मुनेश त्यागी
कुछ नहीं करने से समाज नहीं बदलता। समाज बदलने के लिए हमें जनमुक्ति का कार्यक्रम बनाना पड़ेगा और किसानों, मजदूरों, नौजवानों, विद्यार्थियों को उसको कार्यान्वित करने के लिए लगाना पड़ेगा और गांवों, झोपड़ियों और कारखानों में जाकर किसानों, मजदूरों और नौजवानों को क्रांति के लिए जागरूक करना पड़ेगा।
पूरी जनता को ही समाज बदलने के लिए लड़ना पड़ेगा, लगना पड़ेगा। इस जुल्मी समाज से लड़ना पड़ेगा क्योंकि आजादी के पिछले 75 साल बता रहे हैं कि यह समाज जनता की समस्याओं का, किसानों मजदूरों विद्यार्थियों, नौजवानों और महिलाओं की समस्याओं का, हल नहीं कर सकता। यह पूंजीवादी और सामंती समाज है।
हमें इसके स्थान पर समाजवादी समाज की स्थापना करनी पड़ेगी जिसमें किसानों का राज होगा, मजदूरों का राज होगा, जिसमें नौजवान, विद्यार्थी, महिलाएं, किसान मजदूर, मीडिया कर्मी, बुद्धिजीवी और सोशल मीडियाकर्मियों को मिलकर समाज की मुक्ति का काम करना होगा। समाज की मुक्ति का मतलब है जब जनता को रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार आवश्यक रूप से मिल जाएंगे तो जनता समाज निर्माण में लग जाएगी और एक नए समाज का निर्माण करेगी जिसे समाजवादी समाज का आ जाएगा, जहां शोषण नहीं होगा, अन्याय नहीं होगा, भेदभाव नहीं होगा अत्याचार जुल्मों सितम नहीं होंगे, जातिवाद संप्रदायिकता भ्रष्टाचार, शोषण करने वाली व्यक्तिगत संपत्तिऔर लूट खसोट नहीं होंगे।
पूरे समाज में समता, समानता, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, जनतंत्र, गणतंत्र और समाजवाद की स्थापना की जाएगी जिसमें पूंजीवादी बीमारियों और समस्याओं जैसे भूख, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई से जनता को मुक्ति मिलेगी और जनता राहत की सांस लेगी।
हमें ऐसे समाज की स्थापना में ही लगना है, ऐसे समाज को बनाने के लिए जनता के अलग-अलग संगठन बनाने होंगे, उनका अलग-अलग कार्यक्रम बनाना होगा और उस कार्यक्रम के इर्द-गिर्द उस जनता को लगाना पड़ेगा। इसके लिए हमें किसानों की मुक्ति का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा, मजदूरों की मुक्ति का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा, छात्रों की मुक्ति का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा, नौजवानों को रोजगार देने का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा, महिलाओं को रोजगार देने का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा। उनकी दिन प्रतिदिन की समस्याएं दूर करने का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा। कुल मिलाकर सारी जनता की मुक्ति और कल्याण का कार्यक्रम मनाना पड़ेगा और सारी जनता को इसके कार्यान्वयन में लगाना पड़ेगा।
ध्यान रखना, यह काम एक दिन में होने वाला नहीं है, इसके लिए बरसों बरस लग जाते हैं, दस बीस बरस भी लग सकते हैं क्योंकि पूंजीवादी समाज बहुत गहरे से हमारे समाज में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। पूंजीवादी समाज कि इस पकड़ को दूर करना होगा और एक लंबे संघर्ष के लिए अपने को तैयार करना होगा और इसके साथ ही जनता में समाजवादी चेतना और वैज्ञानिक चेतना की स्थापना करनी होगी।
जब तक हम समाज में जनवादी और समाजवादी चेतना का प्रचार प्रसार नही करेंगे और समाजवादी समाज को स्थापित करने का लक्ष्य नहीं बताएंगे जनता को, तब तक यह समाज बदलने वाला नहीं है। समाज में क्रांतिकारी और बुनियादी परिवर्तन करने के कार्यक्रमों के साथ-साथ हमें जनता में सुधार के लिए, उसकी परेशानियों में सुधार के कार्यक्रम भी चलाने पड़ेंगे क्योंकि जनता को कुछ नया करके दिखाना होगा। जब तक हम जनता को इस लुटेरी शोषक और अन्यायी व्यवस्था को बदलने का नया नजरिया जनता के सामने पेश नहीं करेंगे तो जनता को इस नये समाज की स्थापना के बारे में भी समझ में नहीं आएगा।
जनता की चेतना और समझदारी को समाजवादी समाज की ओर मोड़ने का काम किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, नौजवानों, बुद्धिजीवियों, कवियों, लेखकों, सांस्कृतिक कर्मियों और जनता के जनवादी और प्रगतिशील तबकों को करना होगा। कविता लिखकर, लेख लिखकर, साधारण भाषा में पर्चे छाप कर, अखबार निकालकर, पत्रिकाएं निकालकर ,नाटक खेल कर फेसबुक और व्हाट्सएप और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर, सांस्कृतिक संगठन बनाकर, नाटक और गायक समूह बनाकर, भाषण देकर जनता की चेतना को समाजवाद, जनवाद और सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और आध्यात्मिक, हर प्रकार की आजादी की तरफ की तरफ ले जाना होगा।
किसानों, मजदूरों, नौजवानों और महिलाओं को, अपने संगठन बनाकर जनता के बीच जाना होगा और जनता के बीच समाजवादी, वैज्ञानिक, जनवादी और प्रगतिशील चेतना को विस्तार देना होगा, तभी लूट पर आधारित इस पूंजीवादी और सामंती समाज के गठजोड़ को बदला जा सकेगा और एक क्रांतिकारी और समाजवादी समाज की स्थापना की जा सकेगी।