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पिंक टैक्स :क्या टैक्स का भी कोई जेंडर हो सकता है?

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-निमिषा सिंह

क्या टैक्स का भी कोई जेंडर हो सकता है? बिलकुल नहीं। चाहे महिलाएं हो या पुरुष दोनों को एक समान टैक्स भरना पड़ता है फिर चाहे वो इनकम टैक्स हो प्रॉपर्टी टैक्स हो या जीएसटी पर क्या आपने पिंक टैक्स के विषय में सुना है? जिन्हे जानकारी नहीं उनके मन में यह सवाल जरूर उठेगा कि पिंक टैक्स होता क्या है और टैैक्स का पिंक कलर से क्या संबंध है? हालांकि पिंक सुनते ही इतना तो आसानी से समझा ही जा सकता हैं कि यकीनन यह महिलाओं से संबंधित है। जी हां पिंक टैक्स एक ऐसा टैक्स है जिसे जेंडर के हिसाब से वसूला जाता है। महिला उपभोक्ता अर्थात देश की लगभाग आधी आबादी पर अतिरिक्त भार डालता पिंक टैक्स या यूं कहें कि गुलाबी कर। यह कोई आधिकारिक कर नहीं है जो सरकार या किसी कंपनी को देना जरूरी होता है बल्कि यह एक अतिरिक्त शुल्क की तरह है जिसे महिलाओं द्वारा इस्तेमाल।किए जाने वाले उनके व्यक्तिगत उत्पादों पर लगाया जाता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि जब भी किसी उत्पाद पर पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अधिक खर्च करना पड़ता है तो वह पिंक प्रोडक्ट होता है।

दरअसल यह टैक्स विभिन्न कंपनियों द्वारा वसूला जाता है और इसका सीधा असर हम महिलाओं के पर्स पर पड़ता है। देश की आधी आबादी इस टैक्स को चुकाती है और हैरत की बात यह है उन्हे इस विषय में कोई जानकारी ही नही। जाहिर है पुरुष और महिलाएं अक्सर एक जैसे रोजमर्रा के उत्पाद खरीदते हैं लेकिन कई देशों में हुए विभिन्न शोध से पता चलता है कि महिलाओं के उत्पाद कभी-कभी पुरुषों को बेचे जाने वाले उत्पादों की तुलना में ज़्यादा महंगे होते हैं। इस असमानता को तथाकथित पिंक टैक्स या गुलाबी कर कहा जाता है। उदाहरण के तौर मैं पर में दुकानों में बिकने वाले सस्ते रेज़र को लेती हूं। केवल एक ब्लेड से आप लैंगिक मूल्य निर्धारण के इस फर्क को समझ जायेंगे। दुकान पर पुरुषों के रेजर का संस्करण नीला दिखेगा आपको जबकि महिलाओं के रेजर का संस्करण गुलाबी। बस यही अंतर है रंग का लेकिन अनिवार्य रूप से महिलाओं का संस्करण पुरुषों के उत्पाद की तुलना में अधिक महंगा मिलेगा। ऐसा क्यों? महिला उपभोक्ता होने की यह कैसी कीमत? इस पर रेज़र जैसे उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माता यह तर्क देते हैं कि महिलाओं के उत्पादों के लिए उत्पाद डिजाइन और मार्केटिंग की लागत अधिक होती है और यही कारण है कि लागत का बोझ महिला उपभोक्ताओं पर डाला जाता हैं। मैने तो सिर्फ एक रेजर का उदाहरण दिया पर महिला उपभोक्ता अगर ध्यान देंगी तो उन्हे पता चलेगा कि बगैर उनकी जानकारी के कैसे उनसे पिंक टैक्स वसूला जा रहा है विशेषकर उनके व्यक्तिगत देखभाल वाले उत्पादों पर फिर चाहे वो उनके कपड़े हो या फिर उनके सौन्दर्य प्रसाधन। पुरुष और महिलाओं की हेयर कटिंग और उनके कपड़ों की ड्राई क्लीनिंग की कीमत के अंतर से इस फर्क को आसानी से समझा जा सकता है। दुर्भाग्य से गुलाबी कर का यह फर्क आपको बच्चो के पालने से लेकर बेड तक दिखाई दे जायेगा। ओल्ड नेवी जैसी नामी गिरामी ब्रांड को महिलाओं के प्लस-साइज़ कपड़ों के लिए ज़्यादा पैसे वसूलने के लिए पकड़ा गया था जबकि पुरुषों के प्लस और रेगुलर साइज की जींस की कीमतों में ऐसा कोई अंतर नहीं था।
ड्राई क्लीनर्स एक और जगह है जहाँ महिलाएँ उसी सेवा के लिए ज़्यादा पैसे चुकाती हैं। कॉस्मेटिक उत्पादों के निर्माता भी महिलाओं से गुलाबी उत्पादों के लिए ज़्यादा पैसे वसूलने के मामले में सबसे ज़्यादा दोषी है।
एक रिसर्च के तहत छह ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं के 50 लोकप्रिय बच्चों के उत्पादों का अध्ययन किया गया जिनमें टारगेट, अमेज़न , वॉलमार्ट, मैसीज, जेसीपीनी और ब्लूमिंगडेल्स शामिल थे। रिपोर्ट में यह पाया गया कि लड़कियों के उत्पाद (पिंक प्रोडक्ट्स) की कीमत तुलनात्मक रूप से लडको के उत्पादों से ज्यादा महंगे थे। बिजनेस ऑफ फैशन डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों के लिए डिजाइन किए गए कपड़ों के मुकाबले महिलाओं के लिए डिजाइन कपड़ों की कीमत ज्यादा होती है। हमारी जानकारी के बिना हमसे वसूले जाने वाले इस टैक्स का विरोध कई नारीवादी संगठनों द्वारा समय समय पर किया जाता रहा है साथ ही ऐसे उत्पादों के बहिष्कर के लिए मुहिम भी चलाई गई। बावजूद इसके लंबे समय से हमसे यह टैक्स वसूला जाता रहा है। हाल ही में बायोकॉन की चीफ किरण मजूमदार-शॉ ने एक वीडियो शेयर कर पिंक टैक्स के बहिष्कार का आह्वान किया था। भारत में पिक टैक्स कानून द्वारा प्रतिबंधित नहीं है और इस मूल्य निर्धारण अभ्यास पर कोई निश्चित सरकारी नियम भी नहीं है। महिलाओं को लक्षित वस्तुओं और सेवाओं की कीमत बाजार की गतिशीलता और मांग के आधार पर निर्धारित की जाती है। कंपनियों द्वारा पुरुषों के उत्पादों की तुलना में जब महिलाओं से उनके उत्पादों के लिए अधिक शुल्क लिया जाता है तो अतिरिक्त राजस्व सरकार को नहीं जाता बल्कि कंपनियों को ही लाभ होता है। यह मूल्य निर्धारण विसंगति केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने पाया है कि महिलाओं के लिए बेचे जाने वाले उत्पाद पुरुषों के लिए बनाए जाने वाले उत्पादों से ज्यादा महंगे हो सकते हैं। कॉस्मेटिक जूते कपड़े जैसी चीज अक्सर महिलाओं के लिए डिजाइन और विज्ञापन किए जाने पर ज्यादा महंगी होती है। उदाहरण के लिए महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाए गए गुलाबी पैकेजिंग वाले उत्पादों की कीमत तुलनात्मक रूप में ज्यादा हो जाती है। दुर्भाग्य है कि भारत में गुलाबी कर को लेकर ज्यादा रिसर्च भी नहीं किया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में एक सरकारी अध्ययन ने लगभग 100 ब्रांडों के 800 लिंग-विशिष्ट उत्पादों का जब विश्लेषण किया गया तो स्टडी के दौरान यह पाया गया कि जो प्रोडक्ट महिलाओं के लिए बने थे वो पुरुषों के लिए बनाए गए सामानों से अधिक महंगे हैं। कैटेगरी एक ही लेकिन दाम अलग। ब्रिटेन में भी हुए एक विश्लेषण में पाया गया कि महिलाओं का डियोड्रेंट पुरुषों के मुकाबले औसतन 8.9% अधिक महंगा था। महिलाओं का फेशियल मॉइस्चराइजर 34.28% अधिक महंगा था। पिंक टैक्स ने लंबे समय से हम महिलाओं पर आर्थिक बोझ डाला हुआ है विशेषकर तब जब महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम कमाती हैं। यकीनन पिंक टैक्स स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी क्षेत्रों की महिलाओं को प्रभावित करता है। हालांकि लंबे समय से स्त्री स्वच्छता उत्पादों पर करों को कम करने या समाप्त करने के लिए कानूनी लड़ाई जारी हैं। कई देशों – जिनमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत और रवांडा शामिल हैं – ने टैम्पोन और अन्य स्त्री उत्पादों पर करों को समाप्त कर दिया है। विश्व भर में पिंक टैक्स पर लगाम लगाने के प्रयास चल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने भी दुनिया भर के देशों से पिंक टैक्स को खत्म करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया है ताकि महिलाओं को अर्थव्यवस्था में पूर्ण और समान भागीदारी मिल सके।

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