अग्नि आलोक
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ऐसा तो नहीं था अपना इंदौर……

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छप्पन दुकान, मेघदूत चौपाटी में अर्धनग्न युवती को देख शर्मसार हुए लोग, लेकिन सब चुप रहे

…उसे देखा सबने, रोका किसी ने नहीं। उसे निहारा सबने, टोका किसी ने नहीं। उसे घूरा सबने, घुड़की किसी ने नहीं दी। उसका ‘एक्स-रे’ हर किसी ने किया, ‘रिपोर्ट’ किसी ने पेश नहीं की। अब सब दुःखी हैं। सबके सब शर्मसार हैं। अब सब बोल रहे हैं, गुस्सा दिखा रहे हैं। संस्कृति को खतरे में बता रहे हैं, लेकिन मौके पर उसे डपटा किसी ने नहीं। किसी ने अपनी शर्ट-टीशर्ट उतारकर नहीं पहनाई। वे भी घंटों बाद चुप हैं, जिन्होंने अपनी राजनीति ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के नारे के साथ चमकाई और वे भी मौन हैं, जिन्हें तुरंत मुखर होना था। बस, एक युवा ने हिम्मत दिखाई और शिकायत की। बाकी सब उसी सोशल मीडिया पर शाब्दिक जुगाली कर रहे हैं, जिस पर आने-छाने और पहचाने जाने के लिए उसने ये सब ‘कु-कृत्य’ जानबूझकर कर किया। उसका तो काम हो गया। किसी का कुछ नहीं गया, बस उस देवी का सिर शर्म से झुक गया, जो राजवाड़ा के आंगन में सिर को पल्लू से ढंके बरस-ओ-बरस से बैठी हैं। ऐसी तो नहीं थी या है आपकी अपनी देवी अहिल्या की नगरी?

नंगई पर उतरी युवती को कोई पकड़कर नहीं ले गया थाने न किसी ने किया विरोध, न डपटकर पहनाए कपड़े

सिर्फ एक युवक ने की पुलिस कमिश्नर को लिखित शिकायत, बाकी सब बस बयानबाजी तक सीमित

पुलिस का भी रटा-रटाया जवाब… कैसे करें कार्रवाई, किसी ने कोई शिकायत ही नहीं की…

क्या कर रहे हैं शहर की महिला नेत्रियां और नेता?

शहर में दो महिला विधायक, एक महिला राज्यसभा सांसद, पांच पच्चीस महिला पार्षद व राजनीतिक दलों की सैकड़ों की संख्या वाली महिला विंग है, लेकिन आपने कभी इन्हें शहर में तेजी से पसरते जा रहे सांस्कृतिक प्रदूषण पर आंदोलित होते देखा? आंदोलन तो दूर मुखर होते देखा। जाम गेट की वीभत्स घटना और मेडिकेप्स कॉलेज में बहन-भाई की निर्मम पिटाई पर भी जिनका मुंह नहीं खुला, वे अब गरवे के नियम-वरवदों के साथ मुखर हो रही हैं, जबकि उपरोक्त दोनों घटनाएं उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र से जुड़ी हुई थी, लेकिन तब से अब तक गहरी चुप्पी थी। बहन की लाज बचाने गए भाई और उसके दोस्त अस्पताल में अब तक उपचाररत हैं, लेकिन लक्की वर्मा नामक आरोपी का क्या हुआ? आज तक खुलासा नहीं हो सका। कोई महिला या पुरुष नेता नहीं बोला। तो फिर सारी चिंताएं गरचे को लेकर ही क्यों? इससे आपकी राजनीति चमकती है और मापके दल की राजनीति चलती है, सिर्फ इसलिए नवरात्रि के पहले वे सालाना रस्म अदायगी हो रही है? बात-बात में जिस देवी का नाम लेकर राजनीति करने वालों को, आज नहीं तो कल उसी देवी को जवाब देना ही है, जो राजवाड़ा के आंगन में आज भी सिर पर पल्लू रखकर विराजमान है। जनता का क्या? उसे तो आप सब घोलकर पी गए हैं? हैन…?

त है उस अधनंगी युवती की जिसने शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके में अपने आपको उघाड़ दिया। वह अंतःवस्त्र के साथ उस छप्पन दुकान इलाके में रैम्प वॉक करती रही, जिसे दिखाने हम देश-दुनिया से आए मेहमानों को लेकर जाते हैं कि आओ, देखो हमारे शहर की ये मशहूर खान-पान की स्ट्रीट। युवती ने अपने ऊपरी बदन पर सिर्फ बिकनी ही पहनी हुई थी

नीचे शॉर्ट स्कर्ट। चेहरे पर कोई शर्मिंदगी नहीं थी। उलटे उसके साथी उसका वीडियो यानी रील बना रहे थे। जो देख रहे थे. वे बचकर निकलने लगे। कुछ मुंह फेर रहे थे, कुछ भौचक-से थे। पर रोक-टोक, धौंस-दपट किसी ने नहीं को। न फूड स्ट्रीट के जिम्मेदारों ने कोई जहमत उठाई, न किसी इंदौरी ने उसका सामना किया। बस, निहार लिया और टूट पड़े सोशल मीडिया पर कि हर हाल में कार्रवाई हो। यानी भगतसिंह तो पैदा हो, लेकिन वो बगल के परिवार से हो, हमारे घर में नहीं।

फांसी की बात आए तो हम सुरक्षित रहें और कल फिर कैंडल मार्च निकालकर अपने देशभक्त, संस्कृति रक्षक होने का शोर मचा सके। तमाशा खड़ा कर सकें। क्या इतनी भीड़ में से किसी का आक्रोश नहीं फूटा ? ये ही काम उस युवती ने विजय नगर इलाके की मशहूर मेघदूत चौपाटी पर भी किया। लेकिन जो हाल ‘छप्पन’ के थे, वे ही सूरत-ए-हाल मेघदूत पर भी नजर आए। उलटे वीडियो बना लिए गए।

पुलिस का इस वारे में रटा-स्टाया जवाब कि शिकायत ही नहीं तो कैसे करें कार्रवाई? ये सच भी है। घंटों बीतने के बाद भी उस दल से कोई सक्रिय नहीं हुआ, जिसके हाथ में शहर की 30 बरस से भी ज्यादा समय से बागडोर है और जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के वैचारिक अनुष्ठान पर खड़ा हुआ है। न नेता, न नेत्रियों ने मुंह खोला। न उन्होंने, जिनके जिम्मे संस्कृति बचाने की जवाबदेही है। सिर्फ एक युवा पंडित राजपाल जोशी थे। वे घटनास्थल से सात-आठ किमी दूर टूट पड़े। कुछ गंभीर, कुछ कटाक्ष के साथ सामने आए। थाने तक कोई नहीं पहुंचा। भगवा वाहिनी की झंडाबरदार नेत्रियां भी जुबानी जमा खर्च से आगे नहीं बढ़ीं और अपने कर्तव्य को इतिश्री कर ली। हो सकता है अब गैरत जागे और मैदान में आएं, लेकिन उससे क्या होना जाना? जिम्मेदारी का पालन किसी मामले में अखबार या सोशल मीडिया पर छा जाने के बाद किया जाता है? मीडिया के अटेंशन के बाद होता है? फिर जरूरत क्या ऐसी महिला विंग’ की, जो तुरंत सक्रिय न हो? सप्ताहभर बाद होने वाले गरबे की चिंता है कि इसमें कौन आएगा, कौन नहीं, लेकिन जो घटा उसकी फिक्र बस शाब्दिक बयानबाजी से बढ़कर कुछ नहीं। क्या संस्कृति सिर्फ गरबा स्थल पर बचाना है, शहर की नहीं? अगर शहर की बचाना है, तो ये इंदौर में नंगापन इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है? ये तो आपके रूटीन के काम-व्यवहार में शामिल होना चाहिए न कि देवी अहिल्या की नगरी में सांस्कृतिक प्रदूषण रत्तीभर भी न फैले?

रहते हैं, लेकिन इस नंगेपन से इतने आहत हुए कि रात को ही पुलिस कमिश्नर को शिकायत की। कि कार्रवाई करें, गिरफ्तार करें। सोशल मीडिया अकाउंट को सस्पेंड करें, पोस्ट हटाई जाए और ऐसी अश्लीलता की पुनरावृत्ति न हो। जोशी की पृष्ठभूमि भगवा वाहिनी की है। लिहाजा उन्होंने कार्रवाई न होने पर चरणबद्ध आंदोलन की चेतावनी भी दी। 

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