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राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में संविदा नियुक्ति घोटाला की चौथी जांच के आदेश

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  • गौरव चौहान

मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम) में संविदा नियुक्ति घोटाला ऐसा मर्ज हो गया है जिसका इलाज सरकार को नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, सरकार ने इस घोटाले की तीन जांच कराई है, लेकिन अभी तक किसी भी अधिकारी पर इसकी आंच नहीं आई है। अब पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल ने चौथी बार जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। इस बार, पंचायत राज के आयुक्त मनोज पुष्प और मप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद के सीईओ एस. कृष्ण चैतन्य को जांच अधिकारी बनाया गया है। एमपी-एसआरएलएम भोपाल में तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने वर्ष 2015 में भर्ती की थी। इसी में से राज्य स्तरीय नियुक्तियों को लेकर शिकायतें हुई थीं, कि ये कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर संविदा नियमों के विपरीत की गई हैं। पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल का कहना है कि, जिन अधिकारियों पर दाग लगे हैं, उनको भी तो अपने बचाव का मौका दिया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में 9 साल पहले संविदा नियुक्ति में फर्जीवाड़ा हुआ था। पहले तीन आईएएस अफसर जांच कर चुके हैं, अब उसी मामले की चौथी जांच शुरू हुई है। इसकी पहली जांच मप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद की तत्कालीन सीईओ आईएएस नेहा मारव्या ने की थी। उसके बाद इसी जांच की पुष्टि तत्कालीन प्रमुख सचिव पंचायत उमाकांत उमराव और फिर वर्तमान अपर मुख्य सचिव मलय श्रीवास्तव ने भी कर दी। इनमें माना कि संबंधित अधिकारियों को सुनवाई का पूरा समय दिया और जांच प्रतिवेदन सही है। तीनों जांच के बाद अब विभागीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने यह लिखते हुए चौथी जांच के आदेश दिए हैं कि उनको (फर्जीवाड़े के आरोपी अफसर) भी सुना जाना चाहिए, क्योंकि यही नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत से महत्वपूर्ण है। खास बात यह है कि पहली जांच के बाद ठीक ऐसी ही लाइनें पूर्व पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने भी फर्जी नियुक्ति देने व पाने वालों के लिए लिखी थी, जिसके बाद जांच के घेरे में आ रहे अफसरों ने भी अपना पक्ष रखा था।
तीनों जांच में नियुक्ति पर सवाल
मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में संविदा नियुक्ति घोटाले की पहली जांच मप्र राज्य रोजगार गारंटी की तत्कालीन सीईओ नेहा मारव्या ने की थी।  नेहा मारव्या ने 8 जून 2022 को जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने लिखा है कि राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन भोपाल द्वारा संविदा नीति का पालन नहीं किया गया। तत्कालीन एसआरएलएम सीईओ ललित मोहन बेलवाल और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी विकास अवस्थी ने कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर सुषमा रानी शुक्ला को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायत राज (एनआईआरडी) हैदराबाद भेजा था। एसआरएलएम की कर्मचारी होने के बाद भी उन्हें एनआईआरडी हैदराबाद में काम करने की अनुमति दी गई। इसी प्रकार राज्य परियोजना प्रबंधक के पद पर नियुक्ति के लिए एनआईआरडी से चोरी किए गए लैटरहेड पर वहां के डायरेक्टर के फर्जी हस्ताक्षर करके नौकरी हासिल की गई। इस मामले में अनुभव प्रमाण पत्र और शैक्षणिक दस्तावेज भी गलत लगाए गए। दूसरी बार जांच पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव द्वारा की गई। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जांच अधिकारी ने ललित मोहन बेलवाल को उनका पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया, लेकिन वे नहीं आए। रिपोर्ट से साफ लगता है कि गड़बड़ी की जानकारी उन्हें थी। इसके बाद मामला विभागीय मंत्री को और फिर मुख्यमंत्री समन्वय में चला गया। तीसरी जांच में विभाग के वर्तमान अपर मुख्य सचिव मलय श्रीवास्तव ने नवंबर 2023 को अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री समन्वय और मुख्य सचिव से चर्चा के बाद पुन: विभाग को वापिस की गई है। जांचकर्ता अधिकारी के जांच प्रतिवेदन में प्रस्तुत तथ्य व दस्तावेजों से प्रतीत होता है कि नियुक्ति संबंधी जांच प्रतिवेदन सही है। इसके बाद यह फाइल विभागीय मंत्री को भेज दी गई। आयुक्त पंचायती राज मनोज पुष्प का कहना है कि अभी उस मामले की जांच की जा रही है और इसे पूरा होने में समय लगेगा। जांच के बारे में फिलहाल कुछ और बताना संभव नहीं है।
 जांच में खुल गईं घोटाले की परतें तो रिपोर्ट दबा दी
जब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में बड़े स्तर पर नियुक्तियों की चर्चा हुई, तब शिकायतें शासन स्तर पर उछलीं, जिसकी जांच तत्कालीन ओएसडी और आईएएस नेहा मारव्या द्वारा की गई। 8 जून 2022 को मारव्या ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा कि ललित मोहन बेलवाल की गड़बड़ी की जानकारी के बाद भी तत्कालीन एसीएस इकबाल सिंह बैस और अन्य ने कार्रवाई नहीं की और मामला न उछले, इसके लिए ललित मोहन बेलवाल को परियोजना प्रबंधक के पद से इस्तीफा लेकर हटा दिया। जिलों में कर्मचारियों की मनमानी नियुक्तियों के फर्जीवाड़े की जांच में बेलवाल के साथ ही ततकालीन मुख्य सचिव बैस, एसीएस अशोक शाह और मनोज श्रीवास्तव भी साजिश के लिए जिम्मेदार पाए गए हैं। जब यह जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी गई तो वहां बैस ने होने पद और पावर के सहारे कार्रवाई नहीं होने दी। वहीं लोकायुक्त और आर्थिक अपराध ब्यूरो में की गई शिकायतों को भी दबा दिया गया।

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