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*पेपर लीक की गारंटी*

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*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

भई, अपने योगी जी के साथ ये तो बड़ी नाइंसाफी है। बताइए, कहां तो भगवाइयों की गारंटियों का इतना शोर है। मोदी जी तो आए दिन गारंटियों पर गारंटियां देते जा रहे हैं। कभी मुफ्त राशन की गारंटी, कभी नल के पानी की गारंटी, कभी सिर पर पक्की छत की गारंटी, तो कभी बैंक खाते की गारंटी, कभी सोलर बिजली की गारंटी, तो कभी विदेश में कॉलर खड़ा करवाने वगैरह की गारंटी। कांग्रेस-मुक्त, भ्रष्टाचार-मुक्त, धर्मनिरपेक्षता-मुक्त, विकसित आदि, आदि भारत की गारंटियां ऊपर से। सब के ऊपर से गारंटी पूरी होने की भी गारंटी। यानी गारंटियां ही गारंटियां, चुन तो लें। फिर भी बेचारे योगी जी ने जरा सी पेपर लीक की गारंटी क्या कर दी, उसी पर हल्ला मच गया कि क्या करते हो, कैसे करते हो? पहले पुलिस भर्ती का पेपर लीक हुआ, तो पब्लिक ने सोचा डिजिटल के जमाने में, पेपर लीक तो होता ही रहता है। हो गया होगा अपने आप, पेपर लीक। फिर आरओ-एआरओ का पेपर लीक हुआ, तो लोगों को खुटका हुआ कि यह सब कहीं स्पेशल पेपर लीक का मामला तो नहीं है। फिर एक के बाद एक, बोर्ड के भी पेपर लीक होने लगे, तब लोगों को विश्वास हुआ कि यह तो गारंटी का मामला है। पेपर लीक की गारंटी। और भाई जब गारंटी दी है, तो अब तो उसके पूरे होने की भी गारंटी देनी ही पड़ेगी।

पर योगी जी की गारंटी ठीक से चलन में आयी थी नहीं थी कि हल्ला मच गया कि ये गारंटी नहीं दे सकते। लेकिन, क्यों भाई क्यों? माना कि सुप्रीम लीडर तो एक मोदी जी ही हैं। गारंटियां देना उनके ही विशेषाधिकार का मामला है। वैसे करने को तो कांग्रेसी, बाकी हर चीज की तरह गारंटी पर भी दावा करते हैं कि गारंटियों का चलन भी पहले उन्होंने ही शुरू किया था। कभी दावा करते हैं, कर्नाटक के चुनाव से, तो कभी दावा करते हैं कि 2019 के चुनाव से उन्होंने गारंटी देना शुरू किया था। बाद में भाजपायी उनका गारंटी का आइडिया ले उड़े, उन्हें कोई क्रेडिट दिए बिना। उल्टे अब कांग्रेस वाले एपरेंटिसी की गारंटी दे रहे हैं, तो भाजपायी कहते हैं कि उनकी नकल कर रहे हैं! खैर, गारंटी पर बाकी सब झगड़े झूठे हैं, मोदी जी का दावा सच्चा है। और जब से मोदी जी ने गारंटी की भी गारंटी देनी शुरू की है, उसके बाद तो गारंटी पर उनका पेटेंट वाला ठप्पा ही लग गया है। सो गारंटी वही, जो मोदी जी दिलाएं। पर इस सब के बीच, क्या योगी जी एक गारंटी भी नहीं दे सकते हैं? आखिर, डबल इंजन के एक इंजन की ड्राइवरी का जिम्मा तो योगी जी को भी दिया ही गया है। अगर दूसरा इंजन, पीछे-पीछे घिसट भी रहा हो, तब भी इंजन में ड्राइवर की सीट तो होती ही है। एकाध गारंटी तो योगी जी की भी बनती ही है।

नासमझ हैं जो गारंटी वाले लीक को पहले के मामूली लीकों से मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों में क्या मेल? पहले संयोग होता था, अब प्रयोग है। और इस प्रयोग के बड़े उपयोग हैं। सबसे बड़ा उपयोग तो यही है कि लीक की गारंटी हो, तो चुनाव से पहले चाहे कितनी भर्ती निकाल कर, चाहे कितनी परीक्षाएं करा लो। लीक के बाद न कोई भर्ती रहेगी और न उम्मीदवारी, रह जाएगा तो सिर्फ भर्तियों का वादा। हल्दी लगे न फिटकरी, रंग चोखा! इसके लिए ही सही, पर पेपर लीक की गारंटी को भी, भगवाइयों की बाकी गारंटियों की बगल में स्थान मिलना ही चाहिए।      

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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