अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

जजों की कमी से जनता को न्याय नहीं मिल रहा है

Share

मुनेश त्यागी 

       भारत के संविधान में जनता को सस्ते और सुलभ न्याय की व्यवस्था की गई है। इसके लिए अनेक प्रावधान बनाए गए हैं। संविधान के प्रस्तावना में भी जनता को न्याय देने की बात की गई है और आर्टिकल 39 में भी जनता को सस्ते और सुलभ न्याय की बात की गई है। मगर आजादी के 75 साल बाद आज भी, हम देख रहे हैं कि जनता को सस्ते और सुलभ न्याय के ये तमाम वायदे हमारी कानून की किताबों और संविधान में लटके पड़े हैं, बरसों बरस से धूल फांक रहे हैं। इन्हें अभी तक धरती पर नहीं उतारा गया है।

      सरकारें, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने की बात लगातार करती रही हैं। चुनाव में भी इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है, मगर आज तक जनता को सस्ते और सुलभ न्याय के दर्शन नहीं हो पाए हैं। अभी हाल फिलहाल एक आरटीआई के माध्यम से मांगी गई सूचना में, यह जानकारी प्रकाश में आई है कि भारत के उच्च न्यायालयों में केवल 70 फ़ीसदी जज काम कर रहे हैं। अधिकांश न्यायालयों में 30 परसेंट से ज्यादा जजों के पद खाली पड़े हुए हैं। यही हाल भारत के सुप्रीम कोर्ट का है। सुप्रीम कोर्ट में भी 21 परसेंट जज के पद खाली हैं।

      भारत के 25 उच्च न्यायालयों में जजों के 1,108 स्वीकृत पद हैं, जबकि 335 पद यानी लगभग 30 परसेंट हाईकोर्ट के जजों के पद खाली पड़े हुए हैं। मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित के रिटायरमेंट के बाद सर्वोच्च न्यायालय के 34 न्यायाधीशों के पदों में से केवल 27 जज काम कर रहे हैं और इस प्रकार 8 पद यानी कि 21 परसेंट सुप्रीम कोर्ट के जजों के पद खाली पड़े हुए हैं।

     आरटीआई के द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार उत्तराखंड हाई कोर्ट में 11 जज हैं जिनमें से केवल सात काम कर रहे हैं। राजस्थान और गुजरात के हाई कोर्ट में 46 परसेंट जजों के पद खाली पड़े हैं। मणिपुर और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय में 40% जजों के पद खाली पड़े हुए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 38 प्रतिशत हाईकोर्ट के जजों के पद खाली पड़े हुए हैं।

       उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और पटना हाईकोर्ट में जजों के 36% पद खाली पड़े हुए हैं जबकि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के 35% पद खाली पड़े हुए हैं, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 34% पद खाली पड़े हुए हैं। उड़ीसा हाईकोर्ट के 33% पद खाली पड़े हुए हैं, मुंबई हाईकोर्ट के 30% पद खाली पड़े हुए हैं, मद्रास हाईकोर्ट के 28 परसेंट, कोलकाता और मेघालय हाई कोर्ट के 25 परसेंट जजों के पद खाली पड़े हुए हैं, दिल्ली हाई कोर्ट जजों के 23% पद खाली पड़े हुए हैं।

       तेलंगाना, केरल और कर्नाटक हाई कोर्ट के 21% जजों के पद खाली पड़े हुए हैं। आंध्रप्रदेश में 19% और झारखंड हाई कोर्ट में 16% जजों के पद खाली पड़े हुए हैं। जम्मू और लद्दाख हाईकोर्ट में 12% जजों के पद खाली पड़े हुए हैं। भारत की 25 हाई कोर्ट में केवल सिक्किम और गुवाहाटी हाईकोर्ट में केवल कोई पद खाली नहीं है।

        उपरोक्त आंकड़ों को देखकर लगता है कि यह एक चिंता का विषय है। मुकदमों की पेंडेंसी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है और जजों की कमी के कारण न्याय मिलने में देरी हो रही है। वर्तमान में भारत में लगभग 5 करोड केसिज विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। सर्वोच्च न्यायालय में 80 हजार, भारत के उच्च न्यायालयों में लगभग 59 लाख केस लंबित हैं और भारत की निचली अदालतों में चार करोड़ 20 लाख से ज्यादा मुकदमे पेंडिंग हैं।

      पहले कांग्रेस और अब भाजपा की नीतियों में जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देना शामिल नहीं है। पहले कांग्रेस तरह-तरह के बहाने बनाकर जजों की नियुक्तियों को टालती रही और अब मोदी सरकार पर्याप्त संख्या में जज नियुक्त न करके, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। उसकी जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने में कोई रुचि नहीं है।

       यहां पर बड़े अचंभे की बात है कि 1987 में भारत के ला कमीशन ने रिपोर्ट दी थी कि 10 लाख जनसंख्या पर 107 जज होने चाहिए जबकि वर्तमान में हमारे यहां 10 लाख जनसंख्या पर केवल 20 जज ही काम कर रहे हैं। बेहद अफसोस की बात है जुडिशरी पर खर्च करने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं है और जीडीपी का केवल .08% ही खर्च किया जाता है। मुकदमों के अनुपात में जज नहीं है और मुकदमों के अनुपात में न्यायालय नहीं है। बहुत सारे न्यायालय में इतनी भीड़ है कि वहां पर एक कदम रखना भी टेढ़ी खीर है।

     अभी-अभी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकार, कॉलेजियम द्वारा भेजे गए न्यायाधीशों की नियुक्ति को समय से नहीं कर रही है। वह उनकी समय से नियुक्तियों को जानबूझकर रोके हुए हैं और इसका कोई कारण नहीं बता रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कोलिजिम द्वारा सुझाए गए नामों की नियुक्तियां न करने पर गंभीर चिंता जताई है और गुस्से का इजहार किया है। सरकार की इस देरी की मानसिकता के कारण, कई सारे जजों ने परेशान होकर, अपनी बेज्जती समझकर, अपने नाम भी वापस ले लिए हैं। इसके बावजूद भी सरकार कोलीजिएम द्वारा सुझाए गए जजों के नामों को आगे नहीं बढ़ा रही है, उनकी नियुक्तियां नहीं कर रही है।

     उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यही निष्कर्ष निकलता है कि वादकारियों को सस्ता और सुलभ न्याय देना, सरकार की नीतियों में, उसके एजेंडे में शामिल नहीं है। इस प्रकार सरकार की न्याय विरोधी नीतियों को देखकर कहा जा सकता है कि इस देश की जनता को समय से न्याय नहीं मिल सकता और जजों की कमी की वजह से जनता को न्याय नहीं मिल रहा है और समय से न्याय न मिलने के कारण का सबसे बड़ा कारण सरकार की न्याय विरोधी नीतियां हैं।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें