अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

एक ओर अंधश्रद्धा उन्मूलन दूसरी ओर चमत्कार के विज्ञापन

Share

शशिकांत गुप्ते

पृथ्वी के अतिरिक्त अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों में किसी ग्रह पर मानव जीवन हों सकता है?वैज्ञानिकों द्वारा ग्रहों की सतह पर यान भेजकर खोज की जा रही है।
ऐसी कल्पना की जाती है कि,किसी ग्रह पर विचित्र तरह की शारीरिक रचना के एलियन्स नाम के मानव रूपी प्राणी हैं?
अपने देश के फ़िल्म निर्माताओं ने तो उक्त कल्पना के आधार पर फ़िल्म भी बना दी है।
फ़िल्म निर्माता प्रायः कल्पनाओं के आधार पर ही फ़िल्म बनातें हैं।
फ़िल्म की कहानी लिखने वाले लेखकों की कल्पना अंतरिक्ष यान की उड़ान की क्षमता से बहुत ऊची होती हैं।
कंप्यूटर की खोज के बाद तो फिल्म निर्माताओं के लिए Trick photography और भी आसान हो गई है।
Trick इस अंग्रेजी शब्द का हिंदी अनुवाद होता है, छल।छल शब्द के पर्यायवाची शब्द होतें हैं।दगा, दगाबाजी,ठगी,फरेब,कपट, धोखा,धूर्त्तता,धोखेबाजी,चकमा आदि।
फिल्मों में ट्रिक फोटोग्राफी से चमत्कारों को दिखाकर मनोरंजन की आड़ में अंधश्रद्धा को बढ़ावा दिया जाता है।
फिल्मों में अंधश्रद्धा को बढ़ावा देने के साथ ही सामाजिक रुढियों,सामंती सोच और पुरुषप्रधान मानसिकता को भी भरपूर प्रश्रय दिया जाता है।
फिल्मों में ट्रिक फोटोग्राफी के माध्यम से सबसे अधिक प्रभावित होता है चिकित्सविज्ञान?
फिल्मों अभिनय करने वाला कोई भी कलाकार कितनी भी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हो,या किसी भी दुर्घटना से भयंकर रूप से घायल भी हो जाए,उसे कितनी भी पिस्तौल या बंदूक की गोली लग जाए।
ऐसे दृश्य को जब चिकित्सालय में दर्शाया जाता है,तब अभिनय करने वाले चिकित्सक ऑपरेशन कक्ष में शल्य चिकित्सा करने का अभिनय करतें हैं।दूसरी ओर दर्शाया जाता है कि,मरणासन्न स्थिति में पहुँचने का अभिनय करने वाले कलाकार के सगे सम्बंधियो का अभिनय करने वाले कलाकार चिकित्सलय में स्थित मंदिर या अन्य किसी स्थान पर भगवान की आराधना में कोई गाना गातें हैं। गाने की अंतिम पंक्ति समाप्त होने तक तो मरीज को पूर्ण रूप से होश आ जाता है।
फिल्मों यह सब नाटकीय होता है,लेकिन भावुक दर्शक ट्रिक फोटोग्राफी के झांसे में आ ही जातें हैं।
फिल्मों की ही तरह धरवाहिको में भी सामंती मानसिकता को प्रश्रय दिया जाता है।
भावुक लोग फिल्मों और धारावाहिको की कल्पनातीत कहानियों को सच मानतें हुए उनका अंधानुकरण करतें हैं।
इसीतरह कुछ एक देशभक्ति की फिल्मों को छोड़ बहुत सी फिल्मों में क्रांतिकारियों के किरदार को महज मनोरंजन के लिए दर्शाया जाना क्रांतिकारियों की अवहेलना जैसा प्रतीत होता है?
हिंसा किसी भी रूप में की जाए, चाहे वह धार्मिक उन्माद के कारण हो चाहे बाहुबल के सहारे जनसामान्य में दहशत फैलाने वाली हो,अंतः हिंसा कायरता का ही प्रमाण है।
किसी भी फ़िल्म का अंत हिंसा के बगैर होता ही नहीं है।
सामाजिक विषय पर बनने वाली फिल्मों या धारावाहिको में स्त्री के द्वारा स्त्री को प्रताड़ित करने की इंतहा बताई जाती है।
धारावाहिको में तो विवाहपश्चात या विवाह पूर्व एक दूसरे के साथ प्रेम सम्बंधो को दर्शाने की मानो परंपरा ही बन गई है।यह भारतीय संस्कृति पर गम्भीर प्रश्न है?
उपर्युक्त विषय पर व्यापक दृष्टि से सोचने पर ज्ञात होता है कि, यह यथास्थितिवादियों का सुनियोजित ही षडयंत्र है।
इस षडयंत्र में बहुत हद तक समाचार माध्यम भी सलग्न दिखाई देतें हैं।
सामाचारों में एक ओर अंधश्रद्धा के विरुद्ध बहुत बड़े लेख प्रसारित प्रकाशित किए जातें हैं।दूसरी ओर समाचार माध्यमों में अंधश्रद्धा को बढ़ावा देने वाले बाबाओं के विज्ञापनों की भरमार होती है।
इसीलिए वैज्ञानिकों को किसी अन्य ग्रह पर मानव के अस्थित्व की खोज करने के बजाए,पृथ्वी पर निवास कर रहें, मानवों में मानवता किस तरह जागृत हो इसकी खोज करना चाहिए।मानवता का पाठ वैश्विक स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें