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यदुनाथ थत्ते जी की 101 वी जयंती पर 

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  डॉ. सुरेश खैरनार,

साथियों आज मेरे सार्वजनिक जीवन के पिता आदरणीय यदुनाथ थत्ते जी की 101 वी जयंती पर  विनम्र अभिवादन !

               उनका जन्म पाँच अक्तूबर 1922 और हमे छोड़ कर जाने में तेईस साल हो रहे हैं ! यदुनाथ थत्तेजी मेरे जैविक पिता से गिनकर एक साल कम उम्र के थे ! लेकिन मेरे उपर अपने पिता के जीवन के पंद्रह साल तक विलक्षण प्रभाव रहा है ! 1942 के भारत छोडो आंदोलन में शामिल रहे थे और जीवन भर खद्दर पहनते थे ! तथा दोनों समय का खाना छोड़कर अन्य कोई व्यसन नही था ! लगभग वही छाप मेरे उपर पडने से मै भी निर्व्यसनी रहना और खद्दर पहनने की शुरुआत उन्हें देखते हुए ही की है  ! 

               मैंने अपनी पोस्ट के शिर्षक में ही लिखा है कि यदुनाथ थत्ते मेरे सार्वजनिक जीवन के पिताजी  ! मेरे जन्मदाता पीता का असर मेरे जीवन के शुरूआती  दिनो में जरूर हुआ है ! मुख्य रूप से खद्दर पहनने की आदत और किसी भी तरह के व्यसन से दूर जिसमें चाय तक शामिल थी  !

         लेकिन 1965 में आठवीं कक्षा की पढाई करने के लिए मेरी बुआ के गांव शिंदखेडा गया और वहां पर शुरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में मेरे भुगोल के शिक्षक बी बी पाटिल के आग्रह पर गया था लेकिन चंद दिनों में ही मुस्लिम मित्रों को शाखा में नही आने देने के मुद्दे पर मुझे संघ के शाखा चालकों ने चलता कराया तो किसिने कहा कि शिंदखेडा के हरिजन होस्टेल के आहाते मे एक और शाखा चल रही है लेकिन उसका झंडा केसरिया के जगह थोड़ा अपने तिरंगा झंडा के जैसे लेकिन अशोक चक्र के जगह पर यंत्र के चक्र और कुदाल फावडा है ! और उसे राष्ट्र सेवा दल बोला जाता है तो इस तरह मेरी शुरुआत 1966-67 के दौरान राष्ट्र सेवा दल मे शामिल होने के कारण ! चंद दिनों में साने गुरूजीने शुरू की हुई मराठी पत्रिका साधना का पाठक बना ! जिसके संपादक यदुनाथ थत्तेजी थे ! और उसमे आनेवाले लेख या जानकारी पर कुछ प्रतिक्रिया संपादक को पत्र लिखकर भेजनेके क्रममे, पहले पत्राचार से, और बाद में हमारी शाखा को भेट देने के लिए शिंदखेडा आनेपर, उनसे पहली मुलाकात से ही ( फाॅलिंग इन लव ) वाली बात शुरू हुई ! जो  लगभग तीस साल से भी ज्यादा समय तक जारी रही उनके मृत्यु के दिन 10 मई 1998 तक  !

               उनके अपने सुपुत्र मिहिर और सुपुत्री सुहिता लगभग मेरे ही उम्र के है ! उन्होंने उनके साथ कैसा व्यवहार किया? यह वही बेहतर बता सकते हैं ! क्योंकी दोनों पढने-लिखनेवाले, और कलाकार है !  जब वह कुमारी  उम्र की थी, और मै उनके घर यदुनाथजीसे बात कर रहा था ! तो वह बिचमेही आकर बोली की ! “बाबा मै सिनेमा देखने जा रही हूँ !” तो यदुनाथजीने “पूछा कौनसा ?” तो उसने जवाब दिया कि “बाॅबी”! तो वापस यदुनाथजी ने पुछा “कितवी बार?” तो उसने जवाब दिया कि “छठवी बार !” और यदुनाथ थत्ते जी के चेहरे पर मुस्कान देखकर ! मै खुद हैरान हो गया था ! लेकिन यदुनाथजी ने नाही कुछ टिप्पणी की ! और नाही टोका-टोकी यह सत्तर के दशक में की बात है ! आज वही छ बार बाॅबी देखने वाली सुहिता मराठी  हिंदी सिनेमा तथा नाटक और विज्ञापनों में काबिले तारीफ अभिनेत्री है ! और बेटा मिहिर थत्ते, भी किसी अखबार का संपादक है ! इस तरह दोनों बच्चे अपनी जगह ठीक-ठाक है !

                        लेकिन मेरे जैसे अनगिनत बच्चोके वह पिता की तरह ख्याल रखते थे, इतना पक्का  !

मै बहुत ही साधारण किस्म का कार्यकर्ता हूँ ! मुझमे कोई खास हुनर नही होने के बावजूद ! यदुनाथजीने खुद होकर मुझसे परिचय के बाद लगातार संपर्क में रखा है ! मै शिंदखेडा के बाद ! अगली पढाई करने हेतु अमरावती गया ! तो महीने भरके भीतर यदुनाथजी का खत ! की हमारे – अपने विचार के अमरावती में कौन – कौन लोग है ? उनके पते, और बाद में पता चला कि ! इसी तरह उन लोगों को भी उन्होंने लिखा था ! “कि मेरा तरुण मित्र सुरेश खैरनार अब अमरावती में पढने के लिए आया है ! वह राष्ट्र सेवा दल के सैनिकों मेसे एक है ! तो वह अमरावती में कुछ गतिविधियों को करेगा तो आप लोग उसे सहयोग कीजिएगा  !” 

               और उन लोगों मे कुष्ठ रोगियों की सेवा करने वाले ‘तपोवन’ के पद्मश्री शिवाजीराव पटवर्धन से लेकर मराठी भाषा के मूर्धन्य कवि सुरेश भट, मशहूर साहित्यकार पति-पत्नी वसंत आबाजी डाहाके- प्रभागणोरकर,अच्युत-रावसाहब पटवर्धन की मौसी दुर्गा ताई जोग से लेकर दैनिक हिंदुस्तान के संपादक बालासाहेब मराठे ! तथा कुछ विदर्भ महाविद्यालय के कुछ प्रोफेसर जिनमे नातू मैडम उनके फिलाॅसाफर पति प्रोफेसर डी. वाय. देशपांडे और सबसे बड़ी बात राष्ट्र सेवा दल के पुराने साथी, और स्वतंत्रता सेनानी श्री. एकनाथ हिरूडकर जिनकी मदद से मैंने अमरावती में बहुत जल्द सेवा दल के अभ्यास मंडल और बाद में शाखा की शुरुआत की है !

            और 1969 गांधी जन्म शताब्दी के शुरू के दिन मुझे यह संस्मरण लिखते हुए मेरे अमरावती के अॅक्टिविझम के दिन याद आरहे है ! लेकिन उनपर कभी अलग से लिखूंगा लेकिन यदुनाथजी की आदमियों के बिच में पुल बनाने की भुमिका सबसे महत्वपूर्ण है ! और इसिलिये हमारे देश के सबसे पहले नब्बे के दशक में बाबा आमटे के नेतृत्व में निकाली गई भारत जोडों यात्रा के मुल शिल्पकार यदुनाथ थत्तेजी ही थे और इसलिए बाबा उन्हें मेरे सपनों के सौदागर बोला करते थे !

           अन्यथा जस्ट मैट्रिक की परीक्षा के बाद अगली पढाई करने आया लडके की अमरावती में भला क्या हैसियत थी  ? लेकिन यदुनाथजी जैसे साहित्यकार और साधना जैसी पत्रिका के संपादकने खत लिखने के बाद और मेरा तरुण मित्र सुरेश खैरनार  ! (मेरा कार्यकर्ता भी लिख सकते थे  ! जो एक तरह से सही भी था ! )

           लेकिन सामने वाले को प्रतिष्ठा देकर ! उसके अंदर के गुणों को विकसित करने का काम अगर किसी ने किया है ! तो यदुनाथ थत्तेजीने और उनकी गुणग्राहकता के कारण आज महाराष्ट्र में कितने लेखक और पत्रकार और कार्यकर्ता निर्माण करने का श्रेय यदुनाथ थत्तेजी को ही जाता है ! जिसमें से कुछ लोगों के नाम सिर्फ उदाहरण के लिए ही लिख रहा हूँ ! अनिल अवचट, अनिल थत्ते, सुधीर बेडेकर, गोपुश, सुरेश भट, रजिया पटेल यह तो हो गये कुछ लिखने वाले लोग !

लेकिन महाराष्ट्र-आंध्र प्रदेश के सीमा पर के चंद्रपूर जिले के  वरोरा मे आनंदवन कि स्थापना 1949 मे करके ! बाबा आमटे कुष्ठ रोगियों की सेवा का काम कर के पंद्रह साल से भी ज्यादा समय हो गया था ! लेकिन महाराष्ट्र के लिए उनके कार्य कितने लोगों को मालूम था  ?

         यदुनाथ थत्ते जी की गुणग्राहकता के कारण ! आज भारत का सबसे मशहूर सामाजिक कामोमे आनंदवन और उसके संस्थापक श्री. बाबा आमटे  के आनंदवन से लेकर सोमनाथ और हेमलकसा जैसी गतिविधियों को अमलीजामा पहनाने के लिए ! बाबा और उनके सहयोगियों के साथ योगदान देने वाले, और उस काम को संपूर्ण देश, और दुनिया के लोगों को पता चलने के लिए यदुनाथ थत्ते जी की भुमिका और वह भी पडदे के पिछेसे रही है ! और इसिलिये बाबा खुद यदुनाथजी को मेरे सपनों का सौदागर कहा करते थे !

               हमारे मराठी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार मित्र और सशक्त कवि श्री. अनंत अहमदाबादकर तो उनको ‘किंग मेकर’ की तर्ज पर ‘बाबा मेकर’ करके बोला करते थे ! हालांकी उनके और मेरेमे बाप बेटे की उम्र का फासला था ! लेकिन मुझे कभी भी महसूस नहीं होने दिया ! कि वह उम्र से लेकर हर तरह से बडे थे  ! मेरी उनकी बात या अदान-प्रदान मे कभी भी यह बात नहीं आई है ! कि वह मुझसे बडे है  ! हमेशा बराबरी के मित्र की तरह मुझसे व्यवहार किया है  ! बाबा आमटे का सोमनाथ प्रोजेक्ट पर श्रमसंस्कार छावनी की कल्पना सर्वस्वी यदुनाथजी की है ! और उस पहली ही ( 1967 के मई माह की गर्मी में ! ) छावणी मे संपूर्ण देश भर से डेढ़ हजार से भी ज्यादा युवक-युवतियां शामिल थे ! जिनमें एक मै भी था  ! उस हप्ते भरसे ज्यादा समय के, कार्यक्रमकी पुरी बागडोर संभालने के लिए ! चुपचाप यदुनाथजीने अपने अन्य मित्रों को आगे करके वह कार्यक्रम किया है ! और शायद पचास साल से भी ज्यादा समय हो रहा है! वह श्रमसंस्कार छावनी की कल्पना आनंद वन, सोमनाथ के परिसर में जारी है ! और उसी छावनी के बाद वर्तमान डॉ प्रकाश आमटे और उनकी जीवन संगिनी डॉ मंदा आमटे के वर्तमान हेमलकसा प्रोजेकट की शुरुआत होने के पहले अस्सी के दशक की शुरुआत में शायद ( 19 71-72 के दौरान) भामरागडमभ्रमण यात्रा की संकल्पना  वर्तमान गडचिरोली जिला ! जो पहले अविभाजित चंद्रपूर जिले में आता था ! तो ‘भामरागड भ्रमण की संकल्पना’ भी यदुनाथजी ने की प्रतिभा की देन हैं ! और उसमे महाराष्ट्र – गोवा के कोने – कोने से युवक-युवतियां उस कार्यक्रममें शामिल हुए ! तब यह इलाका संपूर्ण दुनिया से अलग-थलग था ! और सफेदपोश लोगों को देख कर वह मूल-निवासी आदिवासी घबरा जाता था ! और जंगल के भीतर छुप जाता था  ! अब किसी को विश्वास नहीं होगा ! जिस इलाके में आज महाराष्ट्र की सबसे अच्छी सडक अगर कहीं है ? तो गडचिरोली जिलेमे ! क्योंकि हमारे तथाकथित नक्सल विरोधी अभियान के सैनिकों की गाडियाँको , बेखटके संपूर्ण विभागमे आराम से जाना आना होना चाहिए इसलिए  !

       काश वही पैसोको  आदिवासियों के रोजमर्रा के जीवन स्तर को अच्छा करने के लिए खर्च किया होता ! तो नाही नक्सल तैयार होते ! और नाही तथाकथित नक्सल विरोधी अभियान के सैनिकोंको तैनाती की  ! लेकिन संपूर्ण देश के जमीन के अंदर की अकूत खनिज संपदा को विदेशी पूंजीपतियोको सौपने के लिए जानबूझकर नक्सलैट-नक्सलैट की रट लगा कर अर्धसैनिक बलों के तैनाती के लिए बहाने ढूंढ कर इस तरह के तथाकथित विकास की बात कर रहे हैं  ! और देश के एक चौथाई से भी ज्यादा इलाके में अर्धसैनिक बलों के तैनाती द्वारा तथाकथित कानून और व्यवस्था कायम करने के खोखले दावे कर रहे हैं  !

         इसपर से याद आया कि यदुनाथ थत्ते जी की राय बडे बांध बनने के पक्षमे थी ! और उन्होंने उसपर अस्सी के दशक में उन्होंने बाबा आमटे से लेकर मेधा पाटकर की काफी आलोचना की थी ! तो मुझे मालूम हुआ ! और मै उसी विवाद के आस-पास कलकत्ता से पुणे किसी कार्यक्रम के लिए आया था ! और मेरी परिपाटी के अनुसार पुणे मे जिन मित्रोंको मिले बगैर मै पुणे नहीं छोड़ता था ! उनमे यदुनाथजी का नाम काफी उपर था ! तो मेरे मिलने के बाद उन्होंने पूछा कि तुम कलकत्ता कब लौटने वाले हो ? तो मैंने कहा कि “पहले अमरावती फिर नागपुर और वहासे मेरा वापसी का टिकट है !” तो बोले अगर तुमने अमरावती का टिकट नहीं लिया हो ! तो मत निकालो ! मै परसों की गाडी से अकोला किसी कार्यक्रम के लिए जाने वाला हूँ ! तो तुम भी मेरे साथ चल सकते हो !” उनके पास स्वतंत्रता सेनानी का पास था ! और उसमे एक अटेंडंड को साथ में लेकर चलने का प्रावधान है  ! तो मैंने उनके साथ अकोला तक जाने का तय किया ! गाडी दिनकी थी, तो हम लोग सेंकड एसी कंम्पार्टमेंटमे सेटल होने के बाद, मैंने उनको बडे बांध की कल्पना के बारे मे आपका कुछ अलग विचार है ? ऐसा सुना है ! और आप मेधा पाटकर और बाबा आमटे जी पर विदेशी हाथोमे खेल रहे हैं ! ऐसा भी आरोप आपने किया है ! तो आप अब मुझे बताने का कष्ट करें कि कैसे बडे बांध की कल्पना देश के लिए फायदेमंद है ! और बाबा और मेधा या बांध विरोधियों को आप विदेशी हाथोमे खेल रहे हैं ! ऐसा भी आरोप आपने किया है ! तो आप मुझे समझायें ! तो उन्होंने कहा कि “कितने दिन किसानो को वर्षाके पानी पर खेती करनी पडेगी ? और वह भी एक जुआ है ! जिसमें कभी-कभी बारिश ठीक होती है ! तो कभी-कभी अति या कम बारिश के कारण, फसल बरबाद हो जाती है  ! और सौराष्ट्र जैसे सबसे कम बारिश के क्षेत्र में नर्मदा परियोजना होने के बाद खात्री का पानी मिलेगा ! फिर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को पनबिजली मिलेगी ! वगैरा – वगैरा तर्क उन्होंने दिये ! तो मेरी बैगमे मैकवली की ‘डैमिंग डॅम्स’ नामकी किताब थी ! मैंने कहा कि आपनी इस ट्रेन को अकोला पहुचने के लिए बारह घंटे का समय है ! तो आप इसे देख सकते हो ! कि वर्तमान समय में, शास्रिय संशोधन के बाद दुनिया के विशेषज्ञोंका नीचोड है कि बडे बांध की कल्पना अब इकॉनामिक, पर्यावरणका नुकसान तथा उससे होने वाले लाभ-हानी के गणित के अनुसार महंगा सौदा है ! और पर्यावरण के नुकसान की भरपाई किसी भी तरह से नही की जा सकती ! और विस्थापन का आलम यह है, कि भारत के आजतक जितने भी विस्थापित लोगों के परियोजना के कारण विस्थापन के शिकार लोग दर-दरकी ठोकरे खा रहे हैं ! और एक भी परियोजना के विस्थापित स्थापित नहीं हुए है  ! हमारे महाराष्ट्र के कोयना के लोगों को चार बार विस्थापन का शिकार होना पड़ा है ! और अभी भी वह पुनर्स्थापित नही हो सके ! भाक्रा-नानगल के और पोंग बांध के लोगों का भी यही हाल है  !

          रहा सवाल खात्री के पानी से फसल उगाई जाने का, तो भाक्रा-नानगल और समस्त पंजाब-हरियाणाके सिंचाई द्वारा की जाने वाली खेती की पानी के भरपूर उपयोग करने की वजह से , और नये बीज पेस्टिसाईड और अन्य केमिकल्स  इस्तेमाल करने के कारण जमीन मर जाने की ! और जलजमाव और केमिकल तथा पेस्टीसाइड्स के कारण कैंसर जैसी  बिमारियों से लेकर फसल की बर्बादी के उदाहरण ज्यादा बढ रहे हैं ! और नदियों का पानी इस तरह रोकने के कारण बाढ और तटबंधों के टूटने की बात है ! कि जो कभी-कभी तबाही मचा देती है  ! जिसका सबसे ज्यादा शिकार बिहार है ! तो इस तरह बांध की कल्पना आज तकनीकी रूप से गलत साबित हो रही है ! तो अकोला तक यदुनाथ थत्ते जी की साथ की यात्रा बेकार नही गई ! और उनके परमतसहिष्णुता का गुण का प्रत्यय बहुत ही जल्द दिखाई दिया है ! 

      क्योंकि उसके तुरंत बाद, उन्होंने वंदना शिवा की ‘विकास की अवधारणा’ के उपर लिखि किताबों के उपर बहुत ही अच्छी समीक्षा लिखी है ! तो मेरा अकोला तक जाने में पैसा बचा ! और इतना समय से वह बांध समर्थक की वजह से उनके मित्रों में से एक, आंतरभारती के अध्यक्ष और गुजरात के नर्मदा परियोजना के मंत्री सनत मेहताजी भी एक कारण रहा है ! लेकिन आंतरभारती को तो संपूर्ण राष्ट्र की ‘एकता और अखंडता’ को बनाए रखने के लिए कुछ कार्यकम करने ! और विस्थापन जो की भारत की अबतक कि सभी परियोजनाओंसे सबसे ज्यादा और पुनर्वास असंभव है ! यह भारत की ‘एकता और अखंडता’ के लिए भी खतरनाक है ! क्योंकि भारत के आदिवासी लोकसंख्यामे साडेआठ से नौ प्रतिशत है ! लेकिन विस्थापन मे आदिवासी पचहत्तर प्रतिशत है  ! वैसे भारत के कुल विस्थापन का अधिकृत सरकारी आंकड़ों के अनुपलब्धता के कारण ! कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में अबतक दस करोड़ लोग विस्थापित हो चुके हैं ! जो कई देशों की जनसंख्या से भी ज्यादा है  ! विश्व बैंक की ‘मोर्स कमेटीने’  तक माना है ! और विश्व बैंक के इतिहास मे, पहली बार किसी परियोजना के लिए पैसे देने के निर्णय के बाद ! नहीं देने का निर्णय लेना पड़ा  ! तो मेरा यह दावा नहीं है ! कि मैंने यदुनाथजी का मतपरिवर्तन किया है  ! लेकिन इसमे उनके बडप्पन की बात है ! कि अपने बेटे के उम्र के एक साधारण कार्यकर्ता से खुलकर चर्चा करते थे ! और अपने आप को दुरूस्त करते थे  !

         सत्तर के दशक में हमीद दलवाई के माध्यम से, 1500 सौ सालों में इस्लाम धर्म में के मुस्लिम समाज के सुधार के लिए शायद संपूर्ण विश्व के इस्लामी इतिहास मे ! अतातुर्क केमाल पाशा, जो आजसे सौ साल पहले ! तुर्कस्थान के शासनकाल के दौरान, पहली बार इस्लाम के भीतर कुछ बदलाव की कोशिश की थी ! और दुसरा नाम भारत के चिपळून की राष्ट्र सेवा दल के शाखासे तैयार हुए ! हमीद दलवाई की, तलाकपिडित औरतो के लिए पहला जुलुस महाराष्ट्र के मंत्रालय के उपर (1966 के समय ) ले जाने की बात ! और पुणे में साधना कार्यालय मे मुस्लिम सत्यशोधक समाज कि स्थापना (1972) भले हमीद दलवाई ने कि है ! लेकिन यदुनाथजी जैसे साहित्यकार और साधना जैसी पत्रिका के संपादक की मदद साधारण बात नही है ! और सिर्फ स्थापना करके रूके नहीं ! हमेशा कार्यक्रम तथा कार्यालय के लिए जगह साधना के परिसर में, देने का निर्णय,  बहुत साहसिक कदम की बात है ! और मुसलमानों के लिए मुस्लिम मन की खबर नाम से एक किताब भी लिखी है  ! 

          उसी तरह साने गुरूजीने आंतरभारती की कल्पना की ! लेकिन उसको जमीन पर कायम करने के पहले ही वह इस दुनिया मे नहीं रहे ! तो यह काम उनके शिष्योंमेसे यदुनाथजी ने चंद्रकांत शहा और परिट गुरूजीके सहयोग से चलाने की कोशिश की है  !

          उसी तरह साने गुरूजी कथामाला की शुरुआत महाराष्ट्र के बच्चों के उदबोधन करने हेतु प्रकाश भाई मोहाडीकर के सहयोग से चलाने की कोशिश की है  ! और 27 साल साधना जैसी पत्रिका के संपादक रहे ! जिस दौरान साधना महाराष्ट्र के सभी परिवर्तन वादी  सामाजिक,राजनीतिक,सांस्कृतिक,साहित्यिक गतिविधियों का मंच के रूप मे स्वरूप था ! जो बाद में नही रहा  !

       और वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए बहुत बडा योगदान देने वाले ! और अभिनव प्रयोग करने के लिए  चित्रकार ओके की मदद से विश्व के प्रमुख वैज्ञानिकों के रेखाचित्र बनाने की बात हो या एक गांव एक कुआँ आंदोलन !

    और सबसे यादगार पल 1972 को भारत के आजादी के पच्चीस साल के उपलक्ष्य में साधना के ‘रजत जयंती विशेषांक’ मे राजा ढाले का अत्यंत विवादास्पद लेख ! जिसमे पच्चीस साल का समय हो रहा हमारे देश के आजादी को ! लेकिन आज भी हमारी माँ-बहनोके साथ अत्याचार होते हैं ! तो ऐसी आजादी को क्या करना ? जैसे तीखे तेवर उस लेख में था ! और तिरंगा झंडा फहराने की जगह उसे——-क्यो नही डाल दिया जाए  ! बगैर काट-छांट किये छापने के लिए पतित पावन संगठन के लोगों ने यदुनाथजी के उपर शाई फेककर हमला किया था ! और जितेजी उनकी अंतिम यात्रा तक निकाली गई है ! लेकिन यदुनाथजी टस-से-मच नहीं हुऐ  ! यही हिम्मत उन्होंने 25 जून 1975 के दिन आपातकाल और सेंसरशिप की घोषणा के बाद भारत के चंद पत्रकारों में से एक यदुनाथ थत्तेजी थे जिन्होंने बगैर सेंसरशिप की परवाह किए साधना साप्ताहिक को चलाने की कोशिश की है और जब सरकारी चप्पू चला तो कर्तव्य नामसे अभिव्यक्ति करने की कोशिश की है और अदालत में साधना के बैन के खिलाफ लड़ाई लड़ने का साहस दिखाया है ! और साधना को अविरत चलाने की कोशिश की है ! आज न्यूज क्लिक के उपर चल रही कार्रवाई के दौरान और यदुनाथ थत्तेजी की 101 वी जयंती के अवसर पर उन्होंने आपातकाल के दौरान किए हुए काम की बरबस याद आ रही है ! 

          अमरावती के बाद 1982 में मै अपनी पत्नी की केंद्रीय विद्यालय की नौकरी के कारण कलकत्ता गया ! तो महीने भरके भीतर यदुनाथजी का खत हमारे अपने विचार के सुरेन्द्र प्रताप सिंह जो आनंद बाजार प्रकाशन समूह के हिंदी पत्रिका रविवार के संपादक थे ! और ‘आजतक’ चैनल के संस्थापक भी रहे हैं  ! आनंद बाजार पत्रिका के संपादक रहे ! और बंगला भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री. गौर किशोर घोष,भारतीय भाषा परिषद के अध्यक्ष श्री. प्रभाकर माचवे इत्यादि मित्रों को भी पत्र लिखा था कि मेरा तरुण मित्र ( उस समय मैं, तीस साल का था ! ) सुरेश खैरनार अब कलकत्ता वासी हैं ! तो आप लोग उसे सहयोग कीजिएगा  !

            यह आदमी जोडने की कला यदुनाथजी के अलावा किसी भी अन्य लोगों मे नहीं देखा हूँ  ! इस खतके कारण मै कलकत्ता में पंद्रह साल उम्र के तीस वर्ष का था तब पहुचा था ! और पैंतालीस पुरा करके महाराष्ट्र नागपुर में वापस आया हूँ ! लेकिन वह पंद्रह साल मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन साल है ! जिसमें यदुनाथजी का योगदान बहुत बड़ा रहा है  !

         भारत जोडो ( फिर एक कल्पना यदुनाथजी की  ! ) बाबा आमटेजीको लेकर सबसे पहले ‘कन्याकुमारी से कश्मीर’ और बादमे इटानगर से ओखा तक ( पूर्व से पश्चिम ) तो पहली यात्रा मे मै शामिल नहीं था ! पर दूसरी मे यदुनाथजी के आग्रह के कारण, शांतिनिकेतन से कलकत्ता तक मै शामिल था ! और उसके एक साल में ही भागलपुर का दंगा हुआ था ! 1989 के अक्तूबर मे ! और बाबा आमटे जी को मैंने  काफी लंबी चिठ्ठी लिखी थी ! “कि आपने संपूर्ण भारत के जोडने की यात्रा की है ! लेकिन उसके तुरंत बाद ही भागलपुर मे तीन हजार से अधिक लोगों की हत्या की गई है ! और उसमे सबसे ज्यादा मुसलमान है ! तो आप महात्मा गाँधी के जैसे (नोआखाली ) भागलपुर मे आईये ! मै आपके साथ रहूंगा ! लेकिन बाबा कसरावाद के किनारे नर्मदा परियोजना के खिलाफ कैंप करके बैठ गए थे ! बादमे मेधा पाटकर कलकत्ता से आग्रह करके अपने साथ मुझे बड़वानी लेकर गई ! तो मैंने कहा कि आप बड़वानी रहो मै बाबा कसरावाद आये तबसे पहली बार आया हूँ ! तो मुझे उन्हें मिलने के लिए कसरावद जाने दो ! तो मुझे मेधाने खुद अपने साथ जिपसे पहुंचाया ! बाबा और साधना ताई बहुत ही खुष हुए ! और बाबा तो कलकत्ता के बाद भागलपुर दंगे के उपर लिखि मेरी चिठ्ठी को लेकर कन्फेशन देने लगे ! “कि सचमुच तुम्हारी चिठ्ठी से मै पेशोपश मे पड गया था ! लेकिन मेधा आनंदवन आकर मुझे यहां पर लेकर आई वगैरा – वगैरा !” मैंने उन्हें कहा कि “आप ने यहाँ आकर गलत किया ! ऐसा मेरा मानना नहीं है ! लेकिन आपने आपके जीवन के बहुत महत्वपूर्ण समय को आपकी तबीयत खराब रहते हुए ! भारत जोडो के लिए इतनी बडी दो-दो यात्राऐ करने के आस-पास ही ! राम मंदिर के लिए निकाली गई रथयात्रा के दौरान ! भागलपुर का दंगा, आजादी के बाद भारत के किसी भी दंगेसे इतना बडा दंगा हुआ है ! तो आप को महात्मा गाँधी के तरह भागलपुर मे ही बैठकर सांप्रदायिकता के खिलाफ़ अलख जगाने का काम करना चाहिए था ! क्योंकि भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु आनेवाले पचास साल तक यह समस्या के इर्द गिर्द ही रहने वाला है  ! और यह बात मै बाबरी मस्जिद विध्वंस के पहले ! यानी आजसे तीस साल पहले ! बोल लिख रहा था ! जिसकी कद्र यदुनाथजी कर रहे हैं ! जिन्हें आप अपने सपनों का सौदागर कहा करते हो ! तो बाबा बोले ” कुछ दिनों पहले ही यदुनाथजी यहाँ आकर गये ! और उन्होंने भी तुम्हारे भागलपुर का दंगा के बाद, मैंने भागलपुर में जाना चाहिए था ! यही मुझे बताने का काम किया !” और अब मुझे भी लगता है कि मैंने भागलपुर जाने कि जरूरत थी ! और तुम मुझे माफ करना  ! ” मैंने कहा कि आपको मेरी माफी मांगने की जरूरत नहीं है ! आप और महत्वपूर्ण मुद्दा ‘विकास की अवधारणा’ के लिए ! यहाँ आकर बैठे हो ! क्योंकि वर्तमान सांप्रदायिकता के संकट के साथ मुझे वर्तमान विकास परियोजनाओं की वजह से हमारे पर्यावरण को कितना बड़ा नुकसान हो रहा है और उसके ही कडी मे नर्मदा बचाओ आंदोलन को मेरा पूर्ण रूप से समर्थन है और इस बार मेधा मुझे कलकत्ता से आग्रह करते हुए लेकर भी आने की वजह यही है !

                 लेकिन भारत जोडो के लिए निकाली गई यात्रा के एक साल के भीतर भागलपुर का दंगा हुआ है ! इसलिए उसे प्राथमिकता देनी चाहिए थी ! बस इतना ही !” 

             आज मेरे सार्वजनिक जीवन के पितृतुल्य यदुनाथ थत्तेजी की 101 वी जयंती के अवसर विनम्र अभिवादन के साथ ! 

   

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