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कड़ाके की ठंड के साथ धधकता सियासी गलियारा

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डॉ हिदायत अहमद खान

राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड के साथ घने कोहरे की चादर ने जहां आम लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित करके रख दिया है, वहीं सियासी गलियारा नेताओं की जुबानी जंग से गरमाया हुआ है। इस चुनावी बेला में कोई किसी को चोर तो कोई महाचोर कहने से गुरेज नहीं कर रहा है। इस तरह सफेदपोशों को एक-दूसरे के दामन में दाग ही दाग नजर आ रहे हैं, जिन्हें सत्ता के डिटरजेंट से साफ करने की जुगाड़ भिड़ाने में भी कोई पीछे नहीं रहना चाहता है।

घने कोहरे के कारण दृश्यता का बेहद कम हो जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दृष्यता जो पहले कभी साफ नजर आती थी, फिलहाल भ्रमित करने वाली प्रतीत हो रही है। इसकी मुख्य वजह गठबंधन से इतर सभी अपना-अपना दांव खेलने को आतुर हैं। जो पहले कभी दोस्ती की डींगें हांकते थे वो भी खानदानी दुश्मनों की तरह, एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। ऐसे हालात में मौजूदा आम आदमी पार्टी आगे भी दिल्ली की कुर्सी पर विराजमान रहेगी या फिर कांग्रेस या भाजपा किसका दांव सफल होगा यह देखने वाली बात है। आखिर अगली सरकार किसकी होगी? जीत के दावे तो सभी अपने स्तर पर कर ही रहे हैं। जीतने के माकूल कारण भी बखूबी गिनाए जा रहे हैं, लेकिन जनता-जनार्दन जिसे इसका फैसला करना है वह मूक दर्शक बनी सभी को परखने में लगी हुई है। खास बात यह है कि मुफ्त की रेबडि़यां बांटने में कोई पीछे नजर नहीं आ रहा है। इसलिए काम और लोक-लुभावन वादों से चुनाव जीतने वाला फार्मूला इस समय लागू होता नहीं दिख रहा है।
जहां तक चुनावी तैयारी की बात है तो यहां चुनाव आयोग विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित करता उससे पहले ही आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए बतला दिया था कि उसके आगे किसी और की चलने वाली नहीं है। यह अलग बात है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर शिकंजा कसा हुआ है और वो बहुत ज्यादा दायं-बांय नहीं हो सकते हैं। मौजूदा सीएम आतिशी पर भी चुनाव आचार संहिता को लेकर मामला दर्ज कराया जा चुका है। मतलब साफ है कि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात वाली कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है। वैसे भी सवाल यह है कि केंद्र में रहते हुए भाजपा आखिर ऐसा कैसे होने दे सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और खासतौर पर भाजपा दिल्ली चुनाव को लेकर खासी गंभीर नजर आ रही है। अत: पिछले चुनावों की ही तरह इस चुनाव में भी भाजपा नेता लगातार साम-दाम, दंड, भेद की नीति को अपनाए हुए हैं और कोशिश में हैं कि किसी भी तरह से इस बार दिल्ली उनके पाले में आ जाए। वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी सत्ता की कमान संभालने के बावजूद हमेशा ही चुनाव मोड में रहते आए हैं। हर कार्य को चुनावी तराजु में तौलने का कार्य बखूबी किया जाता रहा है। यही वजह है कि सरकारी योजनाओं से लेकर आधारशिलाएं रखने और उद्घाटन करने तक को चुनावों को साधने वाला बताया जाता रहा है। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि इस ठिठुरन में भी प्रधानमंत्री मोदी राजधानी से लेकर जम्मू-कश्मीर तक लोगों को लुभाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं। यही वजह है कि चुनावी विश्लेषक कहते दिख जाते हैं कि इस बार दिल्ली में कुछ नया होने वाला है।

इस बात में दम भी है, क्योंकि कोहरे के बीच दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मुंबई के लिए पीएम मोदी जहां उड़ान भरते हैं, वहीं भाजपा नेता दिल्ली चुनाव में बेहतर परिणाम के लिए कमर कस गलि-मोहल्ले में निकलते दिखे हैं। इस ठिठुरन भरी सुबह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मुंबई के लिए उड़ान भरी। मुंबई पहुंचे तो वहां पर नौसेना के तीन प्रमुख युद्धपोत – आईएनएस सूरत, आईएनएस नीलगिरि, और आईएनएस वाघशीर – को राष्ट्र को समर्पित कर मोदी है तो मुमकिन है वाला संदेश भी दे दिया। वैसे यह सच है कि नौसैना को समर्पित युद्धपोत वाकई भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मील का पत्थर साबित होने जैसा ही काम है।
इन सब से हटकर यदि बात कांग्रेस की करें तो वह भी किसी भी स्तर पर अन्य से पीछे नहीं दिख रही है। यही वजह है कि इस सर्द सुबह और कोहरे के बीच कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे नई दिल्ली में पार्टी के नए मुख्यालय इंदिरा भवन का उद्घाटन करते नजर आ गए हैं।

इस खास मौके पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव व वायनाड सांसद प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता व अनेक नागरिक उपस्थित थे। इससे यह संदेश जाता है कि कांग्रेस इस बार दिल्ली चुनाव में अपने पूरे दम-खम के साथ उतरी है और कुछ बेहतर करने की दृड़ इच्छा रखती है। पहले कभी कांग्रेस का गढ़ रही दिल्ली अब एक बार फिर कुछ नया करके दिखाने को आतुर दिख रही है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सरकार बदल जाएगी और रजनीति थम जाएगी, बल्कि चुनाव से लेकर चुनाव बाद तक सियासी गलियारा धधकता रहने वाला है। इसकी मुख्य वजह प्रमुख नेताओं पर जो केस चल रहे हैं और लगातार मामले दर्ज हो रहे हैं उसका दूरगामी परिणाम भी इस चुनाव में असर छोड़ने वाला है। अंतत: दिल्ली का मतदाता क्या सोचता है और किसे अपना हितैषी मानता है यह तो उसके मन की बात है। बावजूद इसके आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से दिल्ली सरकार को चलाया और लोगों को अपने कार्यों और निर्णयों से जोड़े रखा उससे संदेश तो यही जाता है कि उससे सत्ता छीनना भाजपा और कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है।

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