सुसंस्कृति परिहार
हमारा देश जो गाय को माता कहता है वह आज लम्पी वायरस से किस कदर परेशान है यह देखकर मन विचलित हुआ जा रहा है। इसमें सबसे पहले गाय को बुखार आता है और एक या दो दिन बाद गाय की स्किन पर बहुत सारे गोल दाने उभर जाते हैं… आंख से बहते आंसू,टपकती लार और शरीर पर अनगिनत फफोले उनसे बहता मवाद और रिस्ते रक्त की वेदना देखी नहीं जाती ।कोरोनावायरस की तरह यह लंपी वायरस खतरनाक है लंपी स्किन डिजीज जिसे पशु चेचक भी कहते हैं एक वायरल बीमारी है जो कैपरी पाक्स वायरस से फैलती है। कैपरी पाक्स वायरस से बकरियों में गोट पाक्स नाम की बीमारी फैलती है और भेड़ों में सीप पाक्स तथा गायों में लंपी स्किन डिजीज नाम की बीमारी फैलती है। यह बीमारी भैंस ,भेड़ ,बकरी में भी फैली हुई है पर सबसे ज्यादा इससे मौतें गाय की ही हुई है। उनमें वे गायें सर्वाधिक हैं जिन्हें दुहा जा रहा है।
कहने का आशय यह है कि इससे दुग्ध उत्पादन और उससे बनने वाले प्रोडक्ट प्रभावित हो रहे हैं। पिछले दिनों में दूध की बिक्री भी कम हुई है ,उत्पादन भी घटा है। परिणाम ये सामने आया है कि नन्हें बच्चों के लिए दिया जाने वाला दूध मंहगा हुआ है। लंपी वायरस के हड़कंप से भैंस,भेड़,बकरी के दुग्ध विक्रय में भी कभी देखी गई है।
यह समझ से परे है कि गौ माताओं की सेवा के लिए प्रतिबद्ध भारत सरकार ने ऐसी कौन सी गलती कर दी है जिसकी वजह से यह बीमारी इतने वेग से बढ़ी कि झारखंड , गुजरात, महाराष्ट्र ,हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश इसकी चपेट में आ गए दिल्ली के आसपास स्थित डेयरी के जानवर भी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। एक चैनल पर कहा जा रहा है कि सबसे ज्यादा खराब हालत राजस्थान की है. राजस्थान में अब तक लम्पी वायरस से 45 हजार से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी हैं. जबकि, 10 लाख से ज्यादा इस वायरस की चपेट में आ चुकीं हैं।राजस्थान के रेगिस्तान कब्रिस्तान बनते जा रहे हैं। हजारों की संख्या में गायों को दफनाया जा रहा है।यह खबर कितनी सच है यह कहना मुश्किल है क्योंकि गोदी मीडिया आजकल यहां की कांग्रेस सरकार के पीछे हाथ धोकर पड़ा है।मगर यह सच है कि इस वायरस से कई राज्य बुरी तरह प्रभावित हैं।केंद्र सरकार की तरफ से सोमवार को जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई महीने से अब तक 67 हजार गायों की मौत लंपी वायरस से हो चुकी है। देश के 8 राज्यों में इसकी मार सबसे ज्यादा है, वो राज्य हैं – गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर।
बताया जा रहा जानवरों को जो टीके दिए जा रहे हैं वे प्रयोग बतौर है।कोरोनावायरस की तरह इसका अभी तक कोई कारगर टीका ईज़ाद नहीं हुआ है।इस बीच बहुचर्चित जालौर राजस्थान के एक मेडिकल स्टोर पर एक गाय का फोटो वायरल कर यह बताया जा रहा है इस बीमारी से जूझ रही गाय को दूकान दार एविल और दर्द निवारक गोली के साथ एंटीबायोटिक दवा गुड़ के साथ खिलाता है गाय को आराम है वह ये खुराक़ लेने रोज मेडिकल स्टोर आती है।प्रयोग जारी है कोरोनिल की तरह योगबाबा भी निश्चित लंपीनिल बनाने में जुटे होंगे।क्योंकि अगर दवा नहीं बनी तो इतने बड़े पैमाने पर घी का उत्पादन भला कैसे होगा?
बहरहाल यह बीमारी भी कोरोनावायरस की तरह विदेश से आयातित है क्योंकि इसकी शुरुआत बाहर से आई जर्सी और अन्य गायों में हुई है।सूत्र बता रहे हैं लंपी वायरस अफ्रीका से आया है ।हाल ही में अफ्रीका के एक देश नामीबिया से आठ चीते मध्यप्रदेश के कूनो-पालपुर अभ्यारण्य हेतु आए हैं।रब्बा खैर करे उन्हें ऐसी वैसी कोई बीमारी ना हो वरना इस अभयारण्य के सभी जानवर देखते ही देखते स्वाहा हो जायेंगे और अभ्यारण सुनसान।अभी चीतों का कोरोन्टाईन काल चल रहा है।उन पर नज़र रखनी जरूरी है।
निवेदन है बीमारी से जूझती गाय माताओं की तीमारदारी की आपातकालीन व्यवस्था होनी चाहिए।लंपी ग्रस्त गायों को एंबुलेंस में लाकर अलग अस्पतालों में लाना चाहिए ताकि यह बीमारी सभी में ना फैल सके।भैंस तो दमदार बीमारी बर्दाश्त करने की क्षमता रखती है पर हमारी दीन-हीन सीधे सरल स्वभाव की गौ माता इसे कैसे झेल पायेगी।गौ सेवा केंद्रों की हालत पतली है वहां रखी गई गाय चारे पानी को तरसती हैं उनके नाम से आई राशि कथित गौसेवकों द्वारा डकारी जा रही है।आम भारतीय घरों में भी गाय की स्थिति कमज़ोर है दूध देने और ना देने वाली गाय के बीच सौतेला व्यवहार होता है।बीमार गाय की परवरिश बहुत कम होती है फिर कोरोनावायरस जैसी छुतहा बीमारी में उनकी सेवा संभव नहीं।
इस बीमारी से देश के किसान की आदमनी पर बुरा असर पड़ेगा. जिससे पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के डगमगा जाने का खतरा है। और बात सिर्फ दूध, घी, गोबर आदि तक सीमित नहीं। जो गाय पालते हैं वो जानते हैं कि गाय सिर्फ पशु नहीं बल्कि परिवार का हिस्सा होती है. गाय ही क्यों कोई पालतू जानवर एक तरह से परिवार का हिस्सा बन जाता है। आज भी गांव में अगर किसी के घर में गाय की मौत हो जाती है तो उस घर में शोक की वजह से चूल्हा तक नहीं जलता. लंपी वायरस से तो हर रोज सैकड़ों की जाने जा रही हैं. इंसान तो अपना दर्द बयां कर लेते हैं, ये समय बेजुबान गायों की वेदना को समझने का है. उम्मीद करते हैं जल्द से जल्द इसका टीका आए और गायों को इस आफत से मुक्ति मिले।
आवश्यक है कि गौ माता के आंसुओं को पौंछने और पीड़ा को हरने जिला पशु चिकित्सालय को आगे आकर ,पीड़ित पशुओं को लाकर उनकी सेवा सुशुषा करनी होगी। समाजसेवी समाज भी गौसेवा में अपना योगदान दे सकते है। देशभर में कुल 73 हजार 129 पंजीकृत पशु चिकित्सक हैं. करोड़ों की संख्या में मवेशी और डॉक्टर सिर्फ 73 हजार. ज्यादा प्रभावित राज्यों की बात करें तो राजस्थान में 4 हजार 24, उत्तर प्रदेश में 6 हजार 5 सौ 62, गुजरात में 3 हजार 5 सौ 21, पंजाब में 4 हजार 24 डॉक्टर हैं।
ज्यादातर ग्रामीण आबादी अपने पशुओं के इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे है। इस कमी के पीछे भी दो वजहें है. पहला ये कि राज्य सरकारें स्वीकृत पदों को भरती नहीं, दूसरी ये कि डॉक्टरी में रुचि रखने वाले ऐसे कम ही होते हैं जो पशु चिकित्सक बनना पसंद करते हैं जिसका नुकसान लंपी वायरस के वक्त देश के सामने है और ऐसा नहीं है कि ये समस्या सिर्फ गांवों तक सीमित रहने वाली है, अगर जल्द से जल्द प्रभावी रोकथाम नहीं हुई तो शहर में भी असर दिखेगा।
जरूरी है जिस तरह कोरोना से इंसानों को बचाने के लिए होम आइसोलेशन, कंटेनमेंट जोन और टेस्टिंग की रणनीति अपनाई गई थी, ठीक उसी तरह इस वायरस से गायों को बचाने के लिए प्रभावित राज्यों में उन्हें अलग रखा जाना जरूरी है, उनकी टेस्टिंग की जाए । भैंस में भी ये बीमारी पहुंच रही है।
अच्छी बात ये है कि हज़ारों की तादाद में देश में गौ सेवकों की संख्या है हजारों गौशालाएं, कई सैकड़ा नेता भी है इन सबका सहारा मिले तो रो रही गौमाताओं को दुर्दशा से निजात मिल सकती है।गाय तो हमारी सामाजिक और राजनीतिक जरूरत है। आज इन सब की परीक्षा की घड़ी है।