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संविधान पर अनर्गल प्रलाप के बीच  प्लेटिनम जयंती 

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-सुसंस्कृति परिहार 

पिछले दो दिन संसद में संविधान की 75 वीं जयंती पर जो विभिन्न दलों ने चर्चा की उसमें वर्तमान सरकार और पिछले एक दशक से सत्ता से दूर कांग्रेस पार्टी के बीच जो तू-तू-मैं-मैं हुई।इससे संविधान की गरिमा को ठेस पहुंची है।यह दिवस तो संविधान को और जनतांत्रिक बनाने के लिए विमर्श का दिन होता तो चर्चा की सार्थकता होती।

इस चर्चा की ओपनिंग करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जिस तरह लगातार नेहरू जी और इंदिरा जी को कटघरे में खड़ा किया।उससे यह सिद्ध होता है कि यह चर्चा किसी पवित्र मकसद से नहीं बल्कि कांग्रेस की गलतियों को गिनाने और बदनाम करने के लिए हुई। जिसका दो टूक जवाब नवागत सांसद प्रियंका गांधी ने दिया।

आइए नेहरू जी के उस प्रथम संशोधन के बारे में जान लें वह क्या था।  संविधान के अनुच्छेद 368 में संसद को इसमें संशोधन करने का अधिकार दिया गया है. संविधान लागू होने के डेढ़ साल बाद ही 10 मई 1951 को पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसमें संशोधन का प्रस्ताव पेश किया था. तब राज्यसभा नहीं थी और संशोधन का प्रस्ताव अस्थायी संसद में पेश किया गया था. इसमें संशोधन के तहत सभी राज्यों को सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए सकारात्मक कदम उठाने का अधिकार दिया गया था. साथ ही इसी संशोधन के जरिए संविधान में अनुच्छेद 15 (4) और 19 (6) जोड़े गए. संपत्ति के अधिकार में संशोधन भी किया गया था. यह संविधान संशोधन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी के जरिए जमींदारी खत्म करने को वैधानिक बनाया गया था। 

यह सच है कांग्रेस ने अपने लंबे शासन काल में राजनाथ सिंह के मुताबिक 62और मोदी के मुताबिक 75संशोधन किए।अब तक 126 संशोधनों की जानकारी मिली है। सिर्फ़ दस साल में बाकी संशोधन भाजपा ने किए जो मायने रखते हैं उनकी चर्चा भी होनी चाहिए थी। जिनका उद्देश्य सिर्फ चुनाव जीतना है इसके लिए धुव्रीकरण हेतु सबसे ज़्यादा पर जोर दिया गया।मसलन भारतीयनागरिकता कानून ने  अल्पसंख्यकों का जीना हराम कर दिया।जीएसटी कानून ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया।छोटे उद्यमी धराशाई हो गए।

 इसके अलावा बुनियादी आपराधिक क़ानूनों में बड़े पैमाने पर बदलाव किए

ये तीनों क़ानून थे- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट), 1872.सरकार नेकहा ये कानून अंग्रेज़ी शासन काल के जिनका कोई मूल्य नहीं। सिर्फ़ अपने नाम के लिए इनमें बदलाव की बात कही गई जबकि कानूनविदों के अनुसार नए कानूनों में अधिकांश प्रावधान पुराने कानूनों वाले ही हैं।हां इसमें नए अपराधों को जोड़ा गया हूं इस नए कानून का बेजा इस्तेमाल सरकार अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए कर रही। मसलन राजद्रोह अधिनियम की जगह जो कानून बना है इसमें  देश की संप्रभुता,एकता और अखंडता की रक्षा करने के लिए जो प्रावधान लाएं गए हैं उसमें कानून का दायरा बढ़ाया गया है। पुलिस हिरासत की सीमा पहले 15 दिन थी उसे 60 से 90 दिन बढ़ा दिया गया है।

गौरतलब  यह जब ये कानून  पारित हुए उस दौरान उस वक्त स्पीकर ने 150 विपक्षी सांसदों को निलम्बित किया हुआ था।यह भारतीय संसदीय इतिहास में विपक्ष का सबसे बड़ा निलंबन था।इससे यह ज्ञात होता है वर्तमान सरकार किस तरह संविधान विरोधी काम करती है 

 कांग्रेस सरकार की सिर्फ 42 वें संविधान संशोधन विधेयक के मात्र एक अनुच्छेद को जिसमें आपातकाल की घोषणा ने ही उसके माथे पर कलंक का टीका लगाया था  किंतु जब कांग्रेस ने सत्ता में  भारी मतों से वापसी की तो क्षमा बतौर उस अनुच्छेद को इस तरह बदल  दिया कि लाख कोशिशों के बावजूद वर्तमान सरकार या कोई अब कभी आपातकाल नहीं लगा पाएगी।यह सिर्फ़ युद्ध जैसी स्थिति में ही लग सकेगा। बाकी सभी संशोधन जन हितैषी वा देश की प्रतिषठा बढ़ाने वाले ही हैं।है वे जनहितकारी हैं। इनमें सिक्किम देश को भारत का राज्य बनाना तथा कश्मीर की पूर्ण स्वायत्तता ख़त्म कर प्रधानमंत्री की जगह मुख्यमंत्री दोनों असेम्बली की सहमति से हुआ। केंद्र सरकार ने 1965 में जम्मू-कश्मीर के संविधान एक्ट में छठा संशोधन करके ये कदम उठाया था। इस संशोधन के बाद सदर ए रियासत और प्राइम मिनिस्टर के पद को खत्म कर दिया गया ।आज कश्मीर जिस 370 धारा की पूर्णता की मांग कर रहा है वह इसीलिए कि उसमें राज्य विधानसभा की सहमति नहीं ली गई। कठपुतली राज्यपाल ने यह सहमति दी।जो संविधान की घोर अवज्ञा है। यहां यह भी स्मरण करना चाहिए कि 36वें संविधान संशोधन अधिनियम 1975के तहत ही सिक्किम भारत का 22 वां राज्य बना था। इन संशोधनों से देश का ना केवल विस्तार हुआ बल्कि पूर्ण रुप से स्वायत्त जम्मू-कश्मीर भारत का एक राज्य बना तथा वहां प्रधानमंत्री की जगह मुख्यमंत्री नाते जाने लगे दोनों राज्यों में भारतीय तिरंगा शान से फहरा रहा है। दोनों भारत के अभिन्न अंग है।यह करिश्मा कांग्रेस की प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने कर दिखाया जो गौरव की बात थी।  संविधान दिवस पर नए नए झूठ गढ़कर पुराने संशोधनों के बारे अनर्गल प्रलाप कर कांग्रेस की छवि दूषित करने का यह प्रयास निंदनीय है। ज़रुरत इस बात की है जनता खुद बा खुद वर्तमान सरकार के संशोधनों का मूल्यांकन करें और अपने हित को तलाशें तो लफ्फाजों की असली तस्वीर सामने आ जाएगी। तभी संविधान की प्लेटिनम   जयंती मनाने का उद्देश्य सफ़ल होगा।

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