निर्मल कुमार शर्मा,
आज से ठीक 22 वर्ष पूर्व 1999 में भारत और पाक के बीच एक साठ दिन लम्बा युद्ध चला,जो 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ । भारत की सीमा में स्थित कारगिल नामक एक जगह पर स्थित एक पहाड़ की चोटी पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया था,इस युद्ध का मुख्य कारण भारत की मुख्य भूमि और लद्दाख के बीच स्थित गलियारे पर कब्जा करके लद्दाख और सियाचिन को अलग-थलग करना पाकिस्तान का गुप्त उद्देश्य था । इस छद्म युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रायोजित घुसपैठियों की स्थिति बहुत सुदृढ थी,क्योंकि दुश्मन पहाड़ की चोटी पर पहले से बंकर बनाकर सुरक्षित ठिकाने पर था और भारतीय सेना को उस पहाड़ की तलहटी से उस पहाड़ी को फतह करना था,भारतीय सेना के लिए यह बहुत कठिन और दुर्जेय सा कार्य और स्थिति थी,क्योंकि दुश्मन ऊपर बैठा,भारतीय सेना की हर हरकत को पत्थरों की ओट में छिपकर देखकर उस पर बहुत तीव्र और घातक हमला कर सकता था । इस युद्ध में भारत के बहादुर जवानों ने इस अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में भी अपने कुशल रणनीतिक चालों से पाकिस्तानियों को धूल चटा के रख दिया,परन्तु बहुत-बहुत अफ़सोस कि इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 जवानों को अपने अमूल्य जीवन की कुरबानी भी देनी पड़ी थी,वे अपने पीछे अनाथ बच्चों,विलखती विधवा बीबी और बूढ़े माँ-बाप को बेसहारा छोड़ जाने को अभिशापित हुए !
प्रायः हर युद्ध के तुरन्त बाद ये सरकारें और उनके बड़बोले कर्णधार अक्सर शहीद हुए जवानों के परिजनों के लिए सरकारी मदद की वायदों की झड़ी लगा देते हैं यथा शहीद परिवार के भरण-पोषण हेतु उसे पेंशन के अलावे उसे पेट्रोल पंप आबंटित कर देना,कृषि करने हेतु मुफ्त में भूमि उपलब्ध करा देना,उसके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करा देना और उनके बालिग होने पर एक अदद सरकारी नौकरी देना आदि-आदि,बहुत से लोकलुभावन वादे ! परन्तु अत्यन्त दुःख के साथ यह कहना और लिखना पड़ रहा है कि समय बीतने के साथ इन सरकारों के जुमलेबाज,वादाखिलाफी करनेवाले और झूठे कर्णधार अपने किए कथित सरकारी वादे को याद नहीं रखते ! सीमा पर तैनात सेना का एक जवान,जो वास्तव में एक गरीब किसान का बेटा होता है,अपने बीवी-बच्चों और माँ-बाप के भूख के शमन के लिए,चन्द पैसों के लिए इस देश की सीमाओं की रक्षा के लिए नौकरी के लिए बाध्य होकर,अपने अमूल्य जीवन को खो देता है,उसके पीछे उसका विलखता और बेसहारा परिवार यथा बच्चों,विधवा बीबी और उसके बूढ़े माँ-बाप बहुत ही गरीबी और दयनीय जीवन जीने पर मजब़ूर हो जाते हैं । उदाहरणार्थ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के जेहरा गाँव निवासी स्वर्गीय राजेश बैरागी भारतीय वायुसेना के पैराशूट रेजीडेंट में लांस नायक पद पर नियुक्त थे । वे बहादुरी से लड़ते हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गये थे,मरणोपरांत सरकार की तरफ से यह सार्वजनिक घोषणा की गई थी,कि इस शहीद के परिवार के गुजारे के लिए कुछ कृषि जमीन सरकार उपलब्ध करायेगी । आज 22 साल बीतने के बाद भी,जबकि शहीद जवान के माँ-बाप अब अत्यन्त वृद्ध लगभग 92 साल के हो चले हैं,को अपने बेटे खोने के बाद भी इस बुढ़ापे में खेत मिलना तो अलग,उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खऱाब है कि कर्ज लेकर उन्हें अपनी दवा भी खरीदनी पड़ रही है ! उन्हें मिलने वाली शहीदी पेंशन भी समय से नहीं मिलती,कभी-कभी छः-छः माह बाद तो कभी-कभी नौ-नौ महिने तक पेंशन पाने का इन्तजार करना पड़ता है !
यक्ष और ज्वलंत प्रश्न यह है कि हम जिन जवानों के जीवन की कीमत पर युद्ध जीतते हैं,हर साल धूम-धड़ाके से कथित विजय दिवस और शौर्य दिवस मनाने का भोंडा और फूहड़ प्रदर्शन करते हैं,लेकिन हम,हमारा समाज और हमारी सरकारों के कर्णधार उन्हीं शहीदों को भुला देते हैं,जिनके मौत की कीमत पर हम उक्त युद्ध जीतने का शौर्य दिवस मना रहे हैं ! वास्तविकता और कटुसच्चाई ये है कि युद्ध में बार्डर पर एकदम अगली पंक्ति में दुश्मन के सामने सदैव जवान खड़ा रहता है ! और 90 प्रतिशत मामलों में हमेशा जवान ही शहीद होता है ! परन्तु वास्तविकता यह है कि सेना के इस शहीद होनेवाले जवान की सेना के बड़े अफसरों के मुकाबले सबसे न्यूनतम सुविधाएं व कम वेतन मिल रहा होता है,वह सबसे निकृष्टतम् खाना,कपड़ा,जूते,स्वेटर और वर्दी पहनता है,वह भीषण गर्मी,ठिठुरती सर्दी व घनघोर बारिश व ओलावृष्टि में भी देश की सीमा पर बगैर विचलित हुए अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा,समर्पण, कर्मठता व कर्तव्यनिष्ठ होकर निभाने की भरसक कोशिश करता है। सेना के बड़े अफसरों का जीवन हर तरह से सुविधा सम्पन्न,उच्च वैतनिक और सुरक्षित होता है,भारतीय जनमानस में एक मुहावरा बहुत प्रचलित है कि वास्तविक युद्ध तो सेना का जवान सीमा पर ड्यूटी करके शहीद होकर निभाता है,सेना के सबसे बड़े अफसर जनरल साहब तो नई दिल्ली के अतिसुविधासंपन्न अपने वातानुकूलित कमरे में उसकी दिवार पर टंगे नक्शे पर एक नोकदार छड़ी लेकर बॉर्डर पर केवल इशारों में युद्ध का संचालन करते हैं ! हर साल 26 जुलाई को राजधानी दिल्ली स्थित अमर जवान ज्योति पर इस देश के रक्षा मंत्री सहित तीनों सेनाओं के सेना प्रमुखों और बड़े-बड़े अफसरों के साथ कारगिल में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाने की एक परंपरा निभाई जाने की खानापूर्ति की जाती है । इस श्रद्धांजलि देने की औपचारिकता पूरी करने से भी जरूरी यह है कि यह कृतघ्न देश,हम और हमारा समाज उन शहीदों को याद रखें कि वह शहीद अपने पीछे अपना रोता-विलखता,अनाथ परिवार छोड़ के गया है, उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी इस देश,इस सरकार,इस समाज की है। इस कृतघ्न समाज, इस देश और इसके कर्णधारों को यह बात ठीक से याद रखनी चाहिए कि उस शहीद को सही और सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उसका परिवार उसके पीछे भी भूखे न मरे,उस बेसहारा परिवार को कम हर महीने समय से पेंशन तो मिल जाए ! ताकि उसे समय से खाना मिल जाय,उसके बच्चे पढ़-लिख जाँय और उसके बूढ़े और बेसहारा माँ-बाप अपने सपूत के पीछे दर-दर की ठोकरें खाने को अभिशापित न हों !
-निर्मल कुमार शर्मा,
‘गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण ‘,प्रताप विहार,गाजियाबाद,