(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
पंडित नरोत्तम मिश्र एमपी वालों को एक सजातीय प्रशंसक का प्रणाम पहुंचे। सुना है जी कि आप दु:खी हैं। जो खबरें फैल रही हैं, उनमें अगर जरा सा भी सच है तो, सचमुच आप के साथ बड़ा अन्याय हुआ है। और अन्याय भी किसी ऐसे-वैसे ने नहीं, स्वयं आपके भगवान ने किया है। आपका दु:खी होना तो बनता है। फिर हम ब्रम्हात्मज तो वैसे भी अधिक संवेदनशील होते हैं। तभी तो हमारी भावनाएं इशारे भर से आहत होने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। और आप की भावनाएं तो प्रैक्टिस करते-करते ऐसी सुपर संवेदनशील हो गयी हैं कि अब इशारे तक की मोहताज नहीं रह गयी हैं। मोदी जी के दिए आत्मनिर्भरता के मंत्र का असर जो ठहरा। ‘‘पठान’’ का मामला आहत भावनाओं की आत्मनिर्भरता का डिमान्स्ट्रेशन ही तो था। वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था, वो बात हमारी भावनाओं को बहुत नागवार गुजरी थी! आहत भावनाओं का रिकार्ड रफ्तार से विकास!!
फिर भी सुनते हैं कि पुरस्कार की जगह आपको फटकार सुननी पड़ी। वह भी स्वयं अपने भगवान से। वह भी भरी सभा में, देश भर से जुटे भगवावीरों के सामने। सीएम की कुर्सी के सपने के पूरे होने का कोई संकेत मिलना तो दूर, उल्टे मुंह बंद रखने का फरमान मिल गया। फिल्मों के मामले में मुंह बंद ही रखिए। सिर्फ फिल्मों के मामले में ही नहीं, मुसलमानों के मामले में भी मुंह बंद रखिए! बस मुंह बंद रखिए। जीभ न चलाए तो विप्र क्या हाथ-पांव चलाए, मेहनत-मजदूरी का काम करे! इससे बड़ा अन्याय आपके साथ क्या हो सकता है?
हम निस्संकोच यह कहेंगे कि आप के साथ अन्याय हुआ है। ऐसा अन्याय भगवान किसी राजनीतिक दुश्मन के साथ भी नहीं कराएं। पर आप या कोई भी कर भी क्या सकता है, जब आपके भगवान ही आप से नाराज हैं। पर कोई बात नहीं। सब दिनों के फेर हैं। जैसे अच्छे दिन अब नहीं रहे, वैसे ही ये बुरे दिन भी कल नहीं रहेंगे। आपके भगवान, आप पर फिर प्रसन्न होंगे। जो आज जुबानबंदी का लगाए हैं, कल सीएम की कुर्सी के लिए सेहराबंदी भी करा सकते हैं। बस अपनी भक्ति और सेवा भाव में कमी मत आने दीजिएगा। और भगवान से नाराज होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। भक्त भी कहीं भगवान से नाराज होता हैं! और नाराज होगा भी तो कोई कच्चा भक्त होगा, जो अपने भगवान की मजबूरियों को नहीं समझता हो।
यह मजाक नहीं है, भगवान की भी मजबूरियां होती हैं। देह धरे के धर्म की बात है। हर अवतार को खेल-खेल में झूठे बंधनों में बंधना पड़ा। जय श्रीराम वाले श्रीराम को भी। फिर ग्यारहवें अवतार को ही मजबूरियों से कैसे छूट मिल जाएगी। और आप तो टॉप के समझदार हैं। आप से बेहतर कौन जानता है, आप के भगवान की मजबूरियों को। इस पूरे साल चुनाव ही चुनाव हैं। फिर अगले साल और बड़ा वाला चुनाव है। फिल्म वाले शोर मचा रहे हैं। बीबीसी वाले फिर से गुजरात के 2002 के मामले उठा रहे हैं। नौजवान, नौकरियों का शोर मचा रहे हैं। और तो और जाग्रत हिंदू भी महंगाई-महंगाई चिल्ला रहे हैं। किसी न किसी अपने को तो फटकार कर चुप कराना ही था, जिससे भक्त यह कह सकें कि उनके भगवान, सिर्फ उनकी ही नहीं, दूसरों की भी सुनते हैं। वर्ना भक्त न हों पर पब्लिक तो भगवान से भी नाराज हो ही सकती है। फिर चुनाव में जाने क्या हो?
पर हां! आप मीडिया वालों के इस झूठे प्रचार में मत आना जी कि अपने भगवान के मुंह बंद करने के आदेश से, अब आप भी बेरोजगार हो गए हैं। फिल्मों-सीरियलों से आहत भावनाओं पर नहीं बोल सकते। मुसलमानों के होने से आहत संस्कृति-धर्म के लिए मुंह नहीं खोल सकते। तो फिर आप करेंगे ही क्या? आपको तो बिल्कुल बेरोजगार ही कर दिया। प्रदेश के गृहमंत्री वाला काम भी कोई रोजगार है लल्लू! सावधान, यह मीडिया का झूठा प्रचार है। बल्कि इसके पीछे षडयंत्र है, षडयंत्र, वह भी इंटरनेशनल। नहीं हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप गृहमंत्री वाले काम को ही रोजगार मान कर, उसी में ध्यान लगाएं। वह बात बिल्कुल नहीं है। हमारे भगवान की यह इच्छा हर्गिज नहीं है। थोड़ा गहराई में जाएंगे, तो आप खुद समझ जाएंगे कि आदेश— मुंह ही बंद रखने का है। जी हां! आप को सिर्फ मुंह बंद रखना है। बस अपने मुंह से बोलना मना है, बाकी करते रहिए, जो करना है। थिएटर जलवाना है, थिएटर जलवाइए। बुलडोजर चलवाना है, छांट-छांटकर घरों पर बुलडोजर चलवाइए। मॉब लिंचिंग करानी है, मॉब लिंचिंग कराइए। मदरसे बंद कराने हैं, बंद कराइए। हिजाब पहनने वाली लड़कियों को शिक्षा संस्थाओं से बाहर करना है, बाहर कराइए। प्रेमी जोड़ों पर लाठी चलानी है, लाठी चलाइए। चाहे राज्य सचिवालय में शाखा लगवाइए। बस मुंह से मत कहिए!
बात समझिए। 2002 में गुजरात में हमारे भाइयों ने जो किया सो किया, किसी ने रोका? अटलजी तक विचलित हो गए, पर किसी ने रोका? बीबीसी वाले बीस साल बाद भी इसी की तस्दीक कर रहे हैं कि किसी ने नहीं रोका! और तो और, बीस साल बाद बिलकीस बानो के बलात्कारियों और उसके परिवार के हत्यारों की सजा माफी को भी, किसी ने नहीं रोका। यूपी के योगी राज से लेकर असम के सरमा राज तक, बुलडोजर राज कायम हो गया, पर किसी ने नहीं रोका। फिर भी, मोदी जी ने एक बार भी अपने मुंह से वैसा कहा क्या, जैसा हुआ? समझदार के लिए इशारा काफी है। दिक्कत करने से नहीं, दिक्कत बोलने से है। फोन-फोन में कैमरा है, हाथ-हाथ में इंटरनेट है। देश के अडानी-अंबानी साथ रहें तो, कर के तो कुछ भी छुपा सकते हैं, 2002 के गुजरात से लेकर 2020 का दिल्ली का नरसंहार तक। बस बोले हुए को छुपाना, अब मुश्किल है! सो बस करना है, बोलना नहीं है।
सो पंडितजी अपने भगवान की असली इच्छा समझिए। और सभी नये-पुराने भक्तों को समझाइए। भगवान ने बोलने से मना किया है, करने से नहीं। सो बस बोलिए मत, करिए। बोलने के बदले में भी करिए। भगवान का इशारा समझिए, अपने मुंह से बोलते मत पकड़े जाइए; फिर तो पहले से भी जोर-शोर से करिए। लगे रहो, नरोत्तम भाई।
*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*