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जारी है तेल की कीमतों की मार

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-भूपेन्द्र गुप्ता

अभी-अभी कमर्शियल गैस कनेक्शन की कीमतों में 62 रुपए प्रति सिलेंडर की वृद्धि कर दी गई है । सरकार इस बात की बार-बार दुहाई दे रही है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें त़ो स्थिर हैं।
2014 में जब सरकार ने तेल की कीमतों में निरंतर वृद्धि की थी और पेट्रोल 59 रुपये प्रति लीटर से उछलते उछलते 108 रुपये तक पहुंचा था, तब बार-बार सरकार यह बताती थी कि तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर है। जैसे-जैसे दुनिया में कच्चे तेल की कीमत बढ़ती हैं वैसे-वैसे पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ाना सरकार की मजबूरी है। यह नीति मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने तब बनाई थी जब कच्चा तेल 120डालर प्रति बैरेल पर घूम रहा था और कीमतों के दबाव से बचने के लिए उन्होंने आइल पूल डिफिसिट फंड बनाया था वह बाजार के उतार-चढ़ाव को एब्जार्व करता था। इसीलिये कच्चा तेल 124 डालर होने के बावजूद पेट्रोल 58-59 रुपये लीटर मिल रहा था।
अभी-अभी मोदी सरकार के मंत्री हरदीप सिंह पुरी कई तथ्यों के साथ सामने आए हैं । उन्होंने खुलासा किया है कि देश ने जैव ईंधन यानि एथेनाल के मिश्रण से लगभग एक लाख 6 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा बचाई है।विचारणीय है कि
मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने जब एथनाल नीति बनाई थी तो उसका आशय यही था कि आयात निर्भरता घटाकर आम उपभोक्ता को लाभ पहुंचाया जाये ।वर्ष 2014 तक मिश्रित ईंधन की कैलोरिक गुणवत्ता प्रायोगिक और शुरुआती दौर में थी,अतः एथेनाल का प्रयोग पेट्रोल की कुल खपत का 1.53 फीसदी तक ही था।यह खपत अब 2023-24 में कुल खपत के 15 फीसदी तक पहुंच गई है ।लेकिन इस बचत का लाभ न तो उपभोक्ता को ही मिल रहा है न ही आयात निर्भरता में कमी ही आई है।2014 में हमारी सकल घरेलू खपत के मुकाबले आयात निर्भरता लगभग 70 फीसदी थी जो अब बढ़कर बकौल मंत्री हरदीप सिंह के 88 फीसदी पर पहुंच चुकी है।इसे नौ दिन चले अढ़ाई कोस ही कहा जा सकता है।क्योंकि अगर नीतियां सात-आठ साल में भी परिणाम न दें तो उनकी समीक्षा लाजिम हो जाती है।
इनवेस्टमेंट इनफार्मेशन एंड क्रेडिट कंपनी (ईक्रा) की रिपोर्ट बताती है कि कच्चे तेल की कीमतें 12 फीसदी कम हुईं ह़ै। रूस ने हमें बाजार से सस्ता क्रूड आइल देकर विगत तीन साल से निहाल किया है ।
इसका लाभ न तो उपभोक्ता को मिला न ही अर्थव्यवस्था को।विभिन्न तकनीकि अनुमान बताते हैं कि अगर एक डालर प्रति बैरैल कच्चे तेल की कीमत घटती है तो कंपनियों को 13 हजार करोड़ की बचत होती है।कच्चा तेल 84 डालर प्रति बैरेल से घटकर 72 डालर पर आ गया है यानि 12 डालर प्रति बैरेल कीमतें गिर गईं हैं।।जबकि
एक सरकारी आंकड़े के अनुसार मार्च से अब तक 15 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल और 12 रुपये प्रति लीटर डीजल पर मुनाफा बढ़ गया है।60 हजार करोड़ की आयात बिल में बचत हुई है।544 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आयी है। देशी सरकारी कंपनियों इंडियन आइल को 39 हजार 619 करोड़,भारत पेट्रोलियम को 26हजार 673 करोड़ एवं हिन्दुस्तान पेट्रोलियम को 14 हजार 694 करोड़ का मुनाफा हुआ है अगर इसी अनुपात में कीमतें भी घटतीं तो परिवहन कास्ट कम से कम 20 फीसदी नीचे आ जाती ।परिवहन घटता तो उत्पादन की कीमतें घटतीं,मंहगाई नीचे आती आम नागरिक के जेब में पैसा बचता तो आर्थिक गतिविधियां तेज होतीं।खपत बढ़ती और इस मुनाफे की खुशी भारत के आम व्यक्ति के चेहरे पर भी झलकती। तेल की कीमतों की बाजार से संबद्धता की नीति भी केवल जुमला साबित हुई है।करोड़ों उभोक्ताओं क्रूड आइल की बढ़ती कीमतों के दौर में में सरकार और कंपनियों का साथ दिया है लेकिन कंपनियाँ घटती कीमतों के दौर में जनता का साथ देने से बच रहीं हैं।जब पतली है तेल की धार तो क्यों जारी है मार ..!!
(लेखक स्वतंत्र विष्लेषक हैं)

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