अनिल जैन
यह दो तस्वीरें इंदौरी मित्र DrAvanish Jain से प्राप्त हुई हैं। दोनों तस्वीरें उस इंदौर शहर की हैं, जहां का मैं मूल निवासी हूँ, जो वास्तविक रूप में न सही मगर आधिकारिक तौर पर स्वच्छता के मामले में देश का नंबर वन शहर कहलाता है।
एक तस्वीर शहर के महापौर के वाहन की है, जिस पर उनके पदनाम के साईनबोर्ड ने वाहन की नंबर प्लेट को ढंक रखा है। चूंकि कथित वीआईपी वाहन है, लिहाजा कुछ नहीं होगा। हालांकि एक ‘महामानव’ ने कुछ समय पहले चीखते-चिंघाड़ते हुए दावा (बकवास) किया था कि उसने देश में वीआईपी कल्चर खत्म कर दिया है।
दूसरी तस्वीर में एक वाहन पर न्यायाधीश के पदनाम का बोर्ड लगा है, हालांकि जिनके नाम पर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन है, वे सज्जन न्यायिक सेवा से रिटायर हो चुके हैं। चूंकि रिटायर होने के बाद भी उन्होंने अपनी गाड़ी पर न्यायाधीश का बोर्ड लगा रखा है, इसलिए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कितने हूनरमंद न्यायाधीश रहे होंगे और किस तरह के फैसले दिए होंगे। और जब वे हूनरमंद रहे होंगे तो जाहिर है कि उनकी कमाई पर पले-बढ़े उनके साहबजादे किस मिजाज के होंगे! जिस समय इस गाड़ी की तस्वीर ली गई उस समय गाड़ी को साहबजादे ही चला रहे थे।
बात सिर्फ इन दो गाड़ियों की ही नहीं, ऐसे किस्से देश की राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के किसी भी छोटे-बड़े शहर में मिल जाएंगे। इन शहरों की सडकों पर ऐसे कई चार पहिया वाहन बेरोकटोक दौड़ते दिख जाएंगे, जिनमें किसी पर राज्यमंत्री का दर्जा और किसी पर विधायक प्रतिनिधि, किसी पर सांसद प्रतिनिधि लिखे बोर्ड लगे होते हैं। किसी पर गोरक्षा वाहिनी, संस्कृति रक्षा समिति और बजरंग दल संयोजक के नामपट्ट भी दिखाई देते हैं।
जहां तक राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त व्यक्ति की बात है, ये खालिस फर्जी होते हैं और असली मंत्री की तरह ही भ्रष्ट, लुच्चे और टुच्चे। इसी तरह सांसद प्रतिनिधि और विधायक प्रतिनिधि भी पूरी तरह फर्जी होते हैं। सवाल है कि जो सांसद और विधायक खुद जनता के प्रतिनिधि होते हैं, उनका कोई निजी सहायक हो, यह तो समझ में आता है लेकिन उनका प्रतिनिधि कोई कैसे हो सकता है?
यह पद कब सृजित हुआ, संविधान के किस अनुच्छेद इस पद का उल्लेख है, कौन इन्हें नियुक्ति करता है, इन्हें कितना वेतन मिलता है और कौन देता है? दरअसल ये प्रतिनिधि सांसद अथवा विधायक के शुद्ध दलाल होते हैं, जो अपने आका के लिए वसूली या उगाही का और अपने आका के पालतू अपराधी तत्वों को पुलिस से छुड़ाने का काम करते हैं।
रही बात गोरक्षा वाहिनी, संस्कृति रक्षा समिति और बजरंग दल की तो इनसे जुड़े गुंडे भी स्थानीय पुलिस-प्रशासन की निगाह में गणमान्य होते हैं, इसलिए इनका कुछ नहीं होता और ये दनदनाते अपने वाहन दौड़ाते रहते हैं। ऐसे लोगों का इलाज सिर्फ जनता ही कर सकती।