ओमप्रकाश मेहता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से एक बार पुनः अपनी सरकार का यह संकल्प दोहराया कि देश में स्थानीय संस्थाओं से लेकर राष्ट्रीय स्तर के सभी चुनाव एक साथ करवाए जाएगें और यह प्रक्रिया पांच साल बाद अर्थात् 2029 के चुनावों से शुरू कर दी जाएगी। केन्द्रीय प्रतिरक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी भी यही घोषणा पहले भी कर चुके है, अर्थात् अब यह सरकार इस देश में साल भर तक चलते रहने वाले विभिन्न चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि और समय से मुक्ति दिलाने की ओर अग्रसर है, यद्यपि देश की आजादी के बाद पच्चीस से भी अधिक वर्षों तक एक साथ चुनाव कराने की ही प्रक्रिया जारी थी, जो 1971 तक चली बाद में फिर देश में विभिन्न स्तर के चुनाव उनकी कालावधि के अनुसार अलग-अलग सम पर होने लगे, अब प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की कमेटी का प्रस्ताव स्वीकार कर देश में फिर से सभी चुनाव एक साथ कराने की अनुशंसा पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी है और सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि पांच साल बाद अर्थात् 2029 में होने वाले लोकसभा चुनावों के समय पूरे देश की विभिन्न संस्थाओं के चुनाव भी करा लिए जाएगें और इसके लिए बाकायदा संसद से कानून में संशोधन करावाकर तैयारी पूरी की जाएगी। सरकार की दलील है कि इस प्रक्रिया के लागू होने से देश को चुनावों पर खर्च होने वाले करोड़ों रूपए की बचत के साथ समय की भी बचत होगी और फिर चुनी हुई सरकारें पूरे मनोयोग से जनहित के फैसले ले सकेगी।
वर्तमान में स्थिति यह है कि देश में हरसमय किसी न किसी संस्था या जनसंस्थओं के चुनाव चलते रहते है, इसके कारण सरकार पूरे मनोयोग से जनहितैषि योजनाओं पर ध्यान नही दे पाती और पंाच साल की अवधि में सिर्फ एक या दो साल ही ठीक से सरकार चल पाती है, बाकी समय चुनावी तिकड़मों में नष्ट हो जाता है, इन्हीं सब कारणों से मोदी सरकार यह फैसला लेने जा रही है, जिसका उन्होंने आज अपने स्वतंत्रता दिवस के सम्बोधन में जिक्र किया। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठन किया था, जिसने विगत 14 मार्च को अपनी 18,626 पन्नों की रिपोर्ट केन्द्र राष्ट्रपति को सौंपी है, इस रिपोर्ट में बताया गया था कि ‘एक देश-एक चुनाव’ के प्रस्ताव पर समिति ने 62 राजनीतिक दलों से चर्चा की, जिसमें से 32 दलों ने प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की, जबकि पन्द्रह राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, इस तरह 47 दलों ने ही इस प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, शेष दलों ने अभी तक कोई जवाब प्रस्तुत नही किया है।
यह महत्वपूर्ण जानकारी केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने संसद में दी। इस प्रस्ताव को प्रस्तुत करने वाली केन्द्र सरकार का कहना है कि यदि देश के सभी चुनाव एक साथ करवा लिए जाए तो चुनाव जीतने वाले दलों की संस्थाऐं पूरे पांच साल बिना किसी अवरोध के जनहित के कार्य पूरे कर सकती है, उसे किसी भी तरह की अड़चन पैदा नही होगी, वह अपने चुनावी घोषणा पत्र को मूर्तरूप दे सकेगी, जबकि मौजूदा हालातों में चूने हुए दलों व उनकी संस्थाओं का काफी समय व पैसा प्रचार व अन्य कार्यों पर खर्च हो जाता है और यह राशि करोड़ों अरबों में होती है, यदि इस राशि को किसी भी तरीके से बचा लिया जाता है तो यह राशि जनहित के अन्य कई महत्वपूर्ण कार्यों पर खर्च की जा सकी है साथ ही चुनावों पर खर्च होने वाली राशि से अन्य कार्य भी सम्पन्न हो सकते है, इसीलिए मोदी सरकार के साथ राज्यों की भाजपा सरकारें इस पर गंभीर चिंतन कर चूकी है। ….और कोई आश्चर्य नहीं कि केन्द्र सरकार अपने स्तर पर तथा अपनी भाजपा राज्य सरकारों से राज्य स्तर पर इस योजना को शीघ्र मूर्तरूप दे दें, इसलिए देश की जनता को भी प्रति पांच वर्ष में ‘चुनावी पर्व’ मनाने के लिए मानसिक तथा व्यवहारिक रूप से अपने आपको तैयार करना होगा।