए भर्ती निकाली जा रही है। इसी क्रम में महिला बहुउदेशीय कार्यकर्ता (एएनएम) की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया गया है। बरसों से स्थाई होने की उम्मीद पाले बैठीं हजारों एएनएम के लिए यह प्रक्रिया दिल तोड़ने वाली साबित हो रही है क्योंकि स्थाई भर्ती के लिए उन नियमों को बदल दिया गया है जिनके आधार पर उन्हें संविदा नियुक्ति दी गई थी। जैसे, विज्ञान के अलावा भी किसी अन्य विषय में 12 वीं पास महिलाओं को बतौर एएनएम संविदा नियुक्ति दी गई थी। इनके लिए अब स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहायक नर्सिंग मिडवाइफ का दो वर्षों का पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया है जबकि पहले एएनएम का यह पाठ्यक्रम 18 महीने का होता था। पहले प्रायवेट संस्थान से प्रशिक्षण को मान्य करते हुए नियुक्तियां दी गई थीं अब प्रायवेट संस्था से एएनएम प्रशिक्षण को अपात्र माना गया है।
गांव-गांव में स्वास्थ्य तंत्र की मैदानी इकाई एएनएम 15-20 सालों से काम करते हुए न केवल कुशल हो गई हैं बल्कि कई स्वास्थ्य योजनाओं को वे ही संचालित कर रही हैं। इतने वर्ष के अनुभव को दरकिनार करते हुए एएनएम को बेरोजगार कर देना बीजेपी के विधायकों और नेताओं को भी रास नहीं आ रहा है। वे पत्र लिख कर अनुशंसाएं कर रहे हैं मगर ब्यूरोक्रेसी की सुनवाई का सिस्टम अलग ही है, उन्हें अनुशंसाएं कहां सुनाई देती हैं?
अफसरों का प्लान, न आए भोपाल का मास्टर प्लान
बरसों से यह कहावत मशहूर है कि तालों में ताल भोपाल ताल, बाकी सब तलैया। मगर पिछले कई दिनों से मध्य प्रदेश की शान बड़े तालाब पर भू अधिपतियों की नजर लगी हुई है। बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में अवैध निर्माण के मामले कोर्ट में चल रहे हैं। इसके बाद भी धड़ल्ले से वैध-अवैध निर्माण जारी है। चिंता यह है कि जब कैचमेंट एरिया में ही सीमेंट कांक्रीट का जंगल खड़ा हो जाएगा तो बड़ा तालाब भरेगा कैसे? शंका निर्मूल नहीं है कि ऐसे तो बड़ा तालाब सिकुड़ता जाएगा।
इन आशंकों को खारिज करने के लिए बड़े तालाब के आसपास की जाने वाली गतिविधियां तय होनी चाहिए। इतना ही नहीं कैचमेंट एरिया में जारी निर्माण कार्यों पर सख्ती से रोक होना चाहिए। लेकिन यह हो तो तब जब शहर का एक मास्टर प्लान हो। जिसके अनुसार सारी गतिविधियां तय हो। कौन यकीन करेगा कि भोपाल का मास्टर प्लान 2005 में ही समाप्त हो चुका है।
प्रदेश की राजधानी होने के बाद भी बीते 18 सालों से भोपाल का मास्टर प्लान लागू नहीं किया जा सकता है। जिस शहर में मुख्यमंत्री से लेकर सरकार का हर प्रभावशाली व्यक्ति रहता है, जिस शहर में मुख्य सचिव से लेकर प्रशासनिक तंत्र का हर महत्वपूर्ण नुमाइंदा निवास करता है, जिस शहर में मेट्रो लाइन डाली जा रही है, फ्लाइ ओवर बनाए जा रहे हैं, केबल कार चलाने के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जा रहा है, उस शहर विकास की कोई रूपरेखा ही नहीं है। जबकि नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह कई माह पहले एक सप्ताह में मास्टर प्लान आने की घोषणा कर चुके हैं। मगर तारीखें गुजरी मास्टर प्लान जारी नहीं हुआ।
इस सप्ताह मास्टर प्लान जारी करने की तैयारी कर ली गई थी। मगर ज्यों ही यह जानकारी लीक हुई कि बड़े तालाब के ग्रीन बेल्ट में निर्माण की अनुमति देने का प्रावधान किया जा रहा है, बात बिगड़ गई। शहर की चिंता करने वाले समूह ने तुरंत विरोध जता दिया। असल में, इस प्रस्ताव के पीछे सूरजनगर-नीलबड़ क्षेत्र में रसूखदारों के वैध-अवैध निर्माण हैं। नगर निगम ने खुद पाया है कि आईएएस अफसरों सहित प्रभावशाली लोगों ने तय सीमा से अधिक निर्माण कर लिया है। अब उस निर्माण को वैध करने की मंशा से बड़े तालाब के कैचमेंट क्षेत्र में निर्माण को खुली छूट देने का प्रावधान किया जा रहा था।
समय रहते विरोध दर्ज करने का परिणाम यह हुआ कि मास्टर प्लान रोक लिया गया। अब इसके प्रारूप पर फिर से हुए संशोधन को अधिसूचित करके फिर दावे-आपत्ति आमंत्रित किए जाएंगे। इनका निराकरण करने के बाद ही मास्टर प्लान को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसके पहले मार्च 2020 में भी दावे आपत्ति के बाद मास्टर प्लान को अंतिम रूप दे दिया गया था। सरकार के स्तर पर भी इसमें कुछ बदलाव किए गए थे। मास्टर प्लान एक बार फिर रोका गया है। नियोजित विकास के लिए यह बुरा है मगर बड़े तालाब को बचाने की कोशिशों के कारण इस बार मास्टर प्लान का टलना अच्छा ही है।
बाल आयोग के निशाने पर पुलिस महकमा
होली पर छुट्टी के दिन जब हर जगह रंग-फाग की मस्ती थी तब डिंडोरी के पुलिस अधीक्षक को हटाया गया। यह ताबड़तोड़ कार्रवाई राष्ट्रीय बाल आयोग की सख्ती के बाद की गई है। मामला मिशनरी स्कूल से जुड़ा है।
खबर यूं है कि डिंडोरी के जुनवानी में स्थित मिशनरी स्कूल में आदिवासी छात्राओं के साथ यौन शोषण हुआ था। इस मामले के आरोपी प्राचार्य और अन्य को पुलिस ने मामूली अपराधी मानते हुए जमानत पर छोड़ दिया था। जबकि राष्ट्रीय बाल आयोग ने इसे पाक्सो एक्ट का गंभीर मामला माना है। जब हंगामा हुआ तो एसपी संजय सिंह ने टीआई को हटा दिया था। मगर बाल आयोग ने आपत्ति जताई कि एसपी संजय सिंह ने पहले टीआई की कार्रवाई को सही ठहराया था अत: एसपी पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर छुट्टी के दिन एकल आदेश निकाल पर एसपी संजय सिंह को हटा दिया।
बाल आयोग द्वारा पुलिस अफसरों को हटवाने का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले आयोग ने दमोह एसपी समेत अन्य अधिकारियों पर एक्शन लेने का निर्देश दिया था। जब धर्मांतरण के मुद्दे पर हिंदु संगठनों ने कलेक्टर और एसपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। बाल आयोग की सख्ती के बाद ही सियासत तेज हुई और दमोह एसपी डीआर तेनीवार को हटाया गया। धर्मांतरण पर नजर रखते हुए बाल आयोग ने प्रदेश के मिशनरी स्कूल और मदरसों को राडार पर ले रखा है। रायसेन, विदिशा और भोपाल में भी ऐसे मामलों को मुद्दा बनाने की कोशिश की गई है।
हालांकि, अधिकांश मामलों में सरकार ने आरोपों को खारिज किया है। मगर राष्ट्रीय बाल आयोग की सक्रियता और टारगेट व्यवहार के कारण पुलिस महकमा निशाने पर हैं। बच्चों के शोषण से जुड़े मामलों में दो एसपी हटाए जा चुके हैं। इसका संदेश यही कि आयोग कि बातों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह सरकार से एक्शन करवाने में देरी नहीं करेगा।
खुशी जिसने चाही वह किताब लेके लौटा…
गोपालदास नीरज की ख्यात पंक्तियां है, ‘खुशी जिसने खोजी वो धन लेके लौटा/ हंसी जिसने खोजी चमन लेके लौटा।’ मगर मध्य प्रदेश के प्रशासनिक अफसरों के बारे में कहना तो इन पंक्तियों का सहारा लेकर कहना पड़ेगा, ‘खुशी जिसने चाही वह किताब लेके लौटा…’ यह इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश के अफसर इनदिनों किताबों के जरिए अपनी खुशी की राह खोज रहे हैं। इनमें से कई अफसर ऐसे हैं जिनकी एक समय तूती बोला करती थी मगर फिर ऐसे नजरअंदाज हुए कि निगाह में चढ़ने को किताब प्रकाशित करवा बैठे। मगर कुछ मामलों में यह दांव भी काम नहीं आया।
ऐसे अफसरों में ताजा नाम वरिष्ठ आईपीएस मुकेश जैन का है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीब माने जाने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश जैन परिवहन आयुक्त बना कर ग्वालियर भेजे गए थे तो यही माना गया था कि सिंधिया की पसंद का ध्यान रखा गया है। मगर परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार की खबरें आईं, उसी समय केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कथित पत्र वायरल हुआ और यकायक मुकेश जैन को हटा दिया गया। केवल हटाया ही नहीं गया बल्कि उन्हें कोई पद भी नहीं दिया गया। वे महीनों खाली रहे। अब वे विशेष पुलिस महानिदेशक पुलिस प्रशिक्षण में पदस्थ है।
खाली दिनों में मुकेश जैन ने एक किताब लिख दी है। अब इस किताब ‘अ हैप्पियर यू’ का प्रकाशन हो गया है और सोशल साइट पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। आईपीएस मुकेश जैन के खुशी खोजने के इस प्रयास पर भी ‘दुश्मनों’ की नजर लग गई है। शिकायत हुई है कि उन्होंने सरकार की अनुमति लिए बगैर ही पुस्तक छपवा ली है। शिकायत विचाराधीन है।
आईपीएस मुकेश जैन ही क्यों आईएएस प्रमोट होने के बाद मैदानी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे आईएएस नियाज खान ने भी ब्राम्हणों का यशगान करते हुए ‘ब्राह्मण द ग्रेट’ किताब लिखी है। यह किताब जल्द हिंदी में भी प्रकाशित होगी। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की रिलीज के समय विवादों से घिरे आईएएस नियाजी पहले भी आधा दर्जन किताबें लिख चुके हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा के दौरान दबंग और सख्त अफसर की छवि वाले नियाज खान को आईएएस अवार्ड होने के बाद मैदानी पोस्टिंग का इंतजार है। देखना होगा कि यह किताब क्या उनकी प्रतीक्षा को पूरा करेगी?
ठीक इसी समय में संयुक्त कलेक्टर डॉ. जीवन एस. रजक की किताब भी आई है। जलसंसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट के ओएसडी डॉ. रजक की यह पुस्तक मध्यप्रदेश पीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए मार्गदर्शिका की तरह है। इसका विमोचन करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने पुस्तक की प्रशंसा भी की है। इन अफसरों के अलावा आईएएस राजीव शर्मा, तरुण पिथोड़े की किताबें भी प्रकाशित हुई है।