अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

पीएम मोदी की रणनीति फेल,राम मंदिर पर बीजेपी-संघ का पर्दाफाश

Share

नई दिल्ली। जिस बात का आरोप लग रहा था उसको इंडियन एक्सप्रेस के फ्रंट पेज पर प्रकाशित एक विज्ञापन ने आज और साफ कर दिया। राम मंदिर उद्घाटन के इस विज्ञापन में राम मंदिर क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के अलावा चार नाम और हैं जो सीधे बीजेपी और संघ से जुड़े हैं। गोपाल दास के बाद पीएम मोदी का नाम है। उसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत फिर यूपी की गवर्नर आनंदीबेन पटेल और उसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम शामिल है।

अमूमन तो प्रोटोकॉल में आनंदी बेन भागवत से ऊपर आती हैं। लेकिन उनको किसलिए नीचे रखा गया है यह किसी की भी समझ से परे है। और अगर इसमें बीजेपी और संघ का बस चलता तो शायद भागवत का नाम सबसे ऊपर होता। लेकिन कहिए अभी लोक-लाज बची हुई है और देश में संवैधानिक व्यवस्था का दबाव है कि अभी इसे नहीं किया जा रहा है। लेकिन इससे यह बात साबित हो रही है कि सीढ़ी दर सीढ़ी उनका स्थान ऊपर होता जा रहा है।

बहरहाल यहां मसला दूसरा है। पूरे आयोजन को देश के एक बड़े आयोजन के तौर पर पेश किया जा रहा था। और राम के इस काम में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सारे उपाय किए जा रहे थे। यह बात अलग है कि किसके आमंत्रण से बीजेपी को कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा उसके हिसाब से ही नाम तय किए जा रहे थे। और इस प्रक्रिया में विपक्ष को घेर देने की पूरी कोशिश थी।

लेकिन विपक्ष भी इस बात को समझ रहा था और पर्दे के पीछे चल रही इस राजनीति में फंसने की जगह उसने उसका पर्दाफाश करना जरूरी समझा। और सबसे पहले पूरे आयोजन को बीजेपी-संघ का आयोजन बताकर कांग्रेस ने खुद को उससे अलग कर लिया। टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने पूरे मामले को नौटंकी करार दिया। और उससे अलग हो गयीं। और वह चुप होकर बैठीं नहीं बल्कि सूबे की राजधानी कोलकाता में उसी दिन यानी 22 जनवरी को सर्वधर्म सद्भावना मार्च का ऐलान कर दिया।

बीजेपी मामले को हाईकोर्ट ले गयी तो वहां से भी ममता की जीत हुई और उन्हें मार्च निकालने की हरी झंडी मिल गयी। बाकी आरजेडी मुखिया लालू प्रसाद ने भी इसको एक सुर में खारिज कर दिया। नीतीश ने तो उसी दिन कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी पर एक समानांतर आयोजन ही करने का ऐलान कर दिया है। और इस तरह से उन्होंने लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले पिछड़ा कार्ड चल दिया। बाकी केजरीवाल से लेकर उद्धव ठाकरे और शरद पवार तक अलग-अलग तर्कों के साथ इस पूरे आयोजन से खुद को दूर कर लिए हैं। लेकिन इन सब चीजों में एक बात तय हो गयी है कि यह पूरा आयोजन बीजेपी और संघ का है। और पूरी तरह से राजनीतिक है। मोदी-भागवत इसका पूरा लाभ आगामी लोकसभा चुनाव में लेना चाहते थे।

लेकिन उनकी यह रणनीति लगता है फेल होती दिख रही है। पीएम मोदी की यह कोशिश थी कि राम मंदिर के इस मसले के जरिये वह पूरे विपक्ष को घेर देंगे। और पूरा विपक्ष नतमस्तक हो कर उनके सामने अयोध्या के दरवाजे पर खड़ा होगा। और इस तरह से धार्मिक कर्मकांड के बहाने पूरे देश के राजनीतिक नेतृत्व को अपने हाथ में लेने का दावा कर देंगे। उनकी यह मंशा तो नहीं ही सफल हुई। ऊपर से हिंदू खेमे में ही तमाम चीजों को लेकर जो बंटवारा हो गया उसने अंतरविरोधों का नया पिटारा खोल दिया। चारों शंकराचार्यों का न जाना इस पूरे आयोजन पर ही सवालिया निशान खड़ा कर देता है। और इस मामले में उनके द्वारा रखे गए तुर्की ब तुर्की तर्कों ने खुद भक्तों के भीतर भी तमाम तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं।

बद्रीनाथ स्थित ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने तमाम ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका आयोजकों के पास कोई जवाब नहीं है। इस बीच उन्होंने आयोजकों को संबोधित करके एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने राम की उस मूर्ति के बारे में पूछा है जिसके नाम पर पूरा वितंडा खड़ा किया गया। राम लला विराजमान कोर्ट में बाकायदा एक वादी थे। और उन्होंने अपना मुकदमा खुद लड़ा है। और अब जबकि कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला किया और राम मंदिर बनकर तैयार है तब उसको उसी के स्थान से बेदखल कर किसी दूसरे को बैठाया जा रहा है। अविमुक्तेश्वरानंद ने इसी पर सवाल उठाया है।

उन्होंने लिखा है कि “श्रीरामलला विराजमान तो पहले से ही परिसर में विराजमान हैं। यहां प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि यदि नवीन मूर्ति की स्थापना की जाएगी तो श्रीराम लला विराजमान का क्या होगा? अभी तक राम भक्त यही समझते थे कि यह नया मंदिर श्रीरामलला विराजमान के लिए बनाया जा रहा है पर अब किसी नई मूर्ति के निर्माणाधीन मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठा के लिए लाए जाने पर आशंका प्रकट हो रही है कि कहीं इससे श्रीरामलला विराजमान की उपेक्षा न हो जाए”।   

उन्होंने अपनी परंपराओं का हवाला देते हुए कहा कि इसमें चाहे मूर्ति खंडित भी हो जाए फिर भी उसे हटाया नहीं जा सकता है। यहां तो पूरा फैसला ही श्रीराम ललाविराजमान के पक्ष में आया है। लेकिन अब उन्हीं को बेदखल कर दिया जा रहा है। उन्होंने खुले पत्र में लिखा है कि “रामलला जहां विराजमान हैं, वहीं विराजमान रहेंगे। स्वयंभू, देव असुर अथवा प्राचीन पूर्वजों के द्वारा स्थापित मूर्ति के खंडित होने पर भी उसके बदले नई मूर्ति नहीं स्थापित की जा सकती। बदरीनाथ और विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग इसमें प्रमाण हैं।”

इसके साथ ही उन्होंने अंत में मांग की है कि “इन संदर्भों में हम आपसे सविनय अनुरोध कर रहे हैं कि कृपया यह सुनिश्चित करें कि निर्माणाधीन मंदिर के जिस गर्भगृह में प्रतिष्ठा की बात की जा रही है वहां पूर्ण प्रमुखता देते हुए श्रीरामलला विराजमान की ही प्रतिष्ठा की जाए। अन्यथा किया गया कार्य इतिहास, जनभावना, नैतिकता, धर्मशास्त्र और कानून आदि की दृष्टि में अनुचित तो होगा ही श्रीरामलला विराजमान पर बहुत बड़ा अन्याय होगा।”

इस बीच अयोध्या में राम से ज्यादा मोदी का महिमामंडन किया जा रहा है। अयोध्या से आ रही तस्वीरों में मोदी को राम से भी बड़ा कर पेश किया जा रहा है। एक तस्वीर में तो भीमकाय मोदी बच्चा राम को अंगुली पकड़ कर ले जा रहे हैं। कई कटआउट ऐसे हैं जिनमें राम और मोदी को बराबर दिखाया गया है। कतार में लगे कट आउटों में अगर एक राम का है तो चार मोदी के कटआउट हैं। इस तरह से पूरा आयोजन धार्मिक से राजनीतिक आयोजन में बदल दिया गया है। देखना होगा अभी 22 तक इसमें क्या-क्या नये गुल खिलते हैं।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें