पुष्पा गुप्ता
चित्र में देखिये : मध्य प्रदेश के ‘सीधी’ ज़िले में भाजपाई प्रवेश शुक्ला एक आदिवासी के चेहरे पर पेशाब कर रहा है। प्रवेश शुक्ला भाजपा का कोई आम कार्यकर्ता नहीं है वह ‘सीधी’ से भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला का प्रतिनिधि है। घटना के ख़ुलासे के बाद विधायक ने उसे अपना प्रतिनिधि मानने से इनकार किया है।
इस सब्जेक्ट के वीडियो पर वायरल होने के बाद भाजपा का घिनौना चेहरा एक बार फिर लोगों के सामने है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आरोपी पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) लगाया है। मध्य प्रदेश पुलिस ने कई दिनों बाद आरोपी को गिरफ़्तार किया। आरोपी के घर पर बुलडोज़र चलाकर अवैध निर्माण को ध्वस्त किया गया।
सरकार द्वारा अचानक से एक्शन लेने के पीछे दो वजहें है। एक तो प्रवेश शुक्ला छोटी मछली है, अगर उसकी जगह कोई बृजभूषण सिंह होता तो भाजपा उसे बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी! दूसरी, अभी मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और भाजपा की हालत बेहद ख़राब है इसलिए इस घटना पर एक्शन के ज़रिए सरकार अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है।
मध्य प्रदेश की घटना कोई अनायास नहीं है। मध्यप्रदेश में आदिवासी उत्पीड़न और उन पर अत्याचार की घटनाओं की लम्बी फ़ेहरिस्त है। प्रदेश के नेमावर में एक ही परिवार के 5 लोग ग़ायब हो गये थे। 47 दिनों के बाद 10 फीट गड्ढे में उनकी लाशें मिली थी। इस घटना का मुख्य आरोपी सुरेन्द्र सिंह राजपूत ख़ुद को हिन्दू केसरिया संगठन का अध्यक्ष बताता है और उसके कई बीजेपी नेताओं से अच्छे सम्बन्ध रहे हैं इसलिए माना जाता है कि पुलिस उस पर हाथ डालने से अन्तिम समय तक बचती रही।
नीमच में कन्हैया लाल भील नाम के एक आदिवासी युवक को बर्बर तरीके से पीटा गया और पिकअप वाहन से बाँधकर उसे घसीटा गया। बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गयी। लूट के शक में खरगोन के बिस्टान थाने में गिरफ़्तार आदिवासी युवक बिशन की इतनी पिटाई की गयी कि हिरासत में ही उसकी मौत हो गयी। यह मध्यप्रदेश के कुछ उदाहरण है इसके अलावा देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद आदिवासी, दलित, स्त्री विरोधी अपराध के मामले में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
भाजपा के तथाकथित रामराज्य की यही असलियत है। सरकार जिन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कहती है उनके विरुद्ध होने वाले अपराध के कारण अचम्भित करने वाले होते है। किसी ने अपनी बड़ी मूछें रख ली, शादी में घोड़ी पर चढ़ गया, नोटों का माला पहन लिया, सवर्ण जाति के किसी व्यक्ति का मटका छू लिया आदि ऐसे अनेक मामलों में बर्बरता से पिटाई और हत्या तक की ढेर सारी घटनाएँ घट चुकी हैं।
इन घटनाओं के ख़िलाफ़ ज़ुबानी जमाख़र्च करने वाले अस्मितावादी संगठनों, दुस्साहसवादी संगठनों और सड़कों पर उतरकर सही तरीक़े से सही माँगों को उठाने वाले क्रान्तिकारी संगठनों में भी हमें फ़र्क करना होगा। दुस्साहसवादी राजनीति के पास आदिवासी एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने का कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि कुछ लोगों की व्यक्तिगत बहादुरी और कुर्बानी की बदौलत समाज कभी नहीं बदला, इतिहास इसका गवाह है।
देश की वर्तमान राष्ट्रपति द्वारा नये संसद भवन का उद्घाटन नहीं कराने पर शोर मचाने वाले लोग इस प्रकार की घटनाओं पर केवल ज़ुबानी जमाख़र्ची के अलावा कुछ नहीं कर सकते। इनसे भी किसी प्रकार की कोई उम्मीद करना बेईमानी होगी। दलित आदिवासी समुदाय से आने वाला एक बेहद छोटा सा हिस्सा बड़े सरकारी नौकरियों से लेकर अन्य स्थानों पर जम चुका है उसके मुक़ाबले दलित एवं आदिवासियों के बीच से आने वाली बहुसंख्यक आबादी यानी मज़दूर शोषण के भयंकरतम रूप का शिकार होता है।
अस्मितावाद का खोमचा लेकर राजनीति करने वाले लोग भी इस प्रकार के अपराध के विरुद्ध संघर्ष को आगे नहीं बढ़ा सकते। वर्गीय दृष्टिकोण को छोड़कर पहचान या अस्मिता के आधार पर जातिगत भेदभाव तथा उत्पीड़न को ख़त्म नहीं किया जा सकता। सिर्फ़ अर्ज़ियाँ लिखने, संविधान की दुहाई देने से जातिवाद के क़िले को नहीं गिराया जा सकता है, इस रास्ते से जातिवाद के ख़ात्मे के बारे में सोचना एक व्यवहारवादी सोच है।
व्यवहारवादी सोच वाले लोग यह मानते हैं कि राज्यसत्ता या सरकार के द्वारा ही कोई बदलाव होता है लेकिन वास्तव में स्थिति अलग है समाज में कोई भी बड़ा बदलाव सत्ता से प्रार्थना करके नहीं बल्कि जुझारू तरीक़े से विरोध करके या विद्रोह करके किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि बदलाव ऊपर से नहीं बल्कि जनता के द्वारा होता है व्यवहारवादी लोग इस बात को नहीं समझ पाते हैं।
भारतीय समाज में फैली जाति प्रथा के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए वर्ग आधारित जाति विरोधी आन्दोलन को खड़ा करने की आवश्यकता है तब जाकर घटनाओं की संख्या में कमी आ सकती है।
एक बात और हमें गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि मेहनतकश लोगों की वर्ग एकता के दम पर ही ब्राह्मणवादी ताक़तों को हराया जा सकता है, जाति का सम्पूर्ण अन्त पूँजीवादी व्यवस्था के दायरों के भीतर असम्भव है। बिना क्रान्ति किये जाति उन्मूलन सम्भव नहीं! बिना जाति-विरोधी संघर्ष के क्रान्ति सम्भव नहीं!
मध्यप्रदेश की घटना पर भाजपा सरकार द्वारा की जा रही कार्रवाई केवल ढोंग है। भाजपा के अन्दर ऐसी मानसिकता वाले लोगों की कोई कमी नहीं है। इनके तथाकथित हिन्दू राष्ट्र में धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों के लिए यही जगह है।