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अतीत और आज : महज गोबर नहीं है गोबर

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       नीलम ज्योति 

    गोबर के उपले पर भोजन पकाने के विरुद्ध लेख लिखे जाते हैं. मोदी बाबा जैसे लोग भी उज्ज्वला स्कीम लेकर आ जाते हैं. दरअसल ऐसा करने वाले लोग भूल कर बैठेते हैं. वे विज्ञान से उल्टा चलने लगते हैं.

    यहाँ तो हम सिर्फ़ गाय भैंस जैसे पशु मल से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं. एक प्रसिद्ध काफ़ी ब्रांड नेवले की खायी काफ़ी के बीज शौच में निकलने के बाद ही प्रोसेस करता है और वही विश्व की सबसे महँगी काफ़ी है.

    ऐसा इसलिए होता है कि नेवले कि आँत कुछ ऐसी रासायनिक क्रिया करती है जो काफ़ी के स्वाद को बेहतर कर रही है.

     गाय का बछड़ा दूध को एक क्षण में ही दही बना देता है ऐसा उसके पेट में उपलब्ध रसायन के  कारण होता है ! पश्चिम इस रसायन को प्राप्त करने के लिए गाय के नवजात बछड़े की हत्या करता था? इसलिए पाश्चात्य दही पर हलाल लिखा होता था।

तो शौच अच्छा या बुरा नहीं होता  है.

यह बचा हुआ अवशेष होता है. यानी  भोजन का वह भाग जो आपके शरीर के द्वारा अपने लिए उपयोगी नहीं पाया गया.

   स्व~मूत्र चिकित्सा के लिए क्या कहेंगे. सिद्धांत इतना भर है कि यह यूरीन मस्तिष्क और नसों के लिए कुछ विशेष परिस्थिति में उपयोगी है. रक्त का थक्का रोकने के लिए. किंतु यह बनता है किडनी में और वहाँ से बाहर हो जाता है. तब इसे शरीर के ऊपरी भाग तक पहुँचाने के लिए पीना पड़ता है.

   एक मित्र की माताजी का हृदय २४ प्रतिशत ही सक्षम था. २०१५ में चिकित्सक ने उनके मस्तिष्क की नसें सिकुड़ी पायी और उनका ऑपरेशन सुझाया। हृदय चिकित्सक ने कहा कोई भी सर्जरी उनकी अंतिम होगी वे सर्जरी पूर्ण होने तक जीवित न रहेंगी.

    उन्हें गौ मूत्र पिलाया गया. बिना वैद्य की अनुशंसा यह प्रयोग न करें क्योंकि यह यूरिक एसिड ही है. उनकी स्मृति और मस्तिष्क की गतिविधियों में तुरंत सुधार हुआ. अब कोई विद्वान इसे प्रयोग शाला में बना ही लेगा और आपकी तरह मूत्र से बेहतर कहेगा किंतु यह एक सहज उपलब्ध वस्तु को दुर्लभ और महँगा बनाना है.

   कृपा कर गोबर और गैस की तुलना न कर दोनों से उत्पन्न अग्नि की तुलना करें.

  उपले की आग का तापमान गैस की आग से कम होने के कारण भोजन धीमी गति से पकता है और बेहतर पकता  है.

    सोलर कुकर उससे भी बेहतर है. भारत की संस्कृति सहज और सुलभ सिद्धन्तो की खोज पर विकसित की गई है और वह लाभ पर फोकस करती है. यहाँ अध्यात्म में भी अघोर पंथ है जहां पाँच मकार में  इनसे भी हेय वस्तुओं का सेव किया जाता है.

अब गोबर में पराली मिलाकर गौ काष्ठ का निर्माण किया जा रहा है जो चिता में प्रयोग कर वृक्षों को काटने से बचा रहा है. यह मात्रा में आधा ही लगता है और शव दाह आधे समय में ही  पूर्ण कर देता है.

   किसी पाश्चात्य लेख में पढ़ने को मिला था कि परमाणु विकिरण को रोकने में गोबर का घोल ही कारगर होगा। तब मैं सोची थी कि क्या पुराने भारतीय लोग घर, झोंपड़ी की दीवारों को, फर्श को गोबर से लीपते वक्त ऐसा कुछ जानते होंगे.

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