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आदित्य-तेजस्वी की मुलाकात के सियासी मायने

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पटना : जैविक जगत में एक टर्म आता है सिंबायोसिस। जहा जिन दो यूनिट का मिलन होता है दोनो ही एक दूसरे से लाभान्वित होते है। और जीवन चक्र चलता है। आदित्य ठाकरे और तेजस्वी यादव के मिलन को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। जरूरत जिसको पहले है, वो पहल करता है । आदित्य ठाकरे ने पहल की तो वजह भी साफ है कि मुंबई नगरपालिका (डीएमसी) का चुनाव काफी नजदीक है।

आदित्य का निहितार्थ क्या है ?
आदित्य ठाकरे के लिए तेजस्वी दो महत्वपूर्ण कारणों से अति आवश्यक बने हैं। पहला कारण तो चुनाव है। आदित्य ठाकरे को पता है कि बिहारी वोट यहां काफी हैं। चुकी राजद बिहार में सबसे बड़ा दल है और वोट के नजरिए से अगर किसी का जिताऊ समीकरण दुरुस्त है, तो वो है राजद का एमवाई। खासकर शिव सेना के दो फाड़ होने से उद्धव ठाकरे की पार्टी काफी कमजोर साबित हुई। अब चुकी 30 वर्षों तक डीएमसी पर कब्जा रहा है। उसे पाने के जुगाड़ में भी ये एक प्रयास है।

क्या मानते हैं जानकार ?
इस संदर्भ में विषशज्ञ डॉ. संजय कहते हैं कि एक जैसी राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति में देश के ये दोनो युवा नेता जूझ रहे हैं। तेजस्वी यादव चुकी इस समस्या से पार कर बिहार में सबसे बड़ी पार्टी और अब तो सरकार में बड़े भागीदार भी बन चुके हैं। आदित्य ठाकरे अभी अपने कमजोर हुए पिता की साए में राजनीतिक कदम फूंक-फूंक कर उठा रहे हैं । इस कड़ी में भी इस मुलाकात को देखना चाहिए।

इस मुलाकात में तेजस्वी के मायने
दरअसल, तेजस्वी यादव की तरफ से इस मुलाकात को इस नजरिए से देखा जाना चाहिए कि ये दोनो युवा नेता है और इनकी राजनीतिक पारी लंबी होने वाली है। दूसरी बात यह कि आज इन दोनों के विरुद्ध भाजपा एक बड़ी चुनौती की तरह है। ऐसे में जब भाजपा अभी सबसे बड़ी पार्टी देश की है, तो विरुद्ध में ज्यादा से ज्यादा दल एक जुट होंगे, तो उसका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा। अब चुकी बिहार से ही नरेंद्र मोदी की सरकार के विरुद्ध राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाई है। उसके लिए शिव सेना का साथ आना एक प्रभावशाली जुटान माना जाएगा। तेजस्वी यादव जानते हैं कि नमो के विपक्ष के अभियान को जितना मजबूत करेंगे, बिहार की सत्ता की बागडोर उतनी ही जल्दी मिलेगी। सो ,तेजस्वी यादव ने इस मुलाकात को तरजीह दी और करीब 3 घंटा तक यह वार्तालाप चली।

नीतीश कुमार से भी मिले आदित्य
बहरहाल ,आदित्य ठाकरे का आना सियासी हलचल तो मचा गया। भविष्य में इस मिलाप को कौन रूप मिलेगा अभी यह परिस्थितियों के गर्व में है। परंतु विपक्षी एकता की जो मुहिम नीतीश कुमार ने चलाई है उसी अभियान के यह एक कड़ी साबित होगी। हालांकि, पहले तो बताया जा रहा था कि आदित्य ठाकरे से नीतीश कुमार नहीं मिलेंगे। उसके बाद नीतीश कुमार, प्रियंका चतुर्वेदी और आदित्य ठाकरे की तस्वीर अंदर से बाहर आई। जिसमें नीतीश काफी गर्मजोशी से आदित्य ठाकरे से मिलते हुए दिखे। नीतीश कुमार की मुलाकात के भी मायने निकाले जाएंगे। जैसा कि आदित्य ठाकरे ने कहा है कि हमलोग युवा नेता हैं। विपक्ष की एकता को मजबूत करना हमारा लक्ष्य है। उधर, नीतीश कुमार भी विपक्षी एकता को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। उस लिहाज से आदित्य ठाकरे से उनकी मुलाकात सियासी रूप से सार्थक कही जाएगी। इस मुलाकात से भी राजनीतिक निहितार्थ निकलेंगे। आने वाले दिनों में जब नीतीश कुमार को महाराष्ट्र से समर्थन की जरूरत पड़ेगी, तब कहीं आदित्य ठाकरे काम आएंगे।

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