अग्नि आलोक
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Opnion हो या Exit हो, Exact नहीं हो सकतें हैं

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शशिकांत गुप्ते

चुनावों की घोषणाओं के साथ ही। सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियां सक्रिय होकर सर्वे करने लगती हैं।मतदाताओं का Opnion अर्थात मतदाताओं की राय जानने का प्रयत्न किया जाता है। चुनाव के दिन मतदान के बाद Exit poll मतलब मतदाता,मतदान कर, मतदान केंद्र से बाहर आतें हैं। उनसे जानने की कोशिश की जाती है कि, किस चुनाव चिन्ह का बटन दबाया?
सारे Poll की पोल खुल जाती है, जब चुनाव के नतीजे आतें हैं। सर्वे का महत्व सिर्फ समाचार माध्यमों में चर्चा तक सीमित होता है।
इनदिनों सर्वे का कोई महत्व नहीं है। यदि सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या ना भी हो तब भी एक ‘राज’ की बात है,जो ‘अ’-नीति में माहिर हैं,और जोड़तोड़ करने में अपनी शान समझने वाले सियासतदान,
विरोधी दल के बदलुओं से गलबहियां करने में संकोच कोई नहीं करतें हैं। यह गलबहियां बाकयदा आपसी गोपनीय समझबूझ से होती है। इस हाथ लें उस हाथ दें।
आज राजनेताओं का एक लक्ष्य हो गया है,एन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना।
दौरान चुनाव के बहुत बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जाती है।
रैलियों को सफल करने के लिए जनता को भीड़ में तब्दील किया जाता है। कारण भीड़ किराए पर इकठ्ठी की जाती है,या शाब्दिक प्रलोभन देकर इकठ्ठी की जाती है।
गांधीजी ने लोकतंत्र में चुनाव को लोक शिक्षण कहा है।
चुनाव के दौरान राजनैतिक दलों को जनता के समक्ष अपनी रीति,नीति और सिद्धांत के आधार पर अपना घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होता है।
पिछले कुछ वर्षों से घोषणा पत्र सिर्फ दिखावे के लिए ही प्रस्तुत किया जाता है।
चुनावी मौसम के अलावा आमदिनों में भी नित नई घोषणाएं की जाती है। राजनैतिक घोषणाएं सिर्फ शब्दिक घोषणा बनकर रह जाती हैं। कारण देश जनता 2014 से अच्छेदिनों की बाट जोह रही है।अब तो जनता यह गुनगुना रही है कि,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
घोषणाओं का क्रियान्वयन होगा अथवा नहीं यह भविष्यवाणी कोई भी तज्ञ ज्योतिषी भी नहीं कर सकता है।
एक व्यंग्यकार का कहना है कि, जिनके नव ग्रह ही बलवान होतें हैं उनके बारे में घोषणा करना सम्भव ही नहीं है।
इसीलिए मुख्य मुद्दा है कि, चुनाव पूर्व या मतदान के बाद के सर्वे का कोई महत्व नहीं है। Opinion हो या Exist हो किसी Poll का Exact ( सटीक) आकलन करना असम्भव है।
एक दूसरें पर वंशवाद का अरोपप्रत्यारोप लगाने वाले सियासतदानों के लिए प्रख्यात शायरा अंबरीन हासीब अंबरजी का यह शेर प्रासंगिक है।
धूप को सायबान कहतें हैं
दर्द को मेहरबान कहतें हैं
एक का गम है दूसरें की खुशी
क्या इसे खानदान कहतें हैं

देश के राजनैतिक दलों की सबसे बड़ी कमजोरी है, विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में,राजनीति करने वालें दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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