- 64 किलोमीटर के पूरे क्षेत्र में हो गया सर्वे, जिन किसानों की जा रही है पूरी जमीन वह हैं विरोध में

इंदौर। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण द्वारा आउटर रिंग रोड के सर्वे के दौरान एक बार फिर किसानों की ओर से विरोध के स्वर उठे हैं। जिन किसानों की पूरी जमीन इस रिंग रोड में जा रही है वह विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही 64 किलोमीटर लंबी इस रिंग रोड का सर्वे पूरा हो गया है।
आउटर रिंग रोड के लिए जब नेशनल हाईवे द्वारा सर्वे शुरू किया गया था तो उस समय किसानों द्वारा जोरदार विरोध किया गया था। यह विरोध इतना ज्यादा था कि नेशनल हाईवे एक भी गांव में सर्वे का काम नहीं कर सका था। विरोध करने वाले किसान भारतीय किसान संघ के बैनर तले एक हो गए थे। इस विरोध को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा सर्वे रोक दिया गया था। फिर कलेक्टर आशीष सिंह द्वारा किसान संघ के पदाधिकारी और किसानों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर यह सहमति बनाई गई थी कि पुरानी गाइड लाइन के हिसाब से दोगुना राशि का मुआवजा दिया जाएगा। बाद में किसान आर्बिट्रेशन में केस लगाएंगे तो जिला प्रशासन और नेशनल हाईवे की मदद से उन्हें वर्तमान गाइड लाइन के मान से मुआवजा कर दिया जाएगा।
इस सहमति के बाद प्रशासन ने संकेत दिया और फिर राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण द्वारा नए सिरे से सर्वे शुरू किया गया। जब यह सर्वे शुरू हुआ तो पहले दिन फिर भी थोड़ा बहुत विरोध हुआ, लेकिन भारतीय किसान संघ के सक्रिय हो जाने और प्रशासन द्वारा बेहतर संवाद स्थापित किए जाने के कारण यह विरोध समाप्त हो गया। इसके बाद नेशनल हाईवे की टीम द्वारा एसडीएम, तहसीलदार, पटवारी की मदद से तेज गति के साथ सर्वे करने का काम किया गया। यह आउटर रिंग रोड 64 किलोमीटर लंबी है। यह सडक़ एनएच-52 में नेटरेक्स के समीप से शुरू होकर शिप्रा नदी के निकट आकर मिलेगी। इसमें देपालपुर के 5, हातोद के 12 और सांवेर के 9 गांवों की जमीन शामिल है। इस पूरी सडक़ के क्षेत्र के गांवों में सर्वे पूरा हो गया है।
सर्वे के समापन की बेला में एक बार फिर विरोध के स्वर उठे हैं। जिन किसानों की पूरी जमीन इस सडक़ में जा रही है उन लोगों ने सडक़ की इस योजना का विरोध करने का फैसला लिया है। इस सडक़ के लिए ग्राम बरलाई जागीर और पीरकराडिय़ा में नपती के दौरान दस वेयर हाउस मिले। तीन वेयर हाउस पूरे तो सात का थोड़ा हिस्सा सडक़ में आ रहा है। सर्वे के दौरान करीब एक दर्जन ऐसे किसान सामने आए हैं, जिनकी पूरी जमीन जा रही है। उनका कहना था कि यदि जमीन ही चली जाएगी तो हम परिवार का पालन-पोषण कैसे करेंगे। किसी ने कहा कि यह जमीन उनके पुरखों की निशानी है। कई लोगों के मकान भी सडक़ में आ रहे हैं। उनका कहना था कि हम बेघर हो जाएंगे। विरोध के इन स्वर को सर्वेक्षण के दौरान तो बंद करवा दिया गया, लेकिन आगे यह सब स्वर फिर से उठने की संभावना नजर आ रही है।
Add comment