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हॉस्पिटल का बिल नहीं चुकाने के चलते मरीज को बंधक बना किडनी निकालने की धमकी

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मध्य प्रदेश से पिछले दिनों खबर थी कि अस्पताल ने मरीज़ को बिस्तर से बांधकर रखा क्योंकि Bill Payment नहीं कर सका. हालांकि बाद में, अस्पताल पर कार्रवाई हुई लेकिन जानने की बात यह है कि क्या किसी अस्पताल को वाकई अधिकार है कि वो भुगतान न होने पर किसी मरीज़ को बंधक बना ले!

मध्यप्रदेश के बुरहानपुर नगर के अमरावती रोड स्थित संजय नगर वार्ड के एक निजी हॉस्पिटल संचालक पर हॉस्पिटल का बिल नहीं चुकाने के चलते मरीज को बंधक बनाने के गंभीर आरोप लगे हैं। यही नहीं, मरीज के परिजनों ने इसके साथ ही अस्पताल का बिल न चुका पाने की दशा में, डॉक्टर द्वारा मरीज की किडनी निकालने की धमकी देने के भी गंभीर आरोपों सहित परिजन की बाइक की चाबी भी छीनने के आरोप अस्पताल स्टॉफ पर लगाए हैं, जिसके बाद मरीज के परिजनों ने आदिवासी संगठन के बैनर तले जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर कलेक्टर भव्या मित्तल से इसकी शिकायत की है।

बता दें कि एक सड़क दुर्घटना में घायल होने पर मरीज को अस्पताल में भर्ती किया गया था। जहां उसके पैर में फ्रेक्चर का ऑपरेशन करने पर मरीज का बिल करीब एक लाख 30 हजार रुपये का बना है। वहीं, परिजन का आरोप है कि बिल न चुकाने पर उन्हें डॉक्टरों ने धमकी दी है, जिस पर उन्होंने प्रशासन से कार्रवाई की मांग की है। इधर, निजी हॉस्पिटल के डॉक्टर ने सभी आरोपों को निराधार बताया है।

डॉक्टर ने बोला था किडनी निकालने का
वहीं, इस मामले में जिला कलेक्टर से शिकायत करने पहुंची मरीज की मां ने आरोप लगाया कि बालाजी हॉस्पिटल में उनके पुत्र बबलू के बिल का 11 हजार रुपये से अधिक का बिल बकाया होने के चलते एक डॉक्टर ने उनके पुत्र बबलू की किडनी निकालने का बोला था। वहीं, आदिवासी संगठन के विजय धार्वे ने बताया कि कमल खेड़ा के पास बिलोढा गांव का एक पेशेंट बबलू पिता छतर सिंह, जिसको बीते रविवार एक्सीडेंट होने के चलते, बालाजी हॉस्पिटल में एडमिट किया गया था। उसे किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मारी थी, जिसकी सूचना परिवार को सोमवार शाम को मिली थी। उसके पैर की हड्डी में फ्रैक्चर था, जिसका अभी बिल एक लाख 23 हजार रुपये से अधिक बताया जा रहा है। इस मामले में परिवार को सूचना ऑपरेशन होने के बाद मिली थी तो वहां जो मनमानी वसूली चल रही है, उसी को लेकर हम कलेक्टर मैडम से मिलने आए हैं।

इलाज कर रहे हैं, तो पेमेंट तो जमा होना ही चाहिए
वहीं, इस मामले में अस्पताल के डॉक्टर राज भट्ट ने बताया कि मरीज के परिजन के आरोप गलत हैं। उस मरीज का एक्सीडेंट होने पर हमारे यहां ऑपरेशन हुआ था, जिसका हमने उन लोगों को बता चुके थे, उसका हमारे पास कंसर्ट भी है कि वे इस पर राजी थे। उसके बाद न ही वे लोग यहां आए और न ही पेमेंट जमा किए। हमने उन्हें बंधक नहीं बनाया, बल्कि हमने तो उन्हें बताया था कि पेशेंट की छुट्टी का टाइम हो गया है। वहीं, उन्होंने मरीज की किडनी निकालने के आरोपों को भी नकार दिया। साथ ही मरीज के परिजनों के बाइक की चाबी छीनने के आरोपों को भी उन्होंने नकार दिया। हालांकि, उन्होंने कहा कि हम इलाज कर रहे हैं, तो पेमेंट तो जमा होना ही चाहिए।

क्या था MP में मरीज़ को बंधक बनाने का मामला?
मप्र के शाजापुर ज़िले के अस्पताल में 60 वर्षीय लक्ष्मीनारायण दांगी को पेटदर्द की शिकायत के चलते भर्ती किया गया था. खबरों के मुताबिकदांगी की बेटी शीला अस्पताल का बिल नहीं चुका सकी तो अस्पताल ने दांगी को रस्सियों से बिस्तर पर बांध दिया. दावा किया कि मरोड़ से परेशानी में दांगी को चोट न लग जाए इसलिए बांधा.

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मप्र में एक अस्पताल ने मरीज़ को बिस्तर से बांधकर रखा. फाइल फोटो.

वहीं, सोशल मीडिया पर जब दांगी के बंधे होने के फोटो और वीडियो वायरल हुए, तो उसके बाद सूबे के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जांच के आदेश दिए. शाजापुर कलेक्टर ने एसडीएम से जांच करवाई और आखिर में उस प्राइवेट अस्पताल का न सिर्फ लाइसेंस रद्द किया गया बल्कि मैनेजर पर मरीज़ को बंधक बनाने का केस भी दर्ज किया गया.

अब बात ये है कि इससे पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं और अस्पताल बिल भुगतान न होने पर मरीज़ों को परेशान करते रहे हैं लेकिन इस तरह मामलों का अंत नहीं होता क्योंकि साफ कानून नहीं हैं. फिर भी कैसे और कितने कानूनी विकल्प हैं, ये जानना ज़रूरी हो जाता है.

पेशेंट राइट्स चार्टर में मिले हैं अधिकार
साल 2018 में पहली बार देश में मरीज़ों के अधिकारों के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक विस्तृत चार्टर जारी किया था, जिसमें साफ तौर पर 17 अधिकार शुमार थे. इस बारे में न्यूज़18 ने हाल ही आपको विस्तार से बताया था कि मरीज़ों के स्वास्थ्य संबंधी अधिकार क्या हैं.

इसी चार्टर के मुताबिक एक नियम साफ तौर पर कहता है कि बिल भुगतान न होने, बिल भुगतान की प्रक्रिया में देर होने या भुगतान पर विवाद होने जैसे कारणों से अस्पताल मरीज़ या शव के डिस्चार्ज में देर नहीं कर सकता. लेकिन, पेंच यह है कि यह चार्टर ड्राफ्ट केंद्र सरकार ने तैयार किया था और स्वास्थ्य चूंकि राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र का मामला है इसलिए नियम कायदे राज्य बना सकते हैं.

क्या किसी राज्य ने बनाया ऐसा नियम?
हां. महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन रूल्स में संशोधन करते हुए यह नियम जोड़ा कि भुगतान न करने की स्थिति में मरीज़ या शवों को डिस्चार्ज करने में अस्पताल मनमानी या देर नहीं कर सकते. लेकिन यहां भी समस्या है कि ये नियम अब तक कागजों पर ही है, कानूनी प्रावधानों के साथ लागू नहीं हो सका है.

अब कोर्ट का इस मामले में क्या रुख है?
क्या यही आखिरी विकल्प बचता है? कई बार ऐसा हुआ है. अस्ल में कोर्ट भी केस को लेकर फैसले देते रहे हैं और कहते रहे हैं कि कायदे कानून बनाना सरकार का काम है. हालांकि कुछ मामलों में कोर्ट के फैसले एक दिशा बताने का काम तो करते ही हैं. ऐसे में दो केसों के बारे में जानना काम की बात है.

पहला, 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मरीज़ के हक में फैसला देते हुए कहा था ‘जबकि मरीज़ को फिट बताया जा चुका तो भुगतान न होने पर भी किस आधार पर अस्पताल उसे बंधक बना सकता है? ऐसा करने से अस्पताल मरीज़ की निजी स्वतंत्रता का हनन करता है. सभी को जागरूक होना चाहिए कि अस्पताल के ऐसे एक्शन गैर कानूनी हैं.’

इसी तरह, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी भुगतान को लेकर बंधक बना लिये गए मरीज़ को तत्काल छोड़े जाने के निर्देश देते हुए कहा था ‘भले ही भुगतान न हुआ हो, लेकिन पैसे निकलवाने के लिए अस्पताल किसी मरीज़ को बंधक बना ले, हम ऐसे व्यवहार की निंदा करते हैं.’

तो, मरीज़ों के हित में थोड़े बहुत कानूनों के साथ ही कोर्ट का सहारा भी है और मप्र के केस को मद्देनज़र रखें तो स्थानीय प्रशासन भी दखल देकर मरीज़ों की मदद कर सकता है. इसके बावजूद, मरीज़ों के अधिकारों और उनकी रक्षा के लिए स्पष्ट और सशक्त कानूनों की ज़रूरत बनी हुई है.

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