एक ऐसे दौर में जहां केवल सरपंच का पद मिलने से ही जिंदगी भर के लिए नेताओं के तेवर, रहन-सहन और आर्थिक स्थिति बदल जाती है। ऐसे में MP के श्योपुर जिले की महिला गुड्डीबाई लोगों के लिए मिसाल बनकर उभरी हैं।
जानिए गुड्डीबाई की कहानी
श्योपुर जिले के सेसईपुरा गांव में रहने वाली गुड्डी बाई साल 2010 में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीती थीं। उन दिनों को याद करते हुए वे कहती हैं- जो पहले पूछते तक नहीं थे वे हाथ जोड़कर मिलने आने लगे। कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ भी एक आदेश पर मीटिंग बुला लेते थे। किसी इलाके का कोई काम होता था, तो फोन करने पर ही हो जाता था। सरकार ने लालबत्ती की गाड़ी, रहने के लिए जिला मुख्यालय पर घर और कर्मचारी दिए। तब भी मैंने जिले के कामकाज पर ही ध्यान रखा। कभी खुद के लिए बंगला-महल नहीं बनवाया। न तो गाड़ी खरीदी, न ही प्लॉट और मकान लिए। आजकल देखो तो सरपंच भी उगाही में लगे रहते हैं।
अब खेतों में घास खोदती हैं गुड्डी
गुड्डीबाई 2015 से 2022 तक जनपद सदस्य भी रहीं। इसके बाद इनकी जिंदगी फिर पुराने ढर्रे पर लौट गई। वो अब कभी खेतों में घास खोदती नजर आती हैं तो कभी लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रखकर लाती दिखाई देती हैं। जब मजदूरी का काम नहीं होता तो घर के पास एक टपरी में गोली-बिस्कुट बेचती हैं। कुल मिलाकर यही उनकी कमाई का जरिया है।
भ्रष्टाचार से अच्छी है मेहनत-मजदूरी
राजनीतिक पूछ-परख के सवाल पर गुड्डीबाई उदास हो जाती हैं। कहती हैं- तब भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया था। उसके बाद अब कोई नहीं पूछता। किसी कार्यक्रम में भी नहीं बुलाते। मिलने भी कोई नहीं आता। राजनीति ने मुझे छोड़ दिया तो मैंने भी राजनीति को छोड़ दिया। शायद भ्रष्टाचार करती तो सब पूछते। खैर भ्रष्ट नहीं होने का कोई मलाल नहीं है। मेहनत-मजदूरी करने में कोई शर्म भी नहीं। सरकारी पैसे की चोरी-डकैती से अच्छा है मेहनत-मजदूरी करना।

खेत में घास उखाड़ने का काम करती हुईं गुड्डीबाई। जब मजदूरी का काम नहीं होता है तो टपरी पर गोली और बिस्किट बेचकर अपना गुजारा करती हैं।
कोई और होता तो ऐशो आराम से जीता
सेसईपुरा गांव में रहने वाले कमल गुर्जर कहते हैं- गुड्डीबाई आदिवासी समाज से हैं। वे बेहद ईमानदार हैं। 5 साल जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। तब करीब सवा दो सौ पंचायतें उनके नीचे काम कर रही थीं। भ्रष्ट होतीं तो गाड़ी, बंगला और ऐशो आराम का हर संसाधन अपने प्रभाव से जुटा सकती थीं, लेकिन वो आज भी मजदूरी करती हैं। ऐसा नहीं है कि वो कम पढ़ी लिखी हैं इसलिए भ्रष्टाचार नहीं कर सकीं। हम देखते हैं कि कम पढ़े-लिखे छुटभैये नेता भी कैसे उगाही कर रहे हैं।

गुड्डीबाई रोजाना चार किमी दूर जंगल से सूखी लकड़ियां काटकर लाती हैं। उनका कहना है कि सरकारी पैसे की चोरी-डकैती से अच्छा है मेहनत-मजदूरी करना।
जिस स्कूल में पढ़ीं वहीं शिक्षक-पालक संघ अध्यक्ष बनीं
सेसईपुरा के सरकारी स्कूल से 5वीं तक पढ़ीं गुड्डीबाई इसी स्कूल में 2006-07 में शिक्षक-पालक संघ की अध्यक्ष रहीं। 2009 में वन्या रेडियो की अध्यक्ष रहीं। 2010 में वार्ड 10 से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ीं। 2015 तक जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। 2015 में जनपद पंचायत सदस्य का चुनाव जीतीं। 7 साल तक जिला पंचायत सदस्य रहीं।
पांच साल में कई अहम काम किए
गुड्डीबाई ने जिला पंचायत अध्यक्ष रहते हुए क्षेत्र में पेयजल समस्या निपटाने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। अपने कार्यकाल में 100 से ज्यादा हैंडपंप लगवाए। स्टॉप डेम और तालाब बनवाए। गांव को जोड़ने के कई रास्ते बनवाएं। सुदूर सड़कों का भी निर्माण कराया। आदिवासियों की जमीनों को दबंगों के अतिक्रमण से मुक्त भी कराया।

आजादी के जश्न के सरकारी कार्यक्रमों में गुड्डीबाई अब भी स्वेच्छा से जाती हैं। (सबसे बाएं हरी साड़ी में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष)
पति की मौत 20 साल पहले, बेटा-बेटी रहते हैं अलग
55 साल की गुड्डीबाई बताती हैं कि शादी 28 साल पहले भीमसेन से हुई थी। पति की मौत 20 साल पहले हो गई। बड़ी बेटी मल्लाह की शादी कर दी। बेटे दिलीप और मनोज की भी शादी कर दी। वो अलग रहते हैं। गुड्डीबाई अपने अलावा अपनी मां पुष्पा के बुढ़ापे का सहारा भी हैं।