– आशीष तेलंग
सबको मोटिवेट होना है और हमेशा मोटिवेटेड ही रहना है.. उन्हें लगता है कि मोटिवेट होने से उनकी सारी समस्याओं का हल निकल जायेगा..
इसी के चलते बाज़ार में सैकड़ों मोटिवेशनल स्पीकर पैदा हो गए हैं और हर मीडिया प्लेटफार्म जैसे अखबार, सोशल मीडिया, यूट्यूब वगैरह पर ये भौकाल मचाये हुए हैं..
इनके चक्कर में अखबारों में साहित्य की स्पेस सिकुड़ गई है और लोग अच्छे साहित्य से महरूम होते जा रहे हैं..
ये लोग बड़े बड़े ऑडिटोरियम में सेमिनार भी करते हैं जिसमें हजारों की भीड़ होती है..
इस भीड़ में शामिल लोग भी कोई ज्ञान के भूखे नहीं होते, बल्कि सबकी कोई ना कोई समस्या होती है और उन्हें लगता है कि ये मोटिवेशनल वक्ता कुछ मोटिवेशन के नुस्खे वुस्ख़े बता कर उनका समाधान कर देगा..
लेकिन ये भोले लोग होते हैं जिन्हें ये नहीं पता कि ये मोटिवेशनल वक्ता और कुछ नही बल्कि नीम हकीम ही हैं..
नीम हकीम वो होते हैं जिनके पास ना तो कोई मान्य डिग्री होती है, ना ही इलाज की कोई औपचारिक शिक्षा..
इलाज के नाम पर इनके पास बस दो चार गोलियां या नुस्खे ही होती हैं और कोई भी बीमारी हो ये बस इन्हीं को घुमा फिरा कर मरीज को दे दिया करते हैं.. कुछ इत्तेफ़ाक़न ठीक भी हो जाते हैं.. जो नहीं होते वे दूसरे नीम हकीमों के पास चले जाया करते हैं..
ये मोटिवेशनल वक्ता काउंसलिंग के नीम हकीम होते हैं और इनके पास भी इलाज के नाम पर वही, सकारात्मकता, हैप्पीनेस, समाधान की सोचें समस्या की नहीं और ऐसी ही बोगस सी बातों के दो चार नुस्खे ही होते हैं जिनको ये घुमा फिरा कर टिपाते जाते हैं..
ये सभी लोग अत्यधिक वाक्चातुर्य होते हैं, सारी लच्छेदार बातें कैसे घुमा फिरा कर कहनी है, ये इसके एक्सपर्ट होते हैं और लोग इसी में फंस जाते हैं..
वाक्चातुर्य व्यक्ति को ही ज्ञानी समझने की सबसे बड़ी भूल हम अक्सर कर जाते हैं, जबकि ऐसा है नहीं बिल्कुल..
और तो और, इनकी ढीठता का आलम ये रहता है कि इनके सामने जब कोई अपनी समस्या रखता है तो ये सारा कसूर उसी के मत्थे मढ़ देते हैं कि भाई तू ही नेगेटिव सोचता रहता है, पॉजिटिव सोच, सब सही हो जाएगा.. तू ही जिम्मेदार है..
क्या वास्तव में हर समस्या, हर दुख का समाधान पॉजिटिव सोचना है?
बिल्कुल नहीं है.. क्योंकि सारी समस्याएं एक तरह की नहीं होतीं.. तो समाधान एक कैसे हो जाएगा?
यदि जीवन के दुख या समस्या का विश्लेषण करें तो कोई भी समस्या हो, वो मोटे तौर पर इन निम्नलिखित तीन कैटेगरी से बाहर की नहीं होगी:
1. एक्सटर्नल यानि बाहरी कारणों से होने वालीं
2. डिसकम्फर्ट यानि असुविधा से होने वालीं
3. दृष्टिकोण या एटीट्यूड से होने वालीं
1. ये समस्या ऐसी होती है जैसे कोई कांटा पैर में चुभ जाए.. फिर उसे निकालने के अलावा दर्द या दुख से मुक्ति का कोई उपाय नहीं होता..
या कोई गंभीर बीमारी हो गयी हो तो उस दुख से मुक्ति का एक ही रास्ता होता है: बीमारी का इलाज..
इसमें कोई सांत्वना, कोई motivational story, कोई दर्शन काम नहीं करता.. दुख की जड़ ढूंढ कर खत्म करनी पड़ती है तब समस्या खत्म होती है.. कांटा ही निकालना पड़ता है..
2. ये दुख असुविधा से पैदा होने वाला दुख होता है.. जैसे आज घर में पानी नहीं आया, लाइट चली गयी या फिर ट्रेन में वेटिंग क्लियर नहीं हुई और पूरी रात सोने को नहीं मिला..
इस तरह के दुख से मुक्ति का उपाय है कि या तो वो असुविधा के कारण को ही किसी तरह से खत्म कर दिया जाये या फिर वो असुविधा आदत में शुमार हो जाये..
जैसे ट्रेन में असुविधा से बचने के लिए लोग बर्थ आरक्षित करवा लेते हैं.. पर यदि किसी की पूरी उम्र ट्रेन के जनरल क्लास में ही सफर कर कर के निकल गयी हो फिर वो असुविधा उसके लिए दुख पैदा नहीं करती क्योंकि वो अब उसकी आदत में आ चुकी है..
3. ये एक तीसरे तरह का दुख होता है जो पूर्णतः आपके अंतर्निहित दर्शन एवं Attitude यानि दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है..
जैसे आप कलेक्टर बनना चाहते थे, बन गए क्लर्क.. बच्चे के 98% नंबर चाहते थे, आ गए 94%..
बड़े बंगले का ख्वाब था, रह रहे हैं फ्लैट में..
वही, तेरी कार बड़ी मेरी छोटी, तेरा बच्चा बहुत इंटेलीजेंट मेरा बस इंटेलीजेंट वाले तुलनात्मक दुख..
इन तुलनात्मक दुखों का कोई इलाज नहीं होता.. दुनिया भर की सफलता, खुशी आपको क्यों न मिल जाये, आप दुखी ही रहेंगे..
इस दुख से मुक्ति पाने का उपाय केवल अपने Attitude या कहें Way of Thinking को बदलने में ही होता है.. यहां काम आती है सकारात्मक सोच..
और यहां जब हम पॉजिटिव सोचने लग जाते हैं तो जो दृष्टि पहले इस पर थी कि जीवन में क्या नहीं मिला है, वो शिफ्ट हो जाती है इस पर कि जीवन में क्या कुछ मिल गया है और सहसा हम ईश्वर के प्रति कृतज्ञ भाव से भर जाते हैं..
यहां पूरा खेल ही दृष्टिकोण का है..
सो समाधान खोजने से पहले अपनी समस्या को गहराई से समझिये, तभी समाधान निकलेगा..
– आशीष तेलंग