अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

भारतीय फिल्म जगत का एक दैदीप्यमान नक्षत्र:मनोज कुमार

Share

ऋतुपर्ण दवे

भारतीय फिल्म जगत का एक दैदीप्यमान नक्षत्रए वो चमकता सितारा जिसने कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। जिसकी हरेक फिल्म में कूट.कूट कर देश प्रेम भरा है। जिसके अन्दर भारतीयता की ऐसी लौ थी कि खुद ही भारत कुमार बन गया। यकीन नहीं होता कि मनोज कुमार हमारे बीच नहीं रहे! लेकिन उनका अभिनयए आदर्श और सबसे बड़ी देश प्रेम की प्रेरणा कभी चुकने वाली नहीं। जब तक सृष्टि रहेगीए धरती और ब्रम्हाण्ड रहेगा तब तक भारत रहेगा और भारत कुमार के बोल ष्मेरे देश की धरती सोना उगले.उगले हीरा.मोतीष् सबके कानों में गुंजायमान होते रहेंगे। अद्वितीय प्रतिभा के धनी मनोज कुमार ने कभी भी फिल्म को फिल्म नहीं बल्कि संस्कारए देशहित और संदेशवाहक के रूप में देखा। यही कारण था कि उनके द्वारा अभिनीत फिल्में भारतीय सिने जगत में तो परचम लहराती रहीं विदेशों में भी जबरदस्त लोकप्रिय हुईं।


24 जुलाई 1937 को जन्मे मनोज कुमार के नाम से मशहूर हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी का जन्म पाकिस्तान के एबटाबाद में हुआ था। उनका जंडियाला शेर खान और लाहौर जैसे इलाकों से भी संबंध रहा है। उन दिनों जब दिल्ली में सुभाष चंद्र बोस की आईएनए से जुड़े लोगों का ट्रायल चल रहा था तो लाहौर के नौजवान और बच्चे जुलूस निकाल नारे लगाते थे ष्लाल किले से आई आवाज ढिल्लोए सहगलए शाहनवाजष्। इनमें मनोज भी शामिल होते। इस बीच स्वतंत्रता मिलीए बंटवारा हुआ देश भारत.पाकिस्तान में बंट गया। बंटवारे के बाद हुई हिंसा में उनके चाचा मारे गए। उनके पिता उन्हें लाल किला ले गए। दोनों ने वहां नारे लगाए। इसकी छाप उनके जीवन में पड़ी। वो दिल्ली के शरणार्थी कैंप में भी रहे। वहीं उनके भाई का जन्म होने वाला था। लेकिन हिंसा के बीच अस्पताल के लोग भी भूमिगत हो गए और बिना इलाज भाई मारा गया। यहीं से उनके मन में दंगों को लेकर नफरत हुई। लेकिन पिता ने जिंदगी में कभी दंगा.मारपीट न करने की सीख दी। जिससे उनका हृदय परिवर्तन हुआ।
दिल्ली में ही उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की। बचपन से ही उन्हें फिल्मों का बहुत शौक था। वह अभिनेता बनना चाहते थे लेकिन उन्होंने फिल्मों में आने से पहले हिंदू कॉलेज से बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली। अपने बचपन से ही फिल्मों में जाने के शौक से छोटी सी उम्र में ही अभिनेता बनने मायानगरी मुंबई का रुख किया और मायानगरी मुंबई आ गए। वो दिलीप कुमारए अशोक कुमार और कामिनी कौशल से बेहद प्रभावित रहे।
वर्ष 1957 में महज 19 साल की उम्र में मनोज कुमार को पहली बार फिल्म फैशन में 80.90 साल के भिखारी का छोटा सा रोल मिला। इसके बाद वो लगातार 10 वर्षों तक संघर्ष कर अपने जूते घिसतते रहे। उन्हें एक बात बहुत चुभ गई थी जब उन्होंने अपने पहले लेकिन छोटे से अभिनय को लेकर फिल्म निर्माता लेखराज भाकड़ीए कुलदीप सहगल से पूछा कि उन्हें बड़ा रोल कब मिलेगाघ् जवाब मिला की लोगों की उम्र निकल जाती है अभी जूते घिसो। बस यही शब्द उनके जीवन के टर्निंग प्वॉइंट बन गए। यहां से उन्होंने फिल्मों में लिखने का काम भी शुरू कर दिया। जिसमें खासी सफलता मिली। इसको लेकर एक मजेदार वाकया भी है। अपने संघर्ष के दिनों में दुर्घटनावश अपने आदर्शों में से एक अशोक कुमार यानी दादा मुनि की फिल्म का एक सीन लिखने का मौका मिला। हुआ यह कि प्रोड्यूसर रोशन लाल मल्होत्रा फिल्म ष्जमीन और आसमानष् बना रहे थे। इसके लिए लिखा गया सीन उन्हें पसंद नहीं आ रहा था। जिससे वो परेशान हो गए। इसी बीच उनसे मिलने मनोज कुमार पहुंचे। जिन्होंने परेशानी का कारण पूछा और जवाब में मनोज कुमार बोले कि क्या मैं लिख दूंघ् खिसियाए मल्होत्रा जी ने कहा कि एक तो अशोक कुमार की डेट्स बड़ी मुश्किल से मिली ऊपर से उन्हें फिल्म का एक सीन पसंद नहीं आ रहा है। चलो लिखो। इस तरह मनोज कुमार ने सीन लिखा जो अशोक कुमार को बहुत पसंद आया। इसके लिए उन्हें ग्यारह रुपए मिले। इसके बाद तो यह सिलसिला शुरू हो गया। कई प्रोड्यूसर उनसे फिल्मों के सीन लिखवाने लगे। लेकिन मनोज कुमार के मन में कुछ और चल रहा था जिसे लेकर उनकी कोशिशें जारी रहीं। इसके बाद कई प्रोड्यूसर उनसे फिल्मों के सीन लिखवाने लगे। लेकिन हीरो बनने का प्रयास जारी रखा। आखिर मेहनत रंग लाई। 1961 में फिल्म कांच की गुड़िया मे ब्रेक मिला। इसके फौरन बाद अगले साल उन्हें विजय भट्ट की फ़िल्म श्हरियाली और रास्ताश् मिली जिसने उनकी जिंदगी का रास्ता बदल दिया।
उनके दिल में देश भक्ति कूट.कूट कर भरी थी। आजादी के बाद जब भारतीय फिल्मों का दौर बदल रहा था तब मनोज कुमार एक्शनए रोमांटिक फिल्मों के बजाए देश भक्ति की ओर बढ़ रहे थे। यह उनकी निष्ठा और भावना थी जो उन्होंने 1965 में देश भक्ति से ओत.प्रोत फिल्म शहीद बनाई। इसमें शहीद भगत सिंह की भूमिका निभाई। 1965 के भारत.पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हुई जिन्होंने उन्हें युद्ध में होने वाली परेशानियों पर फिल्म बनाने को कहा। शास्त्री जी कहा कि मेरा एक नारा है जय जवान.जय किसान। इस पर कोई फिल्म बनाओ। मनोज कुमार ने फिल्म उपकार बनाई जो सबको बहुत पसंद आई। हालांकि शास्त्री जी इसे नहीं देख पाए क्योंकि उसी बीच उनकी मृत्यु हो गई थी। उपकार आज भी जबरदस्त लोकप्रिय है। इस फिल्म से मनोज कुमार की किस्मत रातों.रात बदल गई। उपकार की कहानी और गाने दर्शकों को बेहद भाए। वास्तव में फिल्म में भारत के किसान के संघर्ष को दिखाया गया है। इसी फिल्म ने मनोज कुमार को दूसरा नया नाम भारत कुमार दे दिया। यूं तो मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गोस्वामी था। लेकिन बॉलीवुड में उन्होंने मनोज कुमार और भारत कुमार के नाम से परचम फहराया। उन्होंने बॉलीवुड को एक से एक हिट फिल्में दी। जिनमें उपकारए पत्थर के सनमए रोटी कपड़ा और मकानए संन्यासीए हिमालय की गोद मेंए पत्थर के सनमए नील कमलए पूरब और पश्चिमए रोटी कपड़ा और मकानए दो बदनए क्रांति जैसी कामियाब फिल्में हैं। उन्हें 2015 में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में योगदान के लिए दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।
आज मनोज कुमार भले हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन फिल्म में उनके बोल भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात बताता हूँ हमेशा.हमेशा कानों में गूंजते रहेंगे। मनोज कुमार यानी भारत कुमार देश की आनएबान और शान थेए हैं और रहेंगे। जब भी उनके गीत बजेंगे वो याद आएंगे दिलों में धड़केंगे। तुम्हें कैसे कहें अलविदा भारत कुमार तुम दिल में थेए हो और इस धरती पर हमेशा रहोगे और पीढ़ियां दर पीढ़ियां तुम्हें फक्र से याद करेंगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

Add comment

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें