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FUD:अनिश्चितता और संदेह के भरोसे हैं दल

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पार्टियां अपना रहीं कई तरह के हथकंडे, एफयूडी यानी डर

चुनावों में राजनीतिक पार्टियां अब साइकोलॉजिक तकनीक की मदद लेने लगी हैं। इसमें सबसे फेमस है एफयूडी या फियर (भय), अनसर्टेनिटी (अनिश्चितता) और डाउट (संदेह)। इसमें डर पैदा करने वाले कंटेंट देते हैं। इनमें ऐसी बातें शामिल की जाती हैं कि अगर उनकी पार्टी या कैंडिडेट नहीं जीतेगा तो एक वर्ग, जाति, धर्म विशेष को नुकसान हो जाएगा। पढ़िए हेमंत पांडेय की स्पेशल रिपोर्ट…

एक कहावत है कि प्यार और जंग में सब कुछ जायज होता है। अब चुनाव भी ऐसा हो गया है। वोटर्स को प्रभावित करने के लिए पॉलिटिकल पार्टियां तरह-तरह की हथकंडे अपना रही हैं। पार्टियां अब साइकोलॉजिक तकनीक की मदद लेने लगी हैं। इसमें सबसे फेमस है एफयूडी या फियर (भय), अनसर्टेनिटी (अनिश्चितता) और डाउट (संदेह)। दिलचस्प बात यह है कि इसका इस्तेमाल कैंपेन्स और इलेक्शन से एक-दो दिन पहले होता है ताकि वोटर्स को अपने खेमे में किया जा सके। मुओनियम एआइ, चेन्नई के फाउंडर सेंथिल नयागाम का कहना है कि चुनावों में एफयूडी से जुड़ा ज्यादा कंटेंट तैयार किया जा रहा है।

परोसे जा रहे डर पैदा करने वाले कंटेंट

इस तरकीब पर ज्यादातर पार्टियां भरोसा कर रही हैं। इसमें पहला एफ- फियर यानी भय पैदा करना है। इसमें डर पैदा करने वाले कंटेंट देते हैं। इनमें ऐसी बातें शामिल की जाती हैं कि अगर उनकी पार्टी या कैंडिडेट नहीं जीतेगा तो एक वर्ग, जाति, धर्म विशेष को नुकसान हो जाएगा। जैसे कोई विशेष दर्जा, आरक्षण खत्म हो जाएगा या अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। कोई योजना बंद हो जाएगी ताकि वह समूह डरकर उन्हें वोट करे।

सोशल मीडिया पर वायरल किए जाते हैं अस्पष्ट कंटेंट

सेंथिल नयागाम बताते हैं कि इसमें अस्पष्ट कंटेंट बनाया जाता है या फिर उस व्यक्ति की तरह आवाज की रिकॉर्डिंग होती है। वीडियो में व्यक्ति पैसा लेते, अनैतिक गतिविधियों में शामिल होता है या फिर मारपीट या हिंसात्मक वीडियो होता है। इसमें कुछ भी स्पष्ट नहीं होता और वोटिंग से एक-दो दिन पहले वॉट्सऐप-टेलीग्राम से वायरल किया जाता है ताकि सोर्स पता नहीं चल पाए। समय इतना कम होता है कि वेरीफाई और कार्रवाई करना संभव नहीं होता है। इसमें गौर करने वाली बात यह होती है कि जब कोई विवादित कंटेंट आता है तो तेजी से वायरल होता है जबकि उसके स्पष्टीकरण पर लोग गौर भी नहीं करते हैं। अनिश्चितता फैलाने पर भी फोकस दूसरा है अनिश्चितता। संंथिल कहते हैं कि संदेश ऐसा होता है कि अगर उनकी पार्टी या प्रत्याशी नहीं जीते तो कुछ भी हो सकता है।

अस्पष्ट से किया जाता है घ्रुवीकरण

मन में अनिश्चितता लाने वाली सामग्री होती है। तीसरा अक्षर डी-डाउट यानी संदेह पैदा करने वाले कंटेंट देते हैं कि अगर उनका उम्मीदवार नहीं जीतेगा तो क्या-क्या हो सकता है। संदेह फैलाने पर फोकस होता है। ऐसे में जो पहले से विरोधी दल को वोट देने का मानस बना चुके होते हैं, वे भी एफयूडी कंटेंट देखने के बाद मन बदलकर वोट दे देते हैं। ऐसे कंटेंट से ही ध्रुवीकरण भी किया जा रहा है।

समर्थक या डमी व्यक्ति बनते हैं माध्यम

सेंथिल कहते हैं कि फेक न्यूज फैलाने का काम प्रत्याशी नहीं करते हैं, लेकिन उनकी जानकारी में आ जाता है। इस काम को कैंडिडेट के समर्थक या सहयोगी ही अंजाम देते हैं ताकि बाद में पार्टी पर आंच नहीं आए। इसका ज्यादातर काम पार्टी लेवल पर होता है। बड़े खर्चे होते हैं। बड़े स्तर पर कंटेंट तैयार किया जाता है। कंटेंट तैयार करने वाले एक्सपर्ट मेहनताना भी कैश, हवाला बिटकॉइन में लेते हैं।

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