अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

2024 के लिएविपक्ष की उम्मीदें अभी भी प्रबल

Share

योगेंद्र यादव

अगले आम चुनाव के नतीजे अभी से तय मत मानिए। विपक्ष के लिए उम्मीदें अभी भी प्रबल हैं, जब तक कि विपक्ष खुद इस मनोवैज्ञानिक युद्ध के सामने आत्मसमर्पण नहीं कर देता और मैच शुरू होने से पहले वॉकओवर नहीं दे देता।

2004 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर, मैंने एक लेख लिखा था, ‘जनमत सर्वेक्षणों के नतीजों का ख्याल छोड़ दीजिए, दौड़ अभी जारी है’ (द हिंदू, 15 मार्च, 2004)। यह बात काबिले गौर थी- “इंडिया शाइनिंग” के जोर-शोर से किये जा रहे प्रचार के बावजूद, चुनावी आंकड़ों पर निष्पक्ष नजर बता रही थी कि भाजपा के लिए हार की संभावना थी।

अभी-अभी तीन विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हैट्रिक को लेकर प्रचार के मद्देनजर इस समय भी कुछ ऐसा ही कहा जाना चाहिए- दरबारी मीडिया की परवाह मत करो, दौड़ अभी भी जारी है, नतीजे अभी भी तय नहीं हैं।

मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं क्या नहीं कहना चाह रहा हूं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नतीजे कांग्रेस और उन सभी लोगों के लिए एक झटके की तरह हैं, जो 2024 में लोकतंत्र की बहाली देखना चाहते हैं। तेलंगाना में कांग्रेस की ऐतिहासिक वापसी की खबरें तीन उत्तर भारतीय राज्यों में भाजपा की जीत की खबरों के नीचे कहीं दब सी गयी है।

ऐसा माहौल राष्ट्रीय चुनावों से पहले भाजपा के लिए अनुकूल परिदृश्य तैयार करता है। लेकिन इससे वास्तविक आंकड़ों पर कोई असर नहीं पड़ता। इन चार राज्यों के नतीजों से चुनावी गणित नहीं बदल जाएगा। ये आंकड़े इन नतीजों से पहले भी वही बात कह रहे थे, और नतीजों के बाद भी वही बात पुख्ता होती है। मैं यह बिल्कुल नहीं देख पा रहा हूं कि विपक्ष के लिए ये उलटफेर 2024 की प्रतियोगिता को कैसे समाप्त कर देगा।

आइए वोटों की गिनती से शुरुआत करें। इससे पहले कि हम यह निष्कर्ष निकालें कि इन चार राज्यों में भाजपा की 3-1 की जीत मतदाताओं द्वारा शासन का जोरदार समर्थन है, आइए इन राज्यों के लिए दोनों प्रमुख पार्टियों के वोटों को जोड़ लें। डाले गए 12.29 करोड़ वोटों में से, भाजपा को 4.82 करोड़ वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 4.92 करोड़ मिले। अगर ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी दलों के वोट जोड़ लें तो विपक्ष को 5.06 करोड़ वोट पड़े।

यदि आप मध्य प्रदेश को छोड़कर देखें तो लोकप्रिय वोटों के लिहाज से बीजेपी की जीत का अंतर बहुत कम है। तेलंगाना में भाजपा पर कांग्रेस की बढ़त इतनी ज्यादा है कि वह बाकी राज्यों में अपनी कमी की भरपाई कर सकती है। इसका मतलब है कि भाजपा को चुनावों के अंतिम चरण में भाजपा को बड़े पैमाने पर लोकप्रिय समर्थन नहीं मिला है।

चलिए हम इन वोटों को संसदीय सीटों में परिवर्तित करके देखते हैं। नतीजे आश्चर्यजनक हैं। इन चारों राज्यों में लोकसभा की कुल 83 सीटें हैं, जिनमें से पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 65 और कांग्रेस को सिर्फ 6 सीटें मिली थीं। मान लीजिए कि इन राज्यों के नागरिक अगले साल भी बिल्कुल उसी तरह से वोट देंगे जैसे उन्होंने हाल के विधानसभा चुनावों में दिया है, तो भी शुद्ध लाभ कांग्रेस को होगा, भाजपा को नहीं।

इस हैट्रिक के बाद भी, भाजपा का प्रदर्शन 2019 में पुलवामा वाली घटना के बाद उसको मिले समर्थन से काफी नीचे है। यदि हम प्रत्येक संसदीय सीट के लिए विधानसभा-वार वोट जोड़ते हैं, तो मध्य प्रदेश में भाजपा को 24 और कांग्रेस को 5 सीटें मिलेंगी, जबकि 2019 में भाजपा को 28 और कांग्रेस को मात्र 1 सीट मिली थी।

इसी तरह छत्तीसगढ़ में भाजपा को 8 और कांग्रेस को 3 (2019 में सीटें 9 और 2 थीं), राजस्थान में भाजपा को 14 और कांग्रेस को 11 (2019 में सीटें 24 और 0 थीं) और तेलंगाना में भाजपा को 0 और कांग्रेस को 9 मिलेंगी (2019 में सीटें 4 और 3 थीं)।

कुल मिलाकर, इसका मतलब होगा भाजपा को 46 सीटें (यानि 19 सीटों का नुकसान) और कांग्रेस को 28 सीटें मिलेंगी (यानि 22 सीटों का फायदा)। यदि हम ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगी दलों के वोटों को भी मिला दें तो इन राज्यों में भाजपा को मात्र 38 सीटें मिलेंगी, जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन को 36 सीटें मिलेंगी।

मैं यह नहीं कह रहा कि यही संभावित परिणाम है। लेकिन यह काल्पनिक गणना इस विचार को खारिज कर देती है कि भाजपा ने अपनी जीत पक्की कर ली है।

आइए अब इस स्पष्ट तर्क पर विचार करें कि लोकसभा के नतीजे विधानसभा के नतीजों की नकल नहीं हुआ करते। यह सच है। हमने 2019 में भाजपा के पक्ष में और 2004 में कांग्रेस के पक्ष में उलटफेर देखा है। लेकिन यह तर्क सत्ता और विपक्ष दोनों पर लागू होता है। अगर भाजपा अगले कुछ महीनों में अपनी स्थिति में सुधार कर सकती है, तो कांग्रेस भी ऐसा कर सकती है।

आप चुन सकते हैं कि इनमें से कौन सा परिदृश्य अधिक संभावित है, लेकिन हाल के चुनावों के नतीजे इनमें से किसी भी संभावना के द्वार को बंद करने का कोई आधार नहीं हैं। यह विचार कि भाजपा राष्ट्रीय चुनावों से पहले अपने वोटों में सुधार कर ही लेगी, 2019 के नतीजों के साथ तुलना पर आधारित है। लेकिन यह तुलना गलत होगी, क्योंकि उस समय विधानसभाओं और लोकसभा के चुनावों के बीच बालाकोट की घटना ने हस्तक्षेप किया था।

आइए एक पल के लिए मान लें कि भाजपा अगले कुछ महीनों में और बेहतर प्रदर्शन करेगी और लोकसभा चुनावों में भी इन तीन हिंदी राज्यों में पिछली बार की तरह ही जीत हासिल करेगी। आगे हम यह भी मान लेते हैं कि गुजरात, दिल्ली और हरियाणा जैसे राज्यों में भी ऐसा ही हो सकता है।

लेकिन क्या इतने मात्र से राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता का निपटारा हो जाता है? बिल्कुल नहीं, क्योंकि भाजपा पहले ही इन राज्यों में संतृप्ति स्तर तक पहुंच चुकी है। इन राज्यों में एकतरफा जीत भाजपा के लिए जरूरी है लेकिन पर्याप्त नहीं। 2024 के लिए विपक्ष का गेम प्लान इन राज्यों पर निर्भर नहीं है।

आइए बड़ी तस्वीर पर नजर डालें। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं, जो बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 30 सीटें ऊपर हैं। बंगाल में एक समय अभूतपूर्व प्रदर्शन करने के बाद से भाजपा लगातार कमजोर पड़ती जा रही है, कर्नाटक में भाजपा-जेडीएस गठबंधन के विधानसभा चुनाव परिणामों के अनुसार कांग्रेस को 10 सीटें मिलेंगी, महाराष्ट्र में, जहां उसका सामना ‘महा विकास अघाड़ी’ से है, वहां उसे अभूतपूर्व रूप से गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।

बिहार में उसे एक नये महागठबंधन के खिलाफ लड़ना है, और उत्तर प्रदेश में तो, यहां तक ​​कि 2022 के विधानसभा परिणामों की पुनरावृत्ति का मतलब भी भाजपा को 10 सीटों का नुकसान होगा। इसमें हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना और असम में लगभग निश्चित लेकिन मामूली नुकसान को और जोड़ लें। भाजपा के लिए इन नुकसानों की कोई भी संख्या रखें, लेकिन यह निश्चित रूप से 30 सीटों से अधिक होगी।

कठिन सवाल यह है: भाजपा 2019 में अपनी संख्या में कहां से इजाफा कर सकती है और इन नुकसानों की कैसे भरपाई कर सकती है?

मैं ऐसा विल्कुल नहीं कह रहा हूं कि भाजपा के पास अपने नुकसान को रोकने या उसकी भरपाई करने का कोई रास्ता नहीं है। मैं बस दीवार पर लिखी इबारत की ओर इशारा कर रहा हूं, जो चुनावी आंकड़ों में साफ-साफ लिखी दिख रही है।

मतलब साफ है- आज की स्थिति में 2024 में भाजपा की जीत सुनिश्चित नहीं है। फिलहाल तो बिल्कुल नहीं, जब तक कि विपक्ष खुद इस मनोवैज्ञानिक युद्ध के सामने आत्मसमर्पण नहीं कर देता और मैच शुरू होने से पहले उसे वॉकओवर नहीं दे देता।

(योगेंद्र यादव का लेख, इंडियन एक्सप्रेस से साभार;

Ramswaroop Mantri

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें